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Pitru Paksha 2024: पितृ पक्ष में क्यों किया जाता है गंगा स्नान? जानें कैसे हुआ पवित्र नदी का पृथ्वी पर अवतरण?

सनातन धर्म में गंगाजल को अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। इसका प्रयोग पूजा-पाठ में किया जाता है और किसी शुभ तिथि पर गंगा स्नान किया जाता है। इसके अलावा पितृ पक्ष में भी गंगा स्नान का विशेष महत्व है। पितृ पक्ष की अवधि 16 दिनों की होती है। आइए जानते हैं पितृ पक्ष (Pitru Paksha 2024 Ganga Snan) में क्यों किया जाता है गंगा स्नान?

By Kaushik Sharma Edited By: Kaushik Sharma Updated: Wed, 11 Sep 2024 03:09 PM (IST)
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मां गंगा के अवतरण से जुड़ी कथा
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। पितृ पक्ष (Pitru Paksha 2024) के दौरान शुभ और मांगलिक कार्य करना वर्जित है। इस बार पितृ पक्ष की शुरुआत 17 सितंबर से होगी। वहीं, इसका समापन 02 अक्टूबर को होगा। ऐसी मान्यता है कि पितृपक्ष में गंगा स्नान (why we do Ganga snan in Pitru Paksha) करने से साधक को सभी पापों से मुक्ति मिलती है और देवी-देवताओं की कृपा प्राप्त होती है। क्या आपको पता है कि मां गंगा का पृथ्वी पर अवतरण कैसे हुआ? अगर नहीं पता, तो आइए पढ़ते हैं इससे जुड़ी कथा।  

ऐसे हुआ मां गंगा का अवतरण

पौराणिक कथा के अनुसार, राजा बलि ने जगत के पालनहार भगवान विष्णु को प्रसन्न किया था, जिसकी वजह से उसने पृथ्वी पर अपना अधिकार जमा लिया था और खुद को देवता मानने लगा। उसने देवराज इंद्र को युद्ध के लिए ललकारा। इस स्थिति में देवराज इंद्र ने श्रीहरि से सहायता मांगी।  

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इस दौरान प्रभु ने राजा बलि के उद्धार के लिए वामन रूप में अवतरित हुए। तब राजा बलि राज्य में सुख-शांति और समृद्धि के लिए अश्वमेध यज्ञ करवा रहे थे। तब भगवान विष्णु वामन रूप में राजा बलि के पास पहुंचे।

राजा बलि ने ब्राह्मण से मांगा दान

राजा बलि को महसूस हुआ कि प्रभु उसके पास आए हैं। राजा बलि ने जब ब्राह्मण से दान मांगने के लिए कहा, तभी भगवान वामन ने राजा बलि से तीन कदम जमीन दान के रूप में मांगी। इस बात को सुनकर राजा बलि तैयार हो गए। तब भगवान विष्णु ने अपना विकराल रूप धारण किया। उनका पैर इतना बड़ा हो गया गए कि उन्होंने पूरी पृथ्वी को एक पैर से नाप लिया और दूसरे पग से पूरे आसमान को।

पाताल लोक में समाया राजा बलि

ऐसे में वामन भगवान ने प्रश्न किया कि वह अपना तीसरा पग कहां रखें। तो राजा बलि ने कहा कि 'मेरे पास देने के लिए और कुछ नहीं है' और अपना शीश झुका कर कहा कि वह अपना तीसरा पग उसके शरीर पर रख दें। तब वामन भगवान ने ऐसा ही किया और ऐसे राजा बलि पाताल लोक में समा गया।

इसके बाद श्रीहरि ने जब अपना दूसरा पैर आकाश की तरफ उठाया था, तो ब्रह्मा जी ने उनके चरण धोए और कमंडल में उस जल को भर लिया था। तब जल के तेज से  कमंडल में ही मां गंगा का जन्म हुआ और कुछ समय के पश्चात ब्रह्मा जी ने उन्हें पर्वतराज हिमालय को पुत्री के रूप में सौंप दिया था।

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अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।