Lord Krishna Kuldevi: कौन हैं भगवान श्रीकृष्ण की कुलदेवी, जहां छत्रपति शिवाजी ने भी टेका है माथा
श्रीकृष्ण भगवान विष्णु का 8वां अवतार माने जाते हैं। उत्तर प्रदेश के वृंदावन मथुरा आदि क्षेत्रों को भगवान कृष्ण की नगरी के रूप में जाना जाता है। क्योंकि भगवान ने अपने जीवन का काफी समय यहां बिताया है और कई लीलाएं भी की हैं। ऐसे में आज हम आपको उस स्थान के बारे में बताने जा रहे हैं जहां भगवान कृष्ण का मुंडन हुआ था।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, प्रत्येक कुल के एक कुलदेवी और कुलदेवता माने जाते हैं, जो उस कुल के संरक्षक भी होते हैं। विवाह या बच्चे के जन्म के बाद कुलदेवी या कुलदेवता की पूजा जरूरी मानी जाती है। ऐसा करने से घर-परिवार में सुख-समृद्धि का माहौल बना रहता है। ऐसे में आइए जानते हैं कि भगवान कृष्ण की कुलदेवी कौन-थीं और उनका मंदिर कहां स्थित है।
कौन हैं कुलदेवी
पुराणों के वर्णन मिलता है कि द्वापर युग में महाविद्या देवी नन्द बाबा की कुल देवी थीं। इसलिए उन्हें भगवान श्रीकृष्ण की भी कुलदेवी माना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, देवकी-वासुदेव ने कंस से श्रीकृष्ण और बलराम की रक्षा के लिए इस मंदिर में मन्नत मांगी थी। साथ ही यह भी माना कि माता यशोदा ने महाविद्या मंदिर में ही कान्हा जी का मुंडन करवाया गया था। इसके बाद से ही महाविद्या मंदिर की देवी को ही भगवान श्रीकृष्ण की कुलदेवी माना जाता है।
कहां स्थित है मंदिर
मथुरा के 4 प्रसिद्ध देवी मंदिरों में से मां महाविद्या सबसे ऊंची प्राचीर पर विद्यमान हैं। यह मंदिर मथुरा रेलवे जंक्शन से 4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, जो श्री कृष्ण जन्मभूमि के पास ही है। इस मंदिर को लगभग 5000 वर्ष पुराना माना जाता है। इस मंदिर को लेकर यह भी मान्यता है कि छत्रपति शिवाजी ने भी इस मंदिर में आकर पूजा-अर्चना की थी। आज हमें मंदिर का जो स्वरूप देखने को मिलता है, उसका निर्माण मराठों द्वारा करवाया गया था। कई लोगों की कुलदेवी होने के कारण महाविद्या मंदिर में भक्तों का तांता लगा रहता है।
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मिलती है यह कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, श्रीधर नामक एक ब्राह्मण के अंगिरा ऋषि का अपमान किया था। जिसपर ऋषि ने क्रोधित होकर उसे अजगर बनने का श्राप दिया और कहा कि त्रेता युग में अम्बिका वन (जिसे अब महाविद्या क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है) में जाकर तू अपना श्राप भोगेगा। श्रीकृष्ण जी के जन्म के बाद जब एक बार देवकी इस स्थान पर कुंड में स्नान कर रही थीं, तब श्रीधर ने अजगर के रूप में माता देवकी का पैर जकड़ लिया। इसके बाद श्रीकृष्ण ने उस सांप से अपनी माता को मुक्त करावाया और इस अगजर का वध कर उसका उद्धार किया। माना जाता है कि माता देवी के स्नान करने के कारण यहां एक देवकी कुंड भी था।
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