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Krishna Janmashtami 2023: जानें, क्यों अधूरी रह गई भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी की प्रेम कहानी ?

Krishna Janmashtami 2023 सनातन शास्त्रों में निहित है कि भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भगवान श्रीकृष्ण धरा पर अवतरित हुए हैं। अतः इस दिन भगवान श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप और राधा रानी की पूजा-उपासना की जाती है। साथ ही साधक निर्जला उपवास भी रखते हैं। धार्मिक मान्यता है कि श्रीजी और भगवान कृष्ण की पूजा करने से साधक की सभी मनोकामनाएं यथाशीघ्र पूर्ण होती हैं।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Wed, 06 Sep 2023 02:07 PM (IST)
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Krishna Janmashtami 2023: जानें, क्यों अधूरी रह गई भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी की प्रेम कहानी ?
नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क । Krishna Janmashtami 2023: आज भगवान श्रीकृष्ण का 5250 वां जन्मोत्सव मनाया जा रहा है। सनातन शास्त्रों में निहित है कि भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भगवान श्रीकृष्ण धरा पर अवतरित हुए हैं। अतः इस दिन भगवान श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप और राधा रानी की पूजा-उपासना की जाती है। साथ ही साधक निर्जला उपवास भी रखते हैं। धार्मिक मान्यता है कि श्रीजी और भगवान कृष्ण की पूजा करने से साधक की सभी मनोकामनाएं यथाशीघ्र पूर्ण होती हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि भगवान श्रीकृष्ण का राधा रानी जी से किस प्रकार का रिश्ता था ? आइए, इसके बारे में सबकुछ जानते हैं-

भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी के मध्य आत्मीय संबंध था। जब भगवान नारायण द्वापर युग में पृथ्वी पर मानव रूप में अवतरित हुए, तो माता लक्ष्मी भी भगवान के साथ मृत्यु लोक में रहने राधा रूप में प्रकट हुईं। हालांकि, दोनों जीवन पर्यन्त एक होकर नहीं रह सकें। सनातन शास्त्रों में निहित है कि द्वापर युग में वृंदावन से मथुरा जाने के क्रम में भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीजी को वचन दिया था कि भविष्य में उनका मिलन अवश्य होगा, किंतु ऐसा नहीं हो सका। भगवान श्रीकृष्ण वृन्दावन लौटकर नहीं आए। भगवान के इंतजार में राधा रानी लंबे समय तक वियोग में रहीं। इस दौरान उनकी शादी  रुक्मिणी से हुई। लंबे समय तक जब भगवान श्रीकृष्ण नहीं लौटे, तो राधा रानी भी परिणय सूत्र में बंध गईं। ऐसा कहा जाता है कि राधा रानी का विवाह भगवान श्रीकृष्ण की माता के भाई रायाण से हुआ। इस रिश्ते से राधा रानी, भगवान श्रीकृष्ण की मामी बन गई।

कई शास्त्रों में यह भी उल्लेख है कि ब्रह्मदेव ने स्वंय राधा रानी और भगवान का गंधर्व विवाह कराया था। वहीं, कई प्रसंगों में यह भी कहा गया है कि बाल्यावस्था में दोनों का विवाह हुआ था। एक अन्य प्रसंग भी कृष्ण विरह से जुड़ा है। ऐसा कहा जाता है कि चिरकाल में नारद जी, माता लक्ष्मी संग विवाह करना चाहते थे, लेकिन भगवान नारायण ने उनकी यह मनोकामना पूरी नहीं होने दी थी। इससे क्रोधित होकर नारद जी ने नारायण को वियोग का श्राप दिया था। उस शाप के फलस्वरूप त्रेता युग में भगवान राम को माता सीता का और द्वापर युग में राधा रानी का वियोग मिला।

डिसक्लेमर- इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।