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Shani Shingnapur: इस गांव में घर के मुख्य द्वार पर कभी नहीं लगाया जाता है ताला, वजह जानकर आप भी हो जाएंगे हैरान

शनिदेव का वर्ण श्याम है। इनके हाथ में धनुष है तो दूसरा हाथ वर मुद्रा में है। इससे समस्त जगत का कल्याण होता है। शनिदेव को न्याय का देवता कहा जाता है। अतः शनिदेव हमेशा व्यक्ति के साथ न्याय करते हैं। अच्छे कर्म करने वाले लोगों पर शनिदेव की कृपा बरसती है। वहीं बुरे कर्म करने वाले को दंड देते हैं। शनिदेव को नीला रंग अति प्रिय है।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Sun, 02 Jun 2024 09:36 PM (IST)
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Shani Shingnapur: इस गांव में घर के मुख्य द्वार पर कभी नहीं लगाया जाता है ताला
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Shani Shingnapur Mandir: शनिवार का दिन न्याय के देवता शनि देव को समर्पित होता है। इस दिन शनिदेव की पूजा-अर्चना की जाती है। साथ ही शनिदेव की कृपा पाने के लिए शनिवार का व्रत भी रखते हैं। सनातन शास्त्रों में निहित है कि ज्येष्ठ अमावस्या तिथि पर शनिदेव का अवतरण हुआ है। इसके लिए हर वर्ष ज्येष्ठ अमावस्या पर शनि जयंती मनाई जाती है। इस दिन शनिदेव की विशेष भक्ति-उपासना की जाती है। साधक शनिदेव के निमित्त व्रत भी रखते हैं।  ज्योतिषियों की मानें तो कुंडली में शनिदेव की अशुभ दृष्टि पड़ने, शनि की ढैय्या और साढ़े साती के दौरान व्यक्ति को जीवन में विषम परिस्थिति से गुजरना पड़ता है। अतः नियमित रूप से शनिदेव की पूजा-उपासना करनी चाहिए। धार्मिक मत है कि शनिदेव की कृपा से व्यक्ति को सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है। इसके लिए शनिदेव को मोक्ष प्रदाता भी कहा जाता है। शनिदेव अच्छे कर्म करने वाले जातक को शुभ फल देते हैं। वहीं, बुरे कर्म करने वाले को दंडित करते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि देश में एक ऐसा गांव भी है। जहां लोग अपने घर के मुख्य द्वार पर सुबह-शाम, दिन और रात किसी समय ताला नहीं लगाते हैं ? आइए, इसके बारे में सबकुछ जानते हैं-

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सिद्धपीठ मंदिर

भारत में शनिदेव के तीन सिद्धपीठ मंदिर हैं। इनमें प्रथम महाराष्ट्र के अहमदनगर में स्थित शनि शिंगणापुर मंदिर है। वहीं, दूसरा सिद्धपीठ मंदिर मध्य प्रदेश के मुरैना जिले में अवस्थित है। इस सिद्धपीठ स्थान को शनिचरा मंदिर के नाम से जाना जाता है। जबकि, तीसरा सिद्धपीठ मंदिर उत्तर प्रदेश के मथुरा स्थित कोसी कलां में है। इन तीनों सिद्ध पीठ मंदिरों की प्रसिद्धि दुनियाभर में है। बड़ी संख्या में श्रद्धालु शनिदेव की पूजा और आशीर्वाद के लिए सिद्धपीठ मंदिर आते हैं। धार्मिक मत है कि सिद्धपीठ मंदिर में शनिदेव की पूजा करने से साधक को कुंडली में व्याप्त सभी प्रकार के अशुभ प्रभावों से मुक्ति मिलती है। शनि की साढ़े साती और ढैय्या से भी निजात मिलती है। कोकिला वन में जगत के पालनहार भगवान श्रीकृष्ण ने कोयल रूप में शनिदेव को दर्शन दिए थे। अतः इसे कोकिला वन कहा जाता है।

कथा

सनातन शास्त्रों में निहित है कि प्राचीन समय में एक चरवाहा संध्याकाल में गायों को चरा रहा था। तभी उसे एक काला पत्थर दिखाई दिया। चरवाहे ने अपने पास मौजूद नुकीली औजार से पत्थर को कुरेदने की कोशिश की। चरवाहे द्वारा नुकीली औजार से पत्थर को स्पर्श करते ही रक्त टपकने लगा। यह देख चरवाहा हैरान हो गया। वह दौड़कर अन्य लोगों को बुलाया और उन्हें स्थिति से अवगत कराया। सभी लोगों ने दैवीय चमत्कार समझ पत्थर को छूकर प्रणाम किया। उसी रात चरवाहे को सपने में न्याय के देवता शनिदेव आए और कहा कि वह काला पत्थर कोई और नहीं मेरा रूप है। यह सुन चरवाहे ने सबसे पहले शनिदेव को प्रणाम किया। इसके बाद कहा- क्या उसे मंदिर बनाने की आवश्यकता है ? उस समय शनिदेव बोले- मंदिर बन सकते हैं। हालांकि, मंदिर में छत की आवश्यकता नहीं है। चरवाहा शनिदेव को देख बोले- ऐसा ही होगा प्रभु! इसके बाद शनिदेव बोले- प्रतिदिन पूजा और तेल से अभिषेक करने वाले व्यक्ति पर मेरी विशेष कृपा बरसेगी। तुम सबकी रक्षा मैं करूंगा। साथ ही तुम्हारे घर-द्वार, निज संपत्ति सभी चीजों की रक्षा करूंगा। अगर कोई जाने या अनजाने में भी इस गांव से कुछ चुराने की कोशिश करेगा। उसे मैं दंड दूंगा। तत्कालीन समय से शनि शिंगणापुर गांव में किसी भी घर के मुख्य द्वार पर ताला नहीं लगाया जाता है। कई घरों में दरवाजे और खिड़कियां भी नहीं हैं।

कहां है शनि शिंगणापुर मंदिर ?

शनि शिंगणापुर मंदिर महाराष्ट्र के अहमदनगर में स्थित है। अहमदनगर से शनि शिंगणापुर मंदिर की दूरी लगभग 35 किलोमीटर है। श्रद्धालु हवाई मार्ग के जरिए नासिक के रास्ते अहमदनगर पहुंच सकते हैं। वहीं, रेल मार्ग के जरिए भी श्रद्धालु नाशिक पहुंच सकते हैं। इसके बाद नाशिक से अहमदनगर जा सकते हैं। इसके लिए सड़क मार्ग का भी चयन कर सकते हैं। नासिक से अहमदनगर होकर शनि शिंगणापुर मंदिर पहुंचने के लिए उत्तम व्यवस्था है।

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अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।