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Shukra Dev: आखिर किस वजह से सुखों के कारक शुक्र देव को बनना पड़ा असुरों का गुरु?

शुक्र देव श्वेत वर्ण के हैं। इनमें स्त्रीत्व का गुण अधिक है। इसके लिए ज्योतिष शुक्र देव को स्त्री ग्रह मानते हैं। इस बारे में उनका कहना है कि शुक्र देव में स्त्रीत्व स्वभाव अधिक है। शुक्र देव चार भुजाधारी हैं। इनके हाथों में क्रमशः माला दंड कमंडल हैं। एक हाथ वरदान मुद्रा में है। भगवान शिव की भक्ति करने के चलते शुक्र देव को नवग्रहों में स्थान प्राप्त है।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Thu, 16 May 2024 07:22 PM (IST)
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Shukra Dev: आखिर किस वजह से सुखों के कारक शुक्र देव को बनना पड़ा असुरों का गुरु?
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Shukra Dev: ज्योतिष शास्त्र में दैत्यों के गुरु शुक्र देव को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। कुंडली में शुक्र ग्रह मजबूत होने से जातक को सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है। ज्योतिषियों की मानें तो शुक्र देव वृषभ और तुला राशि के स्वामी हैं। वहीं, मीन राशि में उच्च के होते हैं। अतः मीन राशि के जातकों पर शुक्र देव की विशेष कृपा बरसती है। उनकी कृपा से जातक को जीवन में किसी भी चीज की कमी नहीं होती है। कुंडली में शुक्र की महादशा 20 वर्षों तक चलती है। इस दौरान क्रमशः शुक्र, सूर्य, चंद्र, मंगल, राहु, गुरु, शनि, बुध और केतु की अंतर्दशा चलती है। शुक्र की अंतर्दशा तीन साल तीन महीने की होती है। शुक्र देव एक राशि में 25 दिनों तक रहते हैं। इसके बाद एक राशि से निकलकर दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि आखिर किस वजह से शुक्र देव को दैत्यों का गुरु बनना पड़ा ? आइए, इससे जुड़ी पौराणिक कथा जानते हैं-

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कौन हैं शुक्र देव ?

दैत्यों के गुरु शुक्र देव के पिता का नाम भृगु ऋषि हैं और मां काव्यमाता हैं। इन्होंने सर्वप्रथम अंगिरस से विद्या प्राप्त की। हालांकि, देवताओं के गुरु बृहस्पति के प्रति ऋषि अंगिरस के अत्यधिक स्नेह के चलते शुक्र देव ने अपनी शिक्षा बीच में ही छोड़ दी। इसके बाद गौतम ऋषि से शुक्र देव ने शिक्षा ग्रहण की। इसी समय गौतम ऋषि ने शुक्र देव को भगवान शिव की पूजा-भक्ति करने की सलाह दी। शास्त्रों में निहित है कि शुक्र देव ने देवों के देव महादेव की कठिन भक्ति कर वरदान में संजीवनी मंत्र प्राप्त की। इस मंत्र के बल से किसी भी मृत व्यक्ति को पुनर्जीवित किया जा सकता है। इस विद्या के बल से शुक्र देव ने बड़ी संख्या में मृत दानवों को पुनर्जीवित किया था।

स्वरूप

शुक्र देव श्वेत वर्ण के हैं। इनमें स्त्रीत्व का गुण अधिक है। इसके लिए ज्योतिष शुक्र देव को स्त्री ग्रह मानते हैं। इस बारे में उनका कहना है कि शुक्र देव में स्त्रीत्व स्वभाव अधिक है। शुक्र देव चार भुजाधारी हैं। इनके हाथों में क्रमशः माला, दंड, कमंडल हैं। एक हाथ वरदान मुद्रा में है। भगवान शिव की भक्ति करने के चलते शुक्र देव को नवग्रहों में स्थान प्राप्त हुआ है। जिन अविवाहित जातकों की कुंडली में शुक्र मजबूत होता है। उनकी शादी शीघ्र हो जाती है। साथ ही मनचाहा जीवनसाथी मिलता है। इसके लिए ज्योतिष कुंडली में शुक्र ग्रह मजबूत करने की सलाह देते हैं।  

कथा

चिरकाल में देवताओं और दानवों के मध्य कई बार भीषण युद्ध हुआ। कई बार देवता परास्त हुए, तो कई बार दानवों को पराजय का सामना करना पड़ा। स्वर्ग के श्रीविहीन होने के बाद दानवों ने स्वर्ग लोक पर अपना अधिपत्य स्थापित कर लिया। उस समय देवता श्रीहरि के शरण में गए। उन्होंने समुद्र मंथन की सलाह दी। तत्कालीन समय में देवताओं ने दानवों की सहायता से समुद्र मंथन किया। इससे अमृत प्राप्त हुआ। देवता अमृतपान कर अमर हो गए। इसके बाद दानवों को देवताओं ने परास्त किया। यह क्रम चलता रहा। कई बार श्रेष्ठता हेतु युद्ध हुआ।

अमृत पान के बाद दानवों को हर बार पराजय का सामना करना पड़ा था। इस दौरान मृत्यु भय के चलते कई दानव काव्य माता के आश्रम में जाकर छिप गए थे। ऐसा कहा जाता है कि दानवों की सहायता और अपना धर्म निर्वाह के चलते शुक्र देव की माता को सद्गति प्राप्त हुई थी। कालचक्र की दूसरी ओर शुक्र देव भगवान शिव की तपस्या में लीन थे। शुक्र देव की कठिन भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने दर्शन देकर वर मांगने को कहा। उस समय शुक्र देव ने भगवान शिव से संजीवनी मंत्र वरदान में माँगा। भगवान शिव तथास्तु कहकर अंतर्ध्यान हो गए।

तपस्या पूर्ण होने के बाद शुक्र देव आश्रम लौटे, तो उन्हें मां की मृत्यु का बोध हुआ। अपने तपोबल से उन्हें यह ज्ञान हुआ कि उनकी मां का वध भगवान विष्णु ने किया। इसके बाद शुक्र देव ने संजीवनी मंत्र की सहायता से अपनी मां को पुनर्जीवित किया। साथ ही युद्ध में मारे गए दानवों को भी पुनर्जीवित किया और घायलों को स्वस्थ किया। इस समय शुक्र देव ने दानवों को अपना शिष्य बनाया। साथ ही भगवान विष्णु को मनुष्य रूप में जन्म लेने का श्राप दिया।      

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अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।