Move to Jagran APP

Hanuman Dhara: कहां है हनुमान धारा और क्यों यह स्थल राम भक्तों के लिए है बेहद खास?

ज्योतिष भी कुंडली में मंगल ग्रह मजबूत करने हेतु मंगलवार के दिन हनुमान जी की पूजा करने की सलाह देते हैं। इसके अलावा शनिवार के दिन भी हनुमान जी की पूजा की जाती है। शनिवार के दिन हनुमान जी की पूजा करने से साधक को शनि की बाधा से मुक्ति मिलती है। अतः साधक मंगलवार और शनिवार को विधि-विधान से हनुमान जी की भक्ति आराधना करते हैं।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarPublished: Mon, 27 May 2024 08:03 PM (IST)Updated: Mon, 27 May 2024 08:03 PM (IST)
Hanuman Dhara: कहां है हनुमान धारा और क्यों यह स्थल राम भक्तों के लिए है बेहद खास?

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Hanuman Dhara: सनातन धर्म में मंगलवार का दिन राम भक्त हनुमान जी को अति प्रिय है। इस दिन भगवान श्रीराम संग हनुमान जी की पूजा-अर्चना की जाती है। साथ ही उनके निमित्त मंगलवार का व्रत रखा जाता है। इस व्रत के पुण्य-प्रताप से साधक को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। साथ ही सभी प्रकार के संकटों से मुक्ति मिलती है। ज्योतिष भी कुंडली में मंगल ग्रह मजबूत करने हेतु मंगलवार के दिन हनुमान जी की पूजा करने की सलाह देते हैं। इसके अलावा, शनिवार के दिन भी हनुमान जी की पूजा की जाती है। शनिवार को हनुमान जी की पूजा करने से साधक को शनि की बाधा से मुक्ति मिलती है। अतः साधक मंगलवार और शनिवार को विधि-विधान से हनुमान जी की भक्ति-आराधना करते हैं। सनातन शास्त्रों में निहित है कि ज्येष्ठ माह के प्रथम मंगलवार पर भगवान श्रीराम और हनुमान जी की भेंट हुई थी। अतः हर मंगलवार पर हनुमान जी की पूजा-अर्चना की जाती है। लेकिन क्या आपको पता है कि त्रेता युग में लंका दहन के बाद आग के ताप से हनुमान जी को किस जलधारा से राहत मिली थी ? आइए, इसके बारे में विस्तार से जानते हैं-

यह भी पढ़ें: बड़ा मंगल से लेकर अपरा एकादशी तक, पढ़िए व्रत-त्योहार की सूची


हनुमान धारा

सनातन धर्म शास्त्रों की मानें तो त्रेता युग में राजा दशरथ द्वारा भगवान श्रीराम को अयोध्या की सत्ता सौंपने से पूर्व संध्या पर रानी कैकेयी ने अयोध्या नरेश से दो मनचाहा वर माँगा। ये दोनों वर उन्हें पूर्व में उनके युद्ध क्षेत्र में सहयोग हेतु राजा दशरथ द्वारा वचन में दिया गया था। तत्कालीन समय में मंथरा के बहकावे में आकर रानी कैकेयी ने राजा दशरथ से दो वर मांगी थी। इनमें प्रथम भगवान श्रीराम को चौदह वर्षों का वनवास था। वहीं, दूसरा वर भरत को अयोध्या नरेश नियुक्त करना था। वचनबद्ध राजा दशरथ ने दोनों वर रानी कैकेयी को दिया।

मर्यादा पालन के चलते माता-पिता का त्याग कर भगवान श्रीराम ने वनवास को चुना। उनके साथ जगत जननी मां सीता और अनुज लक्ष्मण वनवास गए। हालांकि, भरत ने बड़े भाई भगवान श्रीराम की अनुपस्थिति में राजा बनने से मना कर दिया। कालांतर में पुत्र वियोग के चलते राजा दशरथ को सद्गति प्राप्त हुई। वनवास के दौरान लंका नरेश रावण ने मां सीता का हरण कर लिया। मां सीता की खोज हेतु भगवान श्रीराम ने हनुमान को लंका भेजा। जहां, लंका नरेश ने हनुमान जी को बंदी बना लिया और उनकी पूंछ में आग लगाने की आज्ञा दी।

हालांकि, लंका नरेश रावण का यह दाव उल्टा पड़ा। हनुमान जी ने पूरी लंका में आग लगा दी। इस दौरान उन्होंने न्याय के देवता शनिदेव को रावण के चंगुल से मुक्त भी किया। लंका दहन के बाद जब हनुमान जी लौटे, तो आग के ताप से उन्हें बेहद कष्ट हो रहा था। उस समय उन्होंने अपनी आपबीती भगवान श्रीराम से सुनाई। तब भगवान श्रीराम ने हनुमान जी को चित्रकूट जाने की सलाह दी। भगवान श्रीराम बोले-आप चित्रकूट जाइए। उस स्थान पर स्थित जलधारा के प्रवाह से आपको अवश्य ही लाभ प्राप्त होगा। भगवान श्रीराम की आज्ञा पाकर हनुमान जी चित्रकूट पहुंचे। इस स्थान पर अमृत समान जलधारा के स्पर्श से हनुमान जी को आग के ताप से राहत मिली। अतः इस स्थल को हनुमान धारा कहा जाता है।

कहां है हनुमान धारा ?

उत्तर प्रदेश को धर्म प्रदेश भी कहा जाता है। इतिहासकारों की मानें तो उत्तर प्रदेश के चित्रकूट में तुलसीदास को मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान के दर्शन हुए थे। इस पावन स्थल पर हनुमान धारा है। इसका वर्णन तुलसीदास ने अपनी रचना में की है। वनवास के दौरान भगवान श्रीराम यमुना नदी पार कर चित्रकूट पहुंचे थे। इसी स्थान पर अनुज भरत ने वनवास का परित्याग करने हेतु भगवान श्रीराम को मनाने का प्रयास किया था। मर्यादा पालन के चलते भगवान राम ने भरत के अनुरोध को ठुकरा दिया था।

चित्रकूट स्थित रामघाट पर भगवान राम नित्य स्नान-ध्यान करते थे। इस पावन धाम में कई प्रमुख तीर्थ स्थल हैं। इनमें सीता कुंड, गुप्त गोदावरी, अनसुइया आश्रम, भरतकूप आदि प्रमुख हैं। इसी स्थल पर पर्वत के शीर्ष पर हनुमान जी का विशाल मंदिर है। राम घाट से इसकी दूरी लगभग 04 किलोमीटर है। इस स्थान पर भगवान राम-मां जानकी का भी मंदिर है। हनुमान जी को स्पर्श कर जलधारा यानी झरने का पानी तालाब में पहुंचता है। इसके चलते इस जलधारा को हनुमान धारा कहा जाता है। श्रद्धालु हवाई और रेल मार्ग के जरिए प्रयागराज पहुंच सकते हैं। यहां से सड़क मार्ग के जरिए चित्रकूट पहुंच सकते हैं।

यह भी पढ़ें: कब और कैसे हुई धन की देवी की उत्पत्ति? जानें इससे जुड़ी कथा एवं महत्व

अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।


This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.