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काल के देवता महाकाल

काल (समय) का जीवन में बहुत महत्व होता है। महाकाल को काल के देवता के रूप में मान्यता मिली हुई है। 2 मार्च से शुरू हो रहे महाकालेश्वर नवरात्र पर महाकाल की पूजा-अर्चना का एक अर्थ समय की महत्ता समझना भी है.।

By Edited By: Updated: Fri, 01 Mar 2013 12:36 PM (IST)
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महाकाल को काल का नियंत्रक कहा जाता है। वैसे भी जीवन में काल अर्थात समय की महत्ता निर्विवादित है। संसार में सभी कुछ समय के आधीन हैं। जो व्यक्ति समय का सदुपयोग करते हुए उसके अनुसार चलता है, वही प्रगति करता है और जो समय को सम्मान नहीं देता, वह जीवन में पिछड़ जाता है। पौराणिक ग्रंथों में अवंतिका (उज्जयिनी) को काल के देवता भगवान महाकालेश्वर की नगरी के रूप में गौरव प्राप्त है। द्वादश ज्योतिर्लिगों में गिने जाने वाले भगवान महाकालेश्वर को शास्त्रों में मृत्युलोक (भूलोक) का अधिपति कहा गया है। इसीलिए उनकी गणना ब्रंांड के तीन प्रमुख शिवलिङ्गों में होती है- आकाशे तारकं लिङ्गम्, पाताले हाटकेश्वरम्। भूलोके च महाकालं, लिङ्गत्रय नमोस्तु ते॥ इस श्लोक में ऋषियों ने आकाश में तारक-लिङ्ग, पाताल में हाटकेश्वर तथा पृथ्वी पर महाकाल के रूप में विराजमान तीनों शिवलिङ्गों को सर्वप्रथम नमन किया है। सौरपुराण में महाकाल को दिव्यलिङ्ग कहा गया है- महाकालस्य लिङ्गस्य दिव्यलिङ्ग: तदुच्यते।

मान्यता है कि पूर्वकाल में उज्जयिनी में घना वन था। महाकाल के यहां पधारने के बाद से वह क्षेत्र महाकाल-वन के नाम से जाना जाने लगा। स्कंदपुराण के अवंतीखंड में महाकाल-वन में महाकालेश्वर के निवास करने की कथा है। कथा के अनुसार, प्रलयकाल में सारा संसार गहरे अंधकार में डूब गया था। उस समय न सूर्य था और न ही चांद-तारे। महाकालेश्वर ने ब्रंाजी को उत्पन्न कर उन्हें सृष्टि के निर्माण का आदेश दिया। ब्रहमा जी के निवेदन करने पर श्रीमहाकालेश्वर ने महाकाल-वन में निवास करना स्वीकार किया। इससे स्पष्ट हो जाता है कि सृष्टि का प्रारंभ एवं कालचक्त्र का प्रवर्तन श्रीमहाकाल से ही हुआ है। धर्मग्रंथ कहते हैं-कालचक्र प्रवर्तको महाकाल: प्रतापन:। अर्थात कालचक्र के प्रवर्तक महाकाल अत्यंत प्रतापी हैं।

श्री महाकाल की नगरी उज्जयिनी मानवाकृति भारत के मध्यस्थान (नाभि) में है। यौगिक दृष्टि से देखें तो नाभि क्षेत्र में मणिपूरक चक्त्र होता है। वैदिक संहिता में इसे अमृत ग्रंथि का स्थान कहा गया है- अमृतस्य नाभि:। इसीलिए यहां हर बारहवें वर्ष सिंहराशिगत गुरु में पूर्ण कुंभ का महापर्व मोक्षदायिनी शिप्रा के माध्यम से अमृत-सेवन का सुअवसर प्रदान करता है। वर्ष 2016 में उज्जैन में पूर्ण कुंभ का योग बन रहा है। अवंतिका पुरी में श्रीमहाकालेश्वर ज्योतिर्लिङ्ग के रूप में विराजमान है। अनंत चैतन्यस्वरूप श्री महाकालेश्वर में अंतरिक्ष, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी, सूर्य, चंद्र और मन -ये अष्टमूर्तियां निहित हैं, अस्तु इन्हें आदिदेव भी कहा गया है।

भौगोलिक दृष्टि से उज्जयिनी कर्क रेखा पर स्थित है। एक मान्यता यह भी है कि लंका से सुमेरु पर्वत तक जो देशांतर रेखा गई है, वह अवंतिकानाथ श्रीमहाकाल मंदिर के शिखर के ऊपर से जाती है। इसी कारण भारतीय पंचांग में उज्जयिनी को प्राचीनकाल से गणना का आधार (ग्रीनविच) माना जाता रहा है। कालचक्त्र के प्रवर्तक महाकाल की नगरी को कालगणना में महत्वपूर्ण स्थान मिलना शास्त्रसम्मत होने के साथ स्वाभाविक भी है। कालांतर में उज्जयिनी के वीर विक्त्रमादित्य ने विक्रम संवत् चलाया तथा उनके नवरत्‍‌नों में बहुचर्चित वराह मिहिर ने ज्योतिषशास्त्र के तीनों स्कंध- सिद्धांत, संहिता और होरा का ज्ञान संपूर्ण भारतवर्ष में फैलाया।

द्वादश ज्योतिर्लिगों में मात्र महाकालेश्वर ही दक्षिण-मुखी हैं। यहां दक्षिण दिशा में मृत्यु के देवता यमराज मृत्यु के वाहक काल के साथ विराजते हैं। मान्यता है कि महाकाल अपनी दृष्टि से इन पर नियंत्रण रखते हैं।

नित्य प्रात: 4 से 6 के मध्य होने वाली श्रीमहाकालेश्वर की भस्म आरती अनूठी और विख्यात है। उज्जयिनी आने वाला प्रत्येक तीर्थयात्री इस आरती को देखने का इच्छुक होता है। यह आरती गाय के गोबर से बने उपलों (कण्डों) से निर्मित भस्म से होती है। आरती के समय महाकालेश्वर का दर्शन करके भक्तगण मंत्रमुग्ध हो जाते हैं।

उज्जयिनी में महाकालेश्वर-मंदिर कब बना, यह सही रूप से कह पाना कठिन है। निश्चित ही यह धर्मस्थल प्रागैतिहासिक देन है। समय-समय पर इसका जीर्णोद्धार होता रहा है। वेदव्यास, कालिदास, तुलसीदास और महाकवि रवींद्रनाथ टैगोर ने श्रीमहाकाल की वाड्.मयी अर्चना की है। मंदिर के वर्तमान स्वरूप का श्रेय अठारहवीं शताब्दी में मराठा शासक बाजीराव पेशवा प्रथम के समय राणोजी सिंधिया के शासनकाल में मालवा के सूबेदार रहे रामचंद्रबाबा शेणवी को जाता है।

श्री महाकालेश्वर मंदिर में साल-भर उत्सव होते रहते हैं। इनमें महाकालेश्वर नवरात्र लोकविख्यात है। फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष में महाशिवरात्रि के नौ दिन पूर्व से महाकालेश्वर का यह विशिष्ट नवरात्र प्रारंभ होता है, जिसका समापन श्रीमहाकाल के विवाहोत्सव के साथ होता है। नवरात्र के नौदिवसीय पर्वकाल में श्रीमहाकालेश्वर का नित नूतन श्रृंगार, पूजन, रुद्राभिषेक तथा हरि-हर कथा का आयोजन होता है। महाशिवरात्रि पर पुष्पों से महाकाल को सेहरा बांधा जाता है। महाकालेश्वर को देख भक्त कह उठते हैं- महाकाल महादेव, महाकाल महाप्रभो। महाकाल महारुद्र, महाकाल नमोस्तु ते॥ महाकाल की पूजा-अर्चना कर हमें काल (समय) के विराट स्वरूप को समझना होगा और इसका हमें अपने जीवन में किस तरह सदुपयोग करना है, यह तय करना होगा।

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