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Lord Shiva Wedding: शिवजी के विवाह में क्यों मुंह फुला कर बैठ गए थे भगवान विष्णु? इस मंदिर से जुड़ा है कनेक्शन

सावन का महीना देवों के देव महादेव को समर्पित होता है। इस महीने में हर दिन भगवान शिव एवं मां पार्वती की पूजा की जाती है। वहीं सावन सोमवार पर भगवान शिव की विशेष पूजा की जाती है। साथ ही सावन सोमवारी का व्रत भी रखा जाता है। सावन सोमवार के दिन भगवान शिव की पूजा करने से व्रती की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Wed, 12 Jun 2024 08:55 PM (IST)
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Lord Shiva Wedding: शिवजी के विवाह में क्यों मुंह फुला कर बैठ गए थे भगवान विष्णु?

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Lord Shiva Parvati Wedding: देवों के देव महादेव की लीला अपरंपार है। शिव भक्तों को जीवन में कभी किसी चीज की कमी नहीं होती है। अगर कोई भक्त विषम परिस्थिति से गुजरता है, या उसके जीवन में विषम परिस्थिति पैदा होती है, तो उसमें भगवान शिव की मर्जी होती है। उनकी मर्जी के बिना कोई संयोग या प्रयोग नहीं हो पाता है। शिवजी स्वयं योगी हैं, किंतु अपने भक्तों को राजा बनाकर रखते हैं। धार्मिक मत है कि जिन पर कृपा भगवान शिव की होती है, उनको मृत्यु लोक में ही सभी प्रकार के भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है। साथ ही मृत्यु के उपरांत शिव लोक की प्राप्ति होती है। अत: भगवान शिव को मोक्ष प्रदाता भी कहा जाता है।

शिव भक्त सोमवार के दिन अपने आराध्य की पूजा करते हैं। भगवान शिव बेहद भोले हैं। महज जलाभिषेक से प्रसन्न हो जाते हैं। इसके लिए सावन महीने में हर सोमवार के दिन भगवान शिव का जलाभिषेक किया जाता है। साथ ही सोमवार का व्रत भी रखा जाता है। शिव पुराण में निहित है कि मां पार्वती ने भगवान शिव को वर रूप में पाने के लिए सोलह सोमवारी का व्रत किया था। इस व्रत के पुण्य-प्रताप से भगवान शिव ने मां पार्वती को धर्मपत्नी रूप में स्वीकार करने का वरदान दिया। कालांतर में मां पार्वती और भगवान शिव का विवाह हुआ। लेकिन क्या आपको पता है कि भगवान शिव के विवाह में जगत के पालनहार भगवान विष्णु मुंह फुला कर बैठ गए थे? बहुत मनाने के बाद भगवान विष्णु पाणिग्रहण के लिए माने थे। आइए, इसके बारे में सबकुछ जानते हैं-

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कथा

दक्षिण भारत में उपलब्ध सनातन शास्त्रों की मानें तो मदुरै के राजा मलयध्वज पांड्या और उनकी पत्नी कंचनमलाई की कोई संतान नहीं थी। यह सोच दोनों बेहद चिंतित रहते थे। कुल के पंडित ने उन्हें यज्ञ करने की सलाह दी। तत्कालीन समय में राजा मलयध्वज पांड्या ने अपने राज में बहुत बड़ा यज्ञ किया। इस यज्ञ में प्रकांड पंडित उपस्थित थे। इस यज्ञ वेदी की अग्नि से एक अति दुर्लभ कन्या उत्पन्न हुईं। कन्या को देख सभी सकते में आ गए। उस समय आकाशवाणी हुई कि कन्या के साथ सामान्य बालकों की तरह व्यवहार करें। कन्या जब बड़ी होंगी, तो सभी दुर्लभता दूर हो जाएगी।

भगवान शिव का वचन मान राजा मलयध्वज पांड्या ने कन्या के लालन पालन में कोई कसर नहीं छोड़ा। जब कन्या बड़ी हुईं तो राजा मलयध्वज पांड्या ने कन्या को उत्तराधिकारी बनाया। ऐसा कहा जाता है कि राजगद्दी संभालने के बाद एक दिन भगवान शिव से कन्या का मिलन हुआ। भगवान शिव के दर्शन मात्र से कन्या के शरीर में व्याप्त दुर्लभता दूर हो गई। इसके बाद भगवान शिव ने राजा मलयध्वज पांड्या से विवाह के लिए कन्या का हाथ मांगा। राजा मलयध्वज पांड्या ने तत्क्षण भगवान शिव के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया।

