ऐसे गरीब नवाज बने ख्वाजा
गरीब नवाज ख्वाजा मोइनउद्दीन चिश्ती का 800 वां उर्स (पुण्यतिथि) मनाते हुए हमें उनकी शिक्षा को अपने जेहन में रखना होगा और देखना होगा कि उन्होंने जिस तरह समाज को जोड़ने का काम किया, गरीबों की सेवा की और मुहब्बत का पैगाम दिया, क्या हम अपने जीवन में उस पर थोड़ा भी अमल करते हैं या नहीं?
भारत का मस्तक औलिया, सूफियों और मानवता का पाठ पढ़ाने वाली पुण्यात्माओं से प्रकाशमान है। इनमें सर्वाधिक प्रसिद्ध नाम हजरत ख्वाजा गरीब नवाज का है। ख्वाजा का पूरा नाम हजरत ख्वाजा मोइनउद्दीन चिश्ती अजमेरी है। उन्होंने आठ सौ साल से भी पहले अजमेर की धरती पर पदार्पण किया था। उनके यहां आने से यह शहर अजमेर शरीफ के रूप में पवित्र हो गया। हजरत ख्वाजा अजमेरी अपने चालीस साथियों के साथ अजमेर आए थे और वहां जनसेवा के पुण्यकर्म में लग गए। वह स्वयं निर्धन थे, लेकिन उन्हें सुल्तानुलहिंद कहा गया। गरीबों और दीन दुखियों के प्रति उनके लगाव ने उन्हें गरीब नवाज बना दिया था।
हजरत ख्वाजा अजमेरी भारत से सैकड़ों मील दूर सजिस्तान में पैदा हुए। अल्पायु में ही उनके पिता का देहांत हो गया था। विरासत में उन्हें एक पनचक्की और एक बाग मिला, जो उनकी गुजर-बसर के लिए पर्याप्त था, लेकिन किसी दिव्य पुरुष ने उन पर ऐसी कृपा-दृष्टि डाली कि उन्हें भौतिकता से विरक्ति हो गई। उन्होंने बाग और चक्की बेचकर धन निर्धनों में बांट दिया और स्वयं अपने अभीष्ट की खोज में निकल पड़े। लक्ष्य प्राप्ति की पहली शर्त ज्ञान है। सूफी सांसारिक ज्ञान को इल्मे-जाहिर (प्रत्यक्ष ज्ञान) का नाम भी देते हैं। हजरत ख्वाजा गरीब नवाज ने कई बरस तक प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त किया, तदुपरांत आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति के लिए उन्मुख हुए।