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अक्षय तृतीया है जरूरