Sawan 2024: क्यों सावन में साग और दही खाने की है मनाही और क्या है इसका धार्मिक एवं वैज्ञानिक कारण?
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभागाध्यक्ष प्रो. गिरिजाशंकर शास्त्री का कहना है कि सावन महीने में समय दक्षिणायन काल होने से अग्नि की मंदता समस्त जीव-जंतु पेड़-पौधे वनस्पतियां (Greens and yogurt prohibition Sawan 2024) सोमतत्व से जीवन को प्राप्त करते हैं। इससे पेड़-पौधे एवं लताएं बढ़ते क्रम में रहते हैं। वहीं लताओं से बरसाती कीट पराग या रस प्राप्त करते हैं।
By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Tue, 23 Jul 2024 11:39 PM (IST)
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। सावन का महीना पूर्णतया भगवान शिव को समर्पित होता है। विष्णु पुराण में वर्णित है कि आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि से जगत के पालनहार भगवान विष्णु क्षीर सागर में विश्राम करने चले जाते हैं। वहीं, कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को जागृत होते हैं। इस दौरान सृष्टि का संचालन देवों के देव महादेव करते हैं। इसके लिए सावन माह में भगवान शिव की विशेष पूजा की जाती है। साथ ही सोलह सोमवार का व्रत भी सावन महीने से शुरू किया जाता है।
सावन महीने में भगवान शिव की पूजा करने से साधक की हर एक मनोकामना पूरी होती है। साथ ही मृत्यु लोक में सभी प्रकार के भौतिक एवं सांसारिक सुखों की प्राप्ति होती है। इस महीने में शास्त्र द्वारा निर्धारित नियमों का पालन किया जाता है। इन नियमों का पालन करने से देवों के देव महादेव प्रसन्न होते हैं। उनकी कृपा साधक पर बरसती है। लेकिन क्या आपको पता है कि शास्त्रों में सावन के दौरान क्यों दही और साग न खाने की सलाह दी गई है ? आइए, इसके बारे में सबकुछ जानते हैं-
यह भी पढ़ें: जीवन में प्रगति के लिए सद्गुरु की सहायता परम आवश्यक है
चिरकाल में भगवान शिव ने माता सती के सतीत्व होने के बाद विवाह न करने का प्रण लिया था। तत्कालीन समय में तारकासुर ने ब्रह्मा जी की कठिन तपस्या की। कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर तारकासुर को मनोवांछित वरदान प्रदान किया। इस वरदान के तहत तारकासुर को केवल और केवल भगवान शिव के पुत्र ही परास्त कर सकते थे। ब्रह्मा जी से वरदान पाकर तारकासुर बेहद शक्तिशाली हो गया। अपने बल से स्वर्ग लोक पर अधिपत्य स्थापित कर लिया।
उस समय देवताओं ने कामदेव को भगवान शिव को मनाने का दायित्व दिया। हालांकि, इस कार्य में कामदेव सफल नहीं हो सके। इस समय भगवान शिव की प्रतिक्रिया से मां पार्वती अप्रसन्न हो गई। मां पार्वती को ऐसा प्रतीत हुआ कि शिवजी ने उनका तिरस्कार किया है। इसका वर्णन कालिदास द्वारा रचित कुमारसंभवम् ग्रंथ में है। उस समय मां पार्वती ने भगवान शिव से विवाह करने का प्रण लिया। कालांतर में मां पार्वती ने कठिन तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न किया था। उस समय भगवान शिव ने मां पार्वती से विवाह करने का वचन दिया।
ऐसा कहा जाता है कि मां पार्वती द्वारा सोलह सोमवार व्रत करने से भगवान शिव प्रसन्न हुए थे। वहीं, माता सती के सतीत्व होने के बाद भगवान शिव ने क्रोधित होकर भद्रकाली और वीरभद्र को राजा दक्ष के निवास स्थल कनखल भेजा था। जहां, वीरभद्र ने राजा दक्ष का वध कर दिया था। तब देवताओं ने भगवान शिव की प्रार्थना की। इससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने राजा दक्ष को अभय वरदान दिया। उस समय राजा दक्ष ने भगवान शिव से क्षमा याचना की और कनखल में निवास करने की याचना की। राजा दक्ष की याचना पर भगवान शिव ने उन्हें यह वरदान दिया कि सावन महीने में वे कनखल में ही वास करेंगे। कालांतर से भगवान शिव सावन के महीने में कनखल आते हैं।