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Panch Dev: कौन हैं पंचदेव और क्यों शुभ कार्यों के श्रीगणेश से पहले की जाती है इनकी पूजा ?

धर्म शास्त्रों में निहित है कि भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को भगवान गणेश का अवतरण हुआ है। इस तिथि पर भगवान गणेश की विशेष पूजा-उपासना की जाती है। साथ ही उनके निमित्त व्रत-उपवास रखा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान गणेश का अवतरण सतयुग में हुआ है। हालांकि भगवान गणेश की पूजा अनादि काल से हो रही है।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Tue, 28 May 2024 07:55 PM (IST)
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Panch Dev: कौन हैं पंचदेव और क्यों शुभ कार्यों के श्रीगणेश से पहले की जाती है इनकी पूजा ?
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Panch Dev: सनातन धर्म में बुधवार का दिन भगवान गणेश को अति प्रिय है। इस दिन भगवान गणेश की विधिपूर्वक पूजा की जाती है। साथ ही भगवान गणेश के निमित्त बुधवार का व्रत रखा जाता है। सनातन शास्त्रों में भगवान गणेश की महिमा का गुणगान किया गया है। भगवान गणेश को कई नामों से जाना जाता है। इनमें एक नाम आदिदेव है। भगवान गणेश को आदिदेव कहकर भी संबोधित किया जाता है। धार्मिक मत है कि भगवान गणेश की पूजा करने से साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। साथ ही जीवन में व्याप्त सभी प्रकार के दुख और संकट दूर हो जाते हैं। इसके लिए भगवान गणेश को विघ्नहर्ता भी कहा जाता है। विभिन्न युग में भगवान गणेश को अन्य नामों से जाना जाता है। लेकिन क्या आपको पता है कि भगवान गणेश पंचदेव के मुख्य भगवान हैं ? उन्हें त्रिदेव यानी भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश के समतुल्य स्थान प्राप्त है। आइए, पंचदेव के बारे में जानते हैं-  

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स्वरूप

सनातन शास्त्रों की मानें तो अनादि काल से भगवान गणेश की पूजा की जाती है। अनादि काल में भगवान गणेश को आदिदेव और प्रणव कहा जाता था। द्वापर युग में भगवान शिव और मां पार्वती के पुत्र रूप में अवतरित हुए थे। वर्तमान समय में भगवान गणेश को धूम्रवर्ण कहा जाता है। भगवान गणेश चार भुजाधारी हैं। इनके एक हाथ में पाश है, तो दूसरे हाथ में अंकुश है। वहीं, तीसरे हाथ में मोदक पात्र है। जबकि, चौथा हाथ वर मुद्रा में है।

अवतरण

धर्म शास्त्रों में निहित है कि भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को भगवान गणेश का अवतरण हुआ है। इस तिथि पर भगवान गणेश की विशेष पूजा-उपासना की जाती है। साथ ही उनके निमित्त व्रत-उपवास रखा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान गणेश का अवतरण सतयुग में हुआ है। हालांकि, भगवान गणेश की पूजा अनादि काल से हो रही है।

कैसे बने प्रथम पूजनीय ?

सनातन शास्त्रों में निहित है कि एक बार देवताओं के मध्य श्रेष्ठता को लेकर प्रतियोगिता हुई। इस प्रतियोगिता में तीनों लोकों की परिक्रमा करके प्रारंभ स्थान पर सबसे पहले आने वाले देवता को श्रेष्ठ घोषित किया जाता। भगवान गणेश की सवारी मूषक है। अत: परिक्रमा शुरू होने पर भगवान गणेश सोचने लगे। मूषक की सवारी कर तीनों लोकों की परिक्रमा करना संभव नहीं है। तब भगवान गणेश ने बुद्धि का प्रयोग कर तीनों लोकों की परिक्रमा करने के बजाय माता-पिता यानी भगवान शिव और मां पार्वती की परिक्रमा कर ली। उस समय ब्रह्माजी ने भगवान गणेश को प्रथम पूजनीय घोषित किया। तत्कालीन समय से भगवान गणेश की सबसे पहले पूजा की जाती है।

पंच देव कौन हैं ?

शास्त्रों में कई जगह पर भगवान शिव, विष्णु, ब्रह्माजी, गणेशजी और जगत जननी आदिशक्ति मां दुर्गा को पंच देव कहा गया है। वहीं, कई स्थानों पर सूर्य देव, भगवान गणेश, शिवजी, विष्णुजी और ब्रह्माजी को पंच देव कहा जाता है। इनमें सबसे पहले सूर्य देव की पूजा की जाती है। इसके बाद भगवान गणेश, मां दुर्गा, भगवान शिव और विष्णु जी की पूजा-अर्चना की जाती है। वास्तु शास्त्र में भी पंच देव का उल्लेख है। इस शास्त्र के अनुसार, ईशान कोण भगवान विष्णु को समर्पित होता है। अतः इस कोण में भगवान विष्णु को स्थापित करना चाहिए। वहीं, आग्नेय कोण में भगवान शिव को स्थापित करना चाहिए। जबकि, नैऋत्य कोण में भगवान गणेश और वायव्य कोण यानी उत्तर और पश्चिम दिशा में जगत जननी आदिशक्ति मां दुर्गा को स्थापित करना चाहिए। साथ ही घर के मध्य में इष्ट देव या सूर्य देव को स्थापित करें। वास्तु जानकारों की मानें तो दिशा और कोण के अनुसार देवी-देवताओं को स्थापित करने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है। वहीं, सूर्य उपासना (जल अर्घ्य के बाद) के बाद सबसे पहले भगवान गणेश की भक्ति-आराधना करनी चाहिए। धर्म शास्त्रों में निहित है कि पंच देव की पूजा करने से व्रती की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। साथ ही घर में मंगल का आगमन होता है।  

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अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।