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Ramcharitmanas: जानें, क्यों तुलसीदास कृत रामचरितमानस पर भगवान श्रीराम का नहीं है हस्ताक्षर?

तुलसीदास को अपनी धर्मपत्नी से अगाध प्रेम था। विवाह के कुछ वर्षों के पश्चात ही तुलसीदास को पुत्र की प्राप्ति हुई। हालांकि कालचक्र को कुछ और मंजूर था। एक दिन तुलसीदास के पुत्र का निधन हो गया। पुत्र के निधन से तुलसीदास और उनकी पत्नी रत्नावली पूरी तरह से टूट गए। इस सदमे को सहने की शक्ति रत्नावली में नहीं रह गई थी। तुलसीदास की प्रमुख रचना रामचरितमानस (Ramcharitmanas) है।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Mon, 15 Jul 2024 11:30 PM (IST)
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Tulsidas' Ramcharitmanas: राम भक्त तुलसीदास को पत्नी रत्नावली से कैसे हुई विरक्ति?
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Tulsidas: हर वर्ष सावन माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि पर तुलसीदास जयंती मनाई जाती है। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के परम भक्त तुलसीदास का जन्म सन 1511 ईं. में हुआ था। उन्होंने अपने जीवनकाल में कई प्रमुख सनातन ग्रंथों की रचना की है। इनमें रामचरितमानस, हनुमान चालीसा और विनय पत्रिका प्रमुख हैं। इसके अलावा, कई अन्य प्रमुख रचनाएं भी की हैं। वर्तमान समय में हनुमान चालीसा सबसे अधिक पढ़ी जाती है। इतिहासकारों की मानें तो तुलसीदास की अंतिम रचना विनय पत्रिका है। इस रचना पर मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के हस्ताक्षर हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि तुलसीदास कृत रामचरितमानस पर भगवान श्रीराम का हस्ताक्षर क्यों नहीं है ? आइए, इसके बारे में सबकुछ जानते हैं-

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तुलसीदास का मोह भंग

इतिहासकारों की मानें तो अपने प्रारंभिक जीवन में तुलसीदास गृहस्थ जीवन व्यतीत करते थे। उन्हें अपनी धर्मपत्नी से अगाध स्नेह था। विवाह के कुछ वर्ष पश्चात तुलसीदास को पुत्र की प्राप्ति हुई। हालांकि, कालचक्र को कुछ और मंजूर था। एक दिन तुलसीदास के पुत्र का निधन हो गया। पुत्र के निधन से तुलसीदास और उनकी पत्नी रत्नावली पूरी तरह से टूट गए। इस सदमे को सहने की शक्ति रत्नावली में नहीं रह गई थी।

उस समय रत्नावली के घरवाले उन्हें मायके लेकर चले गए। रत्नावली अपने मायके में रहने लगीं। इसी दौरान एक दिन तुलसीदास को रत्नावली से मिलने की इच्छा हुई। ऐसा कहा जाता है कि सावन या भाद्रपद के समय में तुलसीदास को अपनी पत्नी से मिलने की इच्छा हुई थी। नदी पानी से भरा था। इसके बावजूद तुलसीदास नदी पार देर रात रत्नावली से मिलने अपने ससुराल जा पहुंचे।

उस समय तुलसीदास के मन में यह विचार चल रहा था कि उन्हें देखकर रत्नावली खुश होगी। हालांकि, तुलसीदास के देर रात चुपके से घर आना नागवार गुजरा। उस समय रत्नावली ने तुलसीदास को भला-बुरा कहा। साथ ही सलाह दी कि अपने चित्त को अन्य कार्यों में लिप्त करें। यह सुन तुलसीदास भावुक हो उठे और ससुराल से घर लौट आए।

हनुमान जी से मिलन

राम भक्त तुलसीदास पत्नी से विरक्ति होने के बाद गुरु नृसिंह चौधरी से दीक्षा ली। इसके बाद राम की भक्ति में लीन हो गए। इस अवधि में कुछ दिनों तक राजापुर में अपना जीवन व्यतीत किया। इसके बाद बाबा की नगरी काशी पहुंच गए। एक दिन की बात है, राम कथा सुनाने के दौरान तुलसीदास की भेंट अद्भुत शक्ति से हुई। उस शक्ति ने ही तुलसीदास को हनुमान जी से मिलने का पता बताया। तत्कालीन समय में तुलसीदास का मिलन हनुमान जी से हुआ। उस समय तुलसीदास ने राम जी से मिलने की इच्छा प्रकट की। तब हनुमान जी ने उन्हें चित्रकूट जाने की सलाह दी। इसी स्थान पर तुलसीदास की भेंट रामजी से हुई।

अयोध्या से काशी की यात्रा

भगवान श्रीराम (Lord Shri Ram) से मिलने के बाद तुलसीदास अयोध्या की ओर कूच कर गए। इस दौरान तुलसीदास प्रयाग में रुके। प्रयाग में तुलसीदास का मिलन भरद्वाज मुनि से भेंट हुई। इसके बाद तुलसीदास काशी आ गए। यहां एक ब्राह्मण के गृह पर रुकना हुआ। तभी उन्हें काव्य रचना करने की इच्छा हुई। तत्क्षण तुलसीदास संस्कृत में पद्य रचना करने लगे। हालांकि, तुलसीदास जो भी लिखते थे। वह रात्रि में विलुप्त हो जाता था। यह क्रम सात दिनों तक चला। अगले दिन पुनः तुलसीदास ने रचना की।

हालांकि, रात के समय भगवान शिव स्वप्न में आकर तुलसीदास को अयोध्या जाकर अपनी भाषा में काव्य रचना करने की सलाह दी। इसके बाद तुलसीदास अयोध्या जाकर रामचरितमानस की रचना की। रामचरितमानस पूरी होने के बाद तुलसीदास पुनः काशी लौटे और विश्वनाथ मंदिर में भगवान शिव और मां पार्वती को रामचरितमानस सुनाया। उस रात तुलसीदास ने रचना मंदिर में ही छोड़ दिया। अगली सुबह जब मंदिर का पट खोला गया तो  तुलसीदास कृत रामचरितमानस पर भगवान शिव के हस्ताक्षर थे। इतिहासकारों की मानें तो तुलसीदास कृत रामचरितमानस पर भगवान शिव और अंतिम रचना विनय पत्रिका पर भगवान श्रीराम के हस्ताक्षर हैं।

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अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।