Garuda Purana: सूर्यास्त के बाद क्यों नहीं करते अंतिम संस्कार, गरुड़ पुराण में बताए गए हैं कारण
Garuda Purana गरुड़ पुराण में अंतिम संस्कार की विधि के बारे में विस्तार से बताया गया है। इसमें दाह संस्कार की प्रक्रिया मान्यताएं और महत्वपूर्ण बातों के विषय में बताया गया है। शव को अकेला नहीं छोड़ने और अंतिम संस्कार के बाद पीछे मुड़कर क्यों नहीं देखना चाहिए इसके बारे में बताया गया है।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। गरुड़ पुराण में जन्म से मृत्यु तक सोलह संस्कारों के बारे में विस्तार से बताया गया है। इसमें सोलहवां और अंतिम संस्कार दाह संस्कार है, जिनको लेकर कई तरह के नियम बताए गए हैं। इस पुराण को महर्षि वेदव्यास ने लिखा है, इसमें भगवान विष्णु ने पक्षीराज गरुड़ का संवाद है।
गरुड़ पुराण में बताया गया है कि मृत्यु के बाद परिजनों को क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए। आत्मा की यात्रा कैसे होती है और किसे स्वर्ग मिलता है और कौन नरक में जाता है। जीवों को पुनर्जन्म किस आधार पर मिलता है। इस पुराण में लिखा है कि मरने के बाद अंतिम संस्कार सूर्यास्त के बाद क्यों नहीं करना चाहिए। आइए जानते हैं ऐसा क्यों होता है…
बंद हो जाते हैं स्वर्ग के द्वार
गरुड़ पुराण के अनुसार, सूर्यास्त के बाद शव का अंतिम संस्कार नहीं करना चाहिए। इसमें कहा गया है कि ऐसा करने से व्यक्ति की आत्मा को शांति नहीं मिलती है। साथ ही मान्यता है यह है कि सूर्यास्त के बाद स्वर्ग के द्वार बंद हो जाते हैं। इसकी वजह से आत्मा अपने गंतव्य तक नहीं पहुंच पाती है।
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सूर्यास्त के बाद नर्क के द्वार खुल जाते हैं। ऐसे में अगर मृतका का दाह संस्कार रात में किया जाए, तो आत्मा को नर्क के कष्ट भोगने पड़ते हैं। अगले जन्म में ऐसे व्यक्ति के किसी अंग में भी दोष हो सकता है। इसलिए जब भी किसी व्यक्ति की रात्रि में मृत्यु हो जाती है, तो उसका अंतिम संस्कार रात में नहीं किया जाता है।
कौन कर सकता है दाह संस्कार
गरुड़ पुराण के अनुसार, सूर्योदय होने तक मृतक का शव जमीन पर रखना चाहिए। सुबह होने पर विधि-विधान के साथ उसका अंतिम संस्कार करना चाहिए। यह क्रिया पिता, पुत्र, भाई, पोता या परिवार का कोई पुरुष सदस्य ही कर सकता है।
गरुड़ पुराण में बताया गया है कि अंतिम संस्कार वंश परंपरा का हिस्सा है। इसलिए आजीवन वंश से जुड़े रहने वाले लोगों को ही यह संस्कार करने का अधिकार दिया गया है।
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