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जब कुंती ने बताया कर्ण को यह रहस्य

महाभारत युद्ध होना उस समय तक तय हो चुका था। दुर्योधन की तरफ कर्ण को पाकर कुंती विचलित थीं। परिस्थितियों को देखते हुए उन्होंने कर्ण के सामने वो रहस्य प्रकट करना उचित समझा जिसे कुंती ने वर्षों से छिपा कर रखा था।

By Preeti jhaEdited By: Updated: Tue, 11 Aug 2015 11:50 AM (IST)
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महाभारत युद्ध होना उस समय तक तय हो चुका था। दुर्योधन की तरफ कर्ण को पाकर कुंती विचलित थीं। परिस्थितियों को देखते हुए उन्होंने कर्ण के सामने वो रहस्य प्रकट करना उचित समझा जिसे कुंती ने वर्षों से छिपा कर रखा था।

जब कुंती, कर्ण के महल में उससे मिलने पहुंचीं, उस समय कर्ण सूर्य देव की आराधना में निमग्न था। आराधना पूरी हुई तो उसने अपने सामने महाराज पांडु की पत्नी और पांडवों की माता को पाया।

कुंती ने कहा, 'कर्ण तुम यह कभी मत समझना कि तुम सूत-पुत्र हो। न तो राधा तुम्हारी मां हैं और न ही अधिरथ तुम्हारे पिता। तुम्हें जानना चाहिए कि तुम राजकुमारी पृथा( पांडु से विवाह के पहले कुंती का नाम) यानी तुम कुंती पुत्र हो, मेरे अविवाहित रहते हुए सूर्य के अंश मेरी कोख में आ गए और तुम पैदा हुए। लोकलाज से मैनें तुम्हें गंगा में बहा दिया था। जिसके बाद तुम राधा-अधिरथ को मिले और फिर तुम उनके पुत्र कहलाए।

तुम्हारे शरीर के ये कवच-कुंडल तुम्हारे जन्म से ही हैं। तुम देव कुमार हो, फिर भी अपने भाइयों को पहचान नहीं पाए। अगर पांचों पांडव और तुम साथ में मिल जाओ तो संसार की कोई ताकत तुम्हें हरा नहीं सकती। और तुम मेरे बड़े पुत्र हो। इसलिए मेरे पुत्र तुम्हारे अधीन रहेंगे।

कर्ण सब कुछ सुन लेने के बाद बोला, 'मां! तुम्हारी ये सभी बातें धर्म विरुद्ध हैं। मैं यह नहीं कर सकता। मैं धृतराष्ट्र पुत्रों को छोड़कर नहीं जा सकता। क्योंकि उन्होंने मुझे धन, सम्मान और गौरव दिया है। मैनें दुर्योधन का नमक खाया है। चाहे मुझे अपने प्राणों की आहुति देनी पड़े मैं उनका ही साथ दूंगा।'

कर्ण की ये बातें सुनकर माता कुंती ने उसे अपने गले लगा लिया। कुंती की आंखों में आंसू थे। वह थोड़ा रुककर बोलीं, 'विधि के विधान को कोई टाल नहीं सकता। कर्ण को आशीर्वाद देकर कुंती अपने महल की ओर चली गईं।'