Ganesh Chaturthi 2025: भगवान गणेश को क्यों कहा जाता है 'विघ्नराज'? यहां पढ़ें पौराणिक कथा
हर साल भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से लेकर चतुर्दशी तिथि तक गणेश महोत्सव (Ganesh Chaturthi 2025) मनाया जाता है। इस शुभ अवसर पर भगवान गणेश की भक्ति भाव से पूजा की जाती है। यह पर्व महाराष्ट्र समेत देश के कई राज्यों में धूमधाम से मनाया जाता है।
दिव्या गौतम, एस्ट्रोपत्री। ऐसा कहा जाता है की “ हरि अनंत , हरि कथा अनंता”| ईश्वर के सभी रूपों की और उनकी कथाओं की भी कोई सीमा या परिधि नहीं है! हम सब के प्यारे विनायक भगवान के बारे में भी अनेकानेक कथाएं प्रचलित हैं।
हिंदू धर्म में गणेश जी को विघ्नहर्ता और मंगलकर्ता माना गया है। हर शुभ कार्य से पहले उनकी पूजा करने की परंपरा है।गणेश जी के विभिन्न रूपों और अवतारों का वर्णन पुराणों और लोक कथाओं में मिलता है।
जब-जब दुष्ट असुरों ने देवताओं और संसार में अशांति फैलाई, तब-तब गणपति बप्पा ने अलग-अलग अवतार लेकर उनका नाश किया और धर्म की रक्षा की। इन्हीं आठ स्वरूपों को अष्टविनायक कहा जाता है। आइए, गणेश चतुर्थी के पावन अवसर पर इन आठ अवतारों की विशेषताओं और उनसे जुड़ी पौराणिक कथाओं को जानते हैं।
वक्रतुंड अवतार
मत्सरासुर नाम का राक्षस शिवजी का बड़ा भक्त था। उसने वरदान पाया कि उसे किसी भी प्राणी से डर नहीं लगेगा। वरदान के घमंड में वह और उसके दो बेटे देवताओं को बहुत सताने लगे। देवता डरकर गणेश जी को पुकारने लगे। तब गणेश जी वक्रतुंड रूप में आए और अपने भयंकर स्वरूप से मत्सरासुर और उसके दोनों बेटों का वध कर दिया। देवताओं को फिर से शांति और निर्भयता मिली।
एकदंत अवतार
महर्षि च्यवन की तपस्या से ‘मद’ नामक असुर पैदा हुआ। यह च्यवन ऋषि का पुत्र तो था, लेकिन बाद में दैत्य गुरु शुक्राचार्य से शिक्षा लेकर देवताओं को परेशान करने लगा। जब उसका आतंक बढ़ा, तो देवताओं ने गणेश जी को याद किया। गणेश जी एकदंत रूप में प्रकट हुए और मदासुर को युद्ध में हरा दिया। फिर उन्होंने देवताओं को भरोसा दिलाया कि वे हमेशा उनकी रक्षा करेंगे।
महोदर अवतार
शुक्राचार्य ने मोहासुर नाम का राक्षस तैयार किया और उसे देवताओं से लड़ने भेजा। मोहासुर की वजह से देवता भयभीत हो गए। तभी गणेश जी महोदर रूप में प्रकट हुए। बड़े पेट वाले महोदर मूषक पर सवार होकर युद्ध भूमि में पहुँचे। उनके तेज को देखकर मोहासुर डर गया और बिना युद्ध किए ही गणेश जी को अपना आराध्य मान लिया।
विकट अवतार
पौराणिक कथा के अनुसार कामासुर भगवान विष्णु का अंश था, जिसकी उत्पत्ति जालंधर की पत्नी का सतीत्व भंग होने से हुई। शुक्राचार्य से शिक्षा प्राप्त कर उसने सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को जीतने की ठानी और भगवान शिव की कठोर तपस्या की। उसने अन्न-जल त्याग दिया और पंचाक्षरी मंत्र का जाप करते हुए अपना शरीर तप से क्षीण कर लिया। प्रसन्न होकर शिवजी ने उसे ब्रह्माण्ड का स्वामी, शिव भक्ति और मृत्युंजयी होने का वरदान दिया।
वरदान पाकर कामासुर ने पृथ्वी और स्वर्ग दोनों पर विजय प्राप्त कर ली। उसके अत्याचारों से त्रस्त देवताओं और ऋषियों ने महर्षि मुद्गल के मार्गदर्शन में गणेश जी की उपासना की। प्रसन्न होकर गणपति बप्पा ने विकट अवतार लिया, मयूर पर सवार होकर युद्ध किया और कामासुर को पराजित कर उसकी अहंकार रूपी ज्वाला शांत कर दी।
गजानन अवतार
कुबेर के लोभ से लोभासुर नाम का असुर पैदा हुआ। उसने कठोर तप करके शिवजी से निर्भय होने का वरदान पा लिया और तीनों लोकों पर कब्जा जमा लिया। देवता घबराकर गणेश जी की शरण में गए। गणेश जी गजानन रूप में प्रकट हुए। लोभासुर ने उन्हें देखा तो समझ गया कि उनसे युद्ध करना नामुमकिन है। इसलिए उसने बिना लड़े ही आत्मसमर्पण कर दिया। देवताओं को फिर शांति मिली।
लंबोदर अवतार
क्रोधासुर नामक राक्षस ने सूर्यदेव को खुश कर वरदान पाया कि वह ब्रह्मांड को जीत सके। वरदान के बाद उसने सब ओर आतंक फैलाना शुरू किया। देवता डर गए और गणेश जी को पुकारा। तब गणेश जी लंबोदर रूप में आए। उन्होंने क्रोधासुर को समझाया कि ब्रह्मांड पर विजय असंभव है। गणेश जी की बातें सुनकर क्रोधासुर ने अपना अभियान छोड़ दिया और पाताल लोक चला गया।
विघ्नराज अवतार
माता पार्वती की हंसी से ‘मम’ नामक असुर पैदा हुआ। उसने तप और दैत्य शक्तियों के बल पर ममासुर बनकर देवताओं को कैद करना शुरू कर दिया। परेशान देवताओं ने गणेश जी से मदद मांगी। गणेश जी विघ्नराज रूप में प्रकट हुए और ममासुर को युद्ध में हराकर देवताओं को मुक्त किया। तभी से गणेश जी को विघ्नहर्ता कहा जाने लगा।
धूम्रवर्ण अवतार
एक बार सूर्यदेव को घमंड हो गया। उनकी छींक से ‘अहम’ नामक असुर पैदा हुआ, जो आगे चलकर अहंतासुर कहलाया। उसने तप करके गणेश जी से वरदान पाया और फिर देवताओं को सताने लगा। देवताओं ने फिर गणेश जी को पुकारा। इस बार गणेश जी धूम्रवर्ण रूप में आए। उनका शरीर धुएँ जैसा विकराल था और हाथ में अग्नि से जलता हुआ पाश था। उन्होंने अहंतासुर का वध कर देवताओं को अहंकार से मुक्ति दिलाई।
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लेखक: दिव्या गौतम, Astropatri.com अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए hello@astropatri.com पर संपर्क करें।
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