भगवान शिव की शादी की खबर तीनों लोकों में फैल गई। जगत के संचालनकर्ता भगवान विष्णु को सफल विवाह कराने की जिम्मेदारी दी गई। भगवान विष्णु (Lord Vishnu) ने प्रसन्न होकर शिवजी के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। ज्योतिषियों की सहायता से विवाह की तिथि भी निर्धारित की गई। स्वर्ग नरेश भी भगवान शिव के विवाह के लिए प्रसन्न थे। इंद्र देव भी भगवान शिव के विवाह की तैयारी में जुट गए। शिव विवाह में उपस्थित होने के लिए तीनों लोकों में निमंत्रण भेजा गया था। ऐसा कहा जाता है कि धरती पर यह अब तक की सबसे बड़ी शादी थी, जिसमें तीनों लोकों के लोग शामिल हुए थे। सब कुछ तय अनुसार हो रहा था।

विवाह तिथि से पूर्व कार्य को भगवान विष्णु बैकुंठ लोक से संभाल रहे थे। हालांकि, पाणिग्रहण भगवान विष्णु के द्वारा होना था। इसके लिए विवाह के दिन भगवान विष्णु सज धज कर मदुरै आने के लिए बैकुंठ से रवाना हुए। राह में स्वर्ग नरेश इंद्र के चलते भगवान विष्णु को देर हो गई। भगवान विष्णु तय समय पर मदुरै पहुंच न सके। सभी लोग प्रतीक्षारत थे कि भगवान विष्णु कब आएंगे? जब देर से भगवान विष्णु पहुंचे, तो सभी लोगों ने उनके देर से आने की वजह न जान उनकी खूब खातिरदारी की।

हालांकि, स्वर्ग नरेश इंद्र की गलती से भगवान विष्णु बेहद अप्रसन्न थे। उस समय बिना कुछ बोले भगवान विष्णु मुँह फुलाकर बैठ गए। जब सभी ने उनके गुस्से का कारण जानने चाहा, तो भगवान विष्णु यह कहकर प्रस्थान कर गए कि मदुरै की ये मेरी अंतिम यात्रा थी। अब कभी मदुरै नहीं आऊंगा। यह कहकर भगवान विष्णु प्रस्थान कर गए। भगवान शिव मंद-मंद मुस्करा कर बोले- पाणिग्रहण तो भगवान विष्णु ही करेंगे। उस समय भगवान विष्णु दूसरे स्थान पर जाकर मौन धारण कर बैठ गए। सभी देवी-देवता उनके पीछे-पीछे वहां पहुंचे।

इसके बाद मनाने का दौर शुरू हुआ। लाख कोशिशों के बावजूद भगवान विष्णु नहीं मानें। तब किसी देवता ने कहा कि भगवान शिव भी जिद कर बैठे हैं कि पाणिग्रहण तो विष्णु जी ही करेंगे। जब तक भगवान विष्णु जी आते नहीं है, तब तक मैं भी मदुरै से नहीं जाऊंगा। यह जान भगवान विष्णु सहमत हो गए। इसके बाद भगवान विष्णु ने पाणिग्रहण कराया और धूमधाम से भगवान शिव और राजा मलयध्वज पांड्या की पुत्री का विवाह हुआ। राजा मलयध्वज पांड्या की पुत्री कोई और नहीं बल्कि मां पार्वती थी। राजा मलयध्वज पांड्या की पुत्री का नाम मीनाक्षी था। मदुरै में मां पार्वती को समर्पित मीनाक्षी सुन्दरेश्वर मंदिर है। इस मंदिर में भगवान शिव और मां पार्वती की प्रतिमा स्थापित है। इस मंदिर का निर्माण स्वर्ग नरेश इंद्र देव ने कराया था।

कहां है मीनाक्षी सुन्दरेश्वर मंदिर ?

मीनाक्षी सुन्दरेश्वर मंदिर तमिलनाडु के मदुरै में स्थित है। मंदिर तीन हजार साल से अधिक पुराना है। मीनाक्षी सुन्दरेश्वर मंदिर वास्तुकला का अनुपम उदाहरण है। इस मंदिर में भगवान शिव की नटराज रूपी प्रतिमा भी विराजमान है। इसके अलावा, भगवान गणेश का भी मंदिर है। इस मंदिर में देवों के देव महादेव के अनुज पुत्र भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित है। मीनाक्षी मंदिर का निकटतम रेलवे स्टेशन और एयरपोर्ट मदुरै में है। श्रद्धालु अपनी सुविधा के अनुसार रेल या वायु मार्ग के जरिए मदुरै पहुंच सकते हैं। मंदिर खुलने का समय सुबह 05 बजे से लेकर दोपहर 12 बजे तक है। इसके बाद शाम 04 बजे से लेकर रात 10 बजे तक है। इस समय में साधक आराध्य भगवान शिव एवं मां पार्वती के दर्शन कर सकते हैं।

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