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Chaiti Chhath 2024: पवित्रता और समृद्धि का प्रतीक है चैती छठ, जरूर करें इस स्तुति का पाठ

भारतीय संस्कृति में कई नदियों को माता का दर्जा दिया गया है साथ ही उन्हें पूजनीय भी माना गया है। यमुना नदी भी पवित्र नदिओं में से एक है। वहीं यमुना छठ को उत्तर भारत के कई शहरों में बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। ऐसे में आप यमुना छठ पर इस स्तुति का पाठ करके शुभ फलों की प्राप्ति कर सकते हैं।

By Suman Saini Edited By: Suman Saini Updated: Wed, 10 Apr 2024 03:59 PM (IST)
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Yamuna Chhath 2024 यमुना छठ पर जरूर करें इस स्तुति का पाठ।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Chaiti Chhath Puja 2024: मान्यताओं के अनुसार, साल में दो बार छठ का पर्व मनाया जाता है। चैत्र माह में आने वाली छठ को चैती छठ और कार्तिक माह में मनाई जाने वाली छठ को कार्तिकी छठ के रूप में जाना जाता है। चैती छठ चैत्र माह की कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि पर मनाई जाती है, जिसे यमुना छठ भी कहा जाता है। यमुना छठ के दिन लोग यमुना नदी में स्नान और पूजा-पाठ आदि करते हैं।

यमुना छठ शुभ मुहूर्त (Chaiti Chhath 2024 Shubh Muhurat)

चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि 13 अप्रैल को दोपहर 12 बजकर 04 मिनट पर शुरू हो रही है। वहीं, इसका समापन 14 अप्रैल को सुबह 11 बजकर 43 मिनट पर होगा। ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, यमुना छठ का पर्व 14 अप्रैल 2024 रविवार के दिन मान्य होगा।

यमुना जी की श्री यमुनाष्टक स्तुति (Shri Yamunaashtak Stuti)

नमामि यमुनामहं सकल सिद्धि हेतुं मुदा,

मुरारि पद पंकज स्फ़ुरदमन्द रेणुत्कटाम ।

तटस्थ नव कानन प्रकटमोद पुष्पाम्बुना,

सुरासुरसुपूजित स्मरपितुः श्रियं बिभ्रतीम । १ ।

कलिन्द गिरि मस्तके पतदमन्दपूरोज्ज्वला,

विलासगमनोल्लसत्प्रकटगण्ड्शैलोन्न्ता ।

सघोषगति दन्तुरा समधिरूढदोलोत्तमा,

मुकुन्दरतिवर्द्धिनी जयति पद्मबन्धोः सुता । २ ।

भुवं भुवनपावनी मधिगतामनेकस्वनैः,

प्रियाभिरिव सेवितां शुकमयूरहंसादिभिः ।

तरंगभुजकंकण प्रकटमुक्तिकावालूका,

नितन्बतटसुन्दरीं नमत कृष्ण्तुर्यप्रियाम । ३ ।

अनन्तगुण भूषिते शिवविरंचिदेवस्तुते,

घनाघननिभे सदा ध्रुवपराशराभीष्टदे ।

विशुद्ध मथुरातटे सकलगोपगोपीवृते,

कृपाजलधिसंश्रिते मम मनः सुखं भावय । ४ ।

यया चरणपद्मजा मुररिपोः प्रियं भावुका,

समागमनतो भवत्सकलसिद्धिदा सेवताम ।

तया सह्शतामियात्कमलजा सपत्नीवय,

हरिप्रियकलिन्दया मनसि मे सदा स्थीयताम । ५ ।

नमोस्तु यमुने सदा तव चरित्र मत्यद्भुतं,

न जातु यमयातना भवति ते पयः पानतः ।

यमोपि भगिनीसुतान कथमुहन्ति दुष्टानपि,

प्रियो भवति सेवनात्तव हरेर्यथा गोपिकाः । ६ ।

ममास्तु तव सन्निधौ तनुनवत्वमेतावता,

न दुर्लभतमारतिर्मुररिपौ मुकुन्दप्रिये ।

अतोस्तु तव लालना सुरधुनी परं सुंगमा,

त्तवैव भुवि कीर्तिता न तु कदापि पुष्टिस्थितैः । ७ ।

स्तुति तव करोति कः कमलजासपत्नि प्रिये,

हरेर्यदनुसेवया भवति सौख्यमामोक्षतः ।

इयं तव कथाधिका सकल गोपिका संगम,

स्मरश्रमजलाणुभिः सकल गात्रजैः संगमः । ८ ।

तवाष्टकमिदं मुदा पठति सूरसूते सदा,

समस्तदुरितक्षयो भवति वै मुकुन्दे रतिः ।

तया सकलसिद्धयो मुररिपुश्च सन्तुष्यति,

स्वभावविजयो भवेत वदति वल्लभः श्री हरेः । ९ ।

।। इति श्री वल्लभाचार्य विरचितं यमुनाष्टकं सम्पूर्णम ।।

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