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Shanichara Temple: इस मंदिर में शनिदेव की पूजा करने के बाद भक्त मिलते हैं गले

हर वर्ष ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि पर शनि जयंती मनाई जाती है। इस दिन शनिचरा मंदिर में मेला लगता है। इस अवसर पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु मुरैना स्थित शनिचरा मंदिर पहुंचते हैं। धार्मिक मत है कि शनिचरा मंदिर से कोई भक्त खाली हाथ नहीं लौटता है। भक्त की हर मुराद अवश्य ही पूरी होती है। साथ ही शनि दोष भी दूर होता है।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Fri, 24 May 2024 08:22 PM (IST)
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Shanichara Temple: इस मंदिर में शनिदेव की पूजा करने के बाद भक्त मिलते हैं गले
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Shanichara Temple: सनातन धर्म में शनिवार का दिन न्याय के देवता को समर्पित होता है। इस दिन शनिदेव की श्रद्धा भाव से पूजा-अर्चना की जाती है। साथ ही साधक मनोवांछित फल की प्राप्ति हेतु शनिदेव के दिन शनिवार का व्रत करते हैं। धार्मिक मत है कि शनिदेव के शरणागत रहने वाले साधकों को जीवन में कभी मुश्किलों का सामना नहीं करना पड़ता है। शनिदेव की कृपा से साधक को सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है। अच्छे कर्म करने वाले लोगों पर शनिदेव की कृपा-दृष्टि हमेशा बनी रहती है। वहीं, बुरे कर्म करने वाले पर शनिदेव की कुदृष्टि पड़ती है। ज्योतिषियों की मानें तो शनिदेव की कुदृष्टि पड़ने पर व्यक्ति को जीवन में सभी दिशाओं से मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। आसान शब्दों में कहें तो जीवन बेहद संघर्षमय और कष्टकारी हो जाता है। इसके अलावा, शनि की महादशा और साढ़े साती के दौरान भी व्यक्ति को आर्थिक, शारीरिक और मानसिक परेशानी होती है। ज्योतिष शनि दोष से बचाव के लिए भगवान शिव एवं न्याय के देवता की पूजा करने की सलाह देते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि शनिदेव की सिद्धपीठ मंदिर में न्याय के देवता के दर्शन से भी शनि दोष दूर हो जाता है ? भारतवर्ष में शनिदेव के तीन सिद्धपीठ मंदिर हैं। इनमें एक शनिचरा मंदिर है। इस मंदिर में भक्तजन शनिदेव की पूजा कर उनसे गले भी मिलते हैं। आइए, इस मंदिर के बारे में सबकुछ जानते हैं-  

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शनि जयंती पर लगता है मेला

हर वर्ष ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि पर शनि जयंती मनाई जाती है। इस दिन शनिचरा मंदिर में मेला लगता है। इस अवसर पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु मुरैना स्थित शनिचरा मंदिर पहुंचते हैं। धार्मिक मत है कि शनिचरा मंदिर से कोई भक्त खाली हाथ नहीं लौटता है। भक्त की हर मुराद अवश्य ही पूरी होती है। साथ ही शनि दोष भी दूर होता है। ऐसा भी कहा जाता है कि शनिदेव के सिद्धपीठ मंदिर में न्याय के देवता के दर्शन मात्र से शनि की बाधा दूर हो जाती है। अतः बड़ी संख्या में भक्तजन शनिचरा मंदिर मोक्ष प्रदाता के दर्शन एवं पूजा हेतु आते हैं।  

गले लगाने की परंपरा

शनिचरा मंदिर त्रेता युग के समकालीन है। इस मंदिर में शनिदेव को तेल अर्पित करने के बाद गले लगाने की परंपरा है। साथ ही जूते, चप्पल और पूजा के समय उपयोग किए गए वस्त्र का त्याग करने का भी विधान है। अतः साधक शनिदेव की पूजा के पश्चात गले मिलते हैं। साथ ही अपने वस्त्रों का परित्याग करते हैं। इस विधि से शनिदेव की पूजा करने से साधक के जीवन में व्याप्त दुख, संकट और दरिद्रता दूर हो जाती है। साथ ही इच्छित वर की भी प्राप्ति होती है।    

कहां है शनिचरा मंदिर ?

भारत में शनिदेव के तीन सिद्धपीठ मंदिर हैं। इनमें दूसरा सिद्धपीठ मध्य प्रदेश के मुरैना जिले में अवस्थित है। यह मंदिर मुरैना जिले के ऐंती ग्राम के समीप शनि पर्वत पर है। ग्वालियर से मुरैना की दूरी महज 40 किलोमीटर है। श्रद्धालु तीनों मार्गों के जरिए ग्वालियर पहुंच सकते हैं। वहीं, ग्वालियर से सड़क मार्ग के जरिए शनिचरा मंदिर पहुंच सकते हैं। मंदिर के अंदर गुप्त गंगा धारा भी है। इस जल धारा में हर समय जल रहता है। मंदिर में ही लेटे हुए हनुमान जी का मंदिर भी है।

कथा

सनातन शास्त्रों में शनिचरा मंदिर का उल्लेख है। इस मंदिर का निर्माण राजा विक्रमादित्य ने करवाया था। आधुनिक समय में महाराजा सिंधिया ने मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया। त्रेता युग में सीता हरण के बाद मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने अपने परम भक्त हनुमान जी को मैया जानकी की खोज हेतु लंका भेजा। उस समय रावण ने हनुमान जी को बंदी बना लिया और उनकी पूंछ में आग लगा दी। जब हनुमान जी लंका को जलाने वाले थे। उस समय उनकी नजर शनिदेव पर पड़ी, जिनको रावण ने बंदी बना रखा था। शनिदेव की विनती पर हनुमान जी ने उन्हें मुक्त कराया। ऐसा कहा जाता है कि हनुमान जी ने ऐंती स्थित शनि पर्वत पर न्याय के देवता को लाकर छोड़ दिया था।

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अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।