Somvati Amavasya 2024: भाद्रपद माह में कब है सोमवती अमावस्या? नोट करें शुभ मुहूर्त एवं योग
ज्योतिषियों की मानें तो सोमवती अमावस्या (Somvati Amavasya 2024) पर पितरों का तर्पण करने से कुंडली में पितृ दोष का प्रभाव कम होता है। साथ ही व्यक्ति को पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। बड़ी सख्या में श्रद्धालु सोमवती अमावस्या पर गंगा समेत पवित्र नदियों में आस्था की डुबकी लगाते हैं। साथ ही जगत के पालनहार भगवान विष्णु की पूजा करते हैं।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। सनातन धर्म में अमावस्या तिथि का विशेष महत्व है। इस दिन साधक गंगा समेत पवित्र नदियों में स्नान-ध्यान कर विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। इसके पश्चात, जप-तप और दान-पुण्य करते हैं। इस शुभ अवसर पर साधक अपने पितरों का तर्पण और पिंडदान करते हैं। गरुड़ पुराण में निहित है कि सोमवती अमावस्या (Somvati Amavasya 2024) तिथि पर पितरों का तर्पण करने से पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। वहीं, साधक को पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। उनकी कृपा से सुख, सौभाग्य, आय और वंश में वृद्धि होती है। अतः बड़ी संख्या में साधक सोमवती अमावस्या तिथि पर गंगा समेत पवित्र नदियों में स्नान-ध्यान कर भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। साथ ही पितरों का तर्पण करते हैं। आइए, सोमवती अमावस्या की तिथि, शुभ मुहूर्त एवं योग जानते हैं-
सोमवती अमावस्या शुभ मुहूर्त (Somvati Amavasya Shubh Muhurat)
पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह की सोमवती अमावस्या तिथि सोमवार 02 सितंबर को भारतीय समयानुसार सुबह 05 बजकर 21 मिनट पर शुरू होगी और 03 सितंबर को सुबह 07 बजकर 24 मिनट पर समाप्त होगी। इस प्रकार 02 सितंबर को सोमवती अमावस्या मनाई जाएगी। इस तिथि पर गंगा स्नान किया जाएगा।
सोमवती अमावस्या शुभ योग (Somvati Amavasya Shubh Yog)
ज्योतिषियों की मानें तो सोमवती अमावस्या पर दुर्लभ शिव योग का निर्माण हो रहा है। इस योग का समापन शाम 06 बजकर 20 मिनट पर होगा। इसके बाद सिद्ध योग का संयोग बन रहा है। इस दिन शिववास योग का भी निर्माण हो रहा है। सोमवती अमावस्या के दिन भगवान शिव कैलाश पर विराजमान रहेंगे। इस योग में स्नान-ध्यान और पूजा-पाठ करने से अमोघ फल की प्राप्ति होगी।
सोमवती अमावस्या महत्व (Somvati Amavasya Importance)
सोमवती अमावस्या का विशेष महत्व है। इस दिन गंगा स्नान कर पितरों का तर्पण करने से व्यक्ति को पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है। साथ ही साधक को पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस शुभ अवसर पर पीपल पेड़ की पूजा-उपासना करने से सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है।
यह भी पढ़ें: कब है भाद्रपद माह का पहला प्रदोष व्रत? नोट करें शुभ मुहूर्त एवं योग
अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्नमाध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।