Pitru Loka: क्या सच में पितृ लोक है? जानें-इससे जुड़ी कुछ रोचक बातें
Pitru Loka गति के चार प्रकार हैं। इसमें व्यक्ति को कर्मों के अनुसार लोक प्राप्त होता है। ये लोक क्रमशः ब्रह्म लोक स्वर्ग लोक पितृ लोक और नरक लोक हैं। गरुड़ पुराण में निहित है कि जब आत्मा शरीर त्याग कर यमलोक हेतु यात्रा प्रारंभ करती है तो उसे तीन मार्ग मिलते हैं। जीवात्मा अपने कर्मों के अनुसार अचि मार्ग धूम मार्ग या जन्म-मृत्यु मार्ग प्राप्त करता है।
नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क | Pitru Loka: सनातन धर्म में पुनर्जन्म का विधान है। गरुड़ पुराण में निहित है कि जीवन में किए गए कर्मों के आधार पर व्यक्ति को नया जन्म मिलता है। अच्छे कर्म करने वाले को ऊंचा स्थान प्राप्त होता है। वहीं, बुरे कर्म करने वाले को अधोगति मिलती है। शास्त्रों में निहित है कि मृत्यु उपरांत आत्मा की तीन तरह की गतियां (उर्ध्व, स्थिर और अधोगति) होती हैं। वहीं, पवित्र ग्रंथ 'गीता' में मृत्यु के बाद आत्मा की आठ तरह की गतियां बताई गई हैं। इन्हें गति और अगति में बांटा गया है। अगर आत्मा गति अवस्था में है, तो मृत्यु उपरांत विशेष लोक में स्थान प्राप्त होता है। जबकि, अगति अवस्था में व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती है। अतः व्यक्ति को पुनः मृत्यु लोक में आना पड़ता है। इसे अधोगति भी कहा जाता है।
धर्म पंडितों का कहना है कि मृत्यु के समय आत्मा किसी एक अवस्था में रहती है। अगर आत्मा स्थिर गति में रहती है, तो दाह संस्कार के बाद भी पृथ्वी पर भटकती रहती है। इसके लिए शव यात्रा के दौरान 'राम नाम सत्य है, सत्य बोलो गत्य है’ बोला जाता है। इससे आत्मा को अधोगति से मुक्ति मिलती है। हालांकि, जानकारों के मध्य इस विषय को लेकर मतभेद है।
अगति को चार भागों में बांटा गया है। क्षिणोदर्क में आत्मा पुनः पृथ्वी लोक पर आती है। हालांकि, उसे संत स्वरूप प्राप्त होता है। इस जन्म में वह उर्ध्व गति को प्राप्त करता है। इसके बाद भूमोदर्क अगति है। इस अगति में व्यक्ति अमीर घर में पैदा होता है। तदोउपरांत, अगति है। ये अधोगति है। इसमें व्यक्ति को पशु योनि में जन्म मिलता है। अंत में दुर्गति है। इसमें व्यक्ति मृत्यु उपरांत कीट समान जीवन प्राप्त करता है।
वहीं, गति के भी चार प्रकार हैं। इसमें व्यक्ति को कर्मों के अनुसार लोक प्राप्त होता है। ये लोक क्रमशः ब्रह्म लोक, स्वर्ग लोक, पितृ लोक और नरक लोक हैं। गरुड़ पुराण में निहित है कि जब आत्मा शरीर त्याग कर यमलोक हेतु यात्रा प्रारंभ करती है, तो उसे तीन मार्ग मिलते हैं। जीवात्मा अपने कर्मों के अनुसार अचि मार्ग, धूम मार्ग या जन्म-मृत्यु मार्ग प्राप्त करता है।
अचि मार्ग पर यात्रा करने वाले को ब्रह्म लोक में स्थान प्राप्त होता है। धूम मार्ग में यात्रा करने वाले पितृ लोक जाते हैं। वहीं, जन्म-मृत्यु मार्ग पर यात्रा करने वाले नरक लोक में जाते हैं। धार्मिक मत है कि यमराज भी पितृ लोक में रहते हैं। पितृ लोक में पितरों को दो श्रेणी में बांटा गया है, जो क्रमशः देव पितर और मनुष्य पितर हैं। पितर के प्रमुख यमराज हैं और अर्यमा पितरों का प्रधान हैं।
कहां है पितृ लोक?
सनातन शास्त्रों के अनुसार, मृत्यु लोक के ऊपर दक्षिण दिशा में 86,000 योजन की दूरी पर यमलोक है। इसका उल्लेख गरुड़ पुराण में निहित है। गरुड़ पुराण में वर्णित है कि मृत्यु के बाद अगर आत्मा अर्ध्य गति में रहती है, तो तकरीबन 100 वर्षों तक मृत्यु और पुनर्जन्म के मध्य की स्थिति में रहती है। ऐसा भी कहा जाता है कि चंद्रमा के ऊर्ध्व भाग में पितृ लोक है। ज्योतिषियों और खगोल जानकारों की मानें तो सूर्य की सहस्त्र किरणों में सबसे प्रमुख 'अमा' है। इस किरण से समस्त लोक प्रकाशवान होती है। पितृ श्राद्ध पक्ष में अमा किरण के माध्यम से पृथ्वी लोक पर आते हैं।
डिस्क्लेमर-''इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना में निहित सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्म ग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारी आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना के तहत ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'