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God Dhanvantri: कौन हैं आयुर्वेद के जनक भगवान धन्वंतरि और कैसे हुआ इनका अवतरण ?

चिरकाल में स्वर्ग के लक्ष्मी विहीन होने के बाद देवताओं का ऐश्वर्य खो गया। उस समय दानवों ने स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया। श्रीविहीन होने के चलते देवता युद्ध के मैदान में दानवों का सामना नहीं कर पाए। इस युद्ध में देवताओं को पराजय का सामना करना पड़ा। श्रीविहीन और शक्तिहीन होने के बाद देवता सबसे पहले ब्रह्मा जी के पास गए और उनसे सहायता मांगी।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Wed, 15 May 2024 08:11 PM (IST)
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God Dhanvantri: कौन हैं आयुर्वेद के जनक भगवान धन्वंतरि और कैसे हुआ इनका अवतरण ?

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। God Dhanvantri: हर वर्ष कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को धनतेरस मनाया जाता है। इस दिन आयुर्वेद के जनक भगवान धन्वंतरि और धन की देवी मां लक्ष्मी की पूजा-अर्चना की जाती है। साथ ही सोने और चांदी की खरीदारी की जाती है। भगवान धन्वंतरि की पूजा करने से व्यक्ति को सुख, संपत्ति, संपदा, वैभव, ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। साथ ही सभी प्रकार के शारीरिक एवं मानसिक रोगों से मुक्ति मिलती है। आसान शब्दों में कहें तो आरोग्यता का वरदान प्राप्त होता है। शास्त्रों में भगवान धन्वंतरि को चिकित्सक यानी डॉक्टर भी कहकर संबोधित किया गया है। लेकिन क्या आपको पता है कि  भगवान धन्वंतरि कौन हैं और आयुर्वेद के जनक का अवतरण कब हुआ है? आइए, इसके बारे में सबकुछ जानते हैं- 

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कौन हैं भगवान धन्वंतरि?

सनातन शास्त्रों में भगवान धन्वंतरि को जगत के पालनहार भगवान विष्णु का अंशावतार कहा जाता है। इसका अभिप्राय यह है कि भगवान धन्वंतरि जगत के पालनहार के अवतार हैं। भगवान धन्वंतरि ने आयुर्वेद की शुरुआत की। हालांकि, द्वापर युग में काशीराज धन्व की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान धन्वंतरि ने पुत्र रूप में उनके घर पर जन्म लिया। काशी शहर के संस्थापक काश के पुत्र काशी राज धन्व थे। भगवान विष्णु ने धन्वंतरि जी को समुद्र मंथन के समय वरदान दिया था कि द्वापर युग में जन्म लेने के पश्चात आपको ईश्वरत्व प्राप्त होगा। अतः द्वापर युग में भगवान धन्वंतरि के जन्म के बाद उन्हें देवत्व प्राप्त हुआ।  भगवान धन्वंतरि देवताओं के चिकित्सक हैं।

स्वरूप

भगवान धन्वंतरि चार भुजाधारी हैं। जगत के पालनहार भगवान विष्णु के समान भगवान धन्वंतरि ऊपर की दोनों भुजाओं में शंख और कलश है। वहीं, तीसरे हाथ में आयुर्वेद संहिता और चौथे हाथ में औषधि है। भगवान धन्वंतरि के हाथ में अमृत कलश है।

कब हुआ अवतरण ?

चिरकाल में स्वर्ग के लक्ष्मी विहीन होने के बाद देवताओं का ऐश्वर्य खो गया। उस समय दानवों ने स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया। श्रीविहीन होने के चलते देवता युद्ध के मैदान में दानवों का सामना नहीं कर पाए। इस युद्ध में देवताओं को पराजय का सामना करना पड़ा। श्रीविहीन और शक्तिहीन होने के बाद देवता सबसे पहले ब्रह्मा जी के पास गए और उनसे सहायता मांगी। देवताओं की व्यथा सुनकर ब्रह्मा जी ने कहा- भगवान विष्णु ही आपकी मदद कर सकते हैं। आप सभी जगत के पालनहार भगवान विष्णु के पास जाएं। सभी देवता भगवान विष्णु के पास पहुंचे। तब भगवान विष्णु ने समुद्र मंथन करने की सलाह दी। भगवान विष्णु बोले- समुद्र मंथन से अमृत कलश प्राप्त होगा। आप सभी अमृत पान कर अमर हो जाएंगे। उसके पश्चात आपको कोई हरा नहीं पाएगा। हालांकि, इसके लिए आपको दानवों की मदद लेनी पड़ेगी। कालांतर में देवताओं ने दानवों से मदद लेकर समुद्र मंथन किया। समुद्र मंथन के दौरान प्रथम रत्न में विष प्राप्त हुआ, जिसे देवों के देव ने धारण किया। वहीं, अंतिम रत्न में अमृत कलश की प्राप्ति हुई। इसी समय भगवान धन्वंतरि का अवतरण हुआ था। भगवान धन्वंतरि अमृत पूर्ण कलश लेकर प्रकट हुए थे।

क्यों लिया पृथ्वी पर जन्म ?

सनातन शास्त्रों में वर्णित है कि समुद्र मंथन के दौरान 14 रत्नों की प्राप्ति हुई थी। इसी समय में भगवान धन्वंतरि का भी अवतरण हुआ था। भगवान धन्वंतरि अमृत पूर्ण कलश लेकर प्रकट हुए थे। ऐसा कहा जाता है कि अमृत वितरण के बाद स्वर्ग नरेश के कहने पर भगवान धन्वंतरि देवताओं के चिकित्सक बने और अमरावती में रहने लगे। द्वापर युग में एक बार पृथ्वीवासी कई प्रकार के गंभीर रोगों से ग्रसित हो गए। तब स्वर्ग नरेश इंद्र की प्रार्थना पर भगवान धन्वंतरि ने काशीराज धन्व के घर पर जन्म लिया। 

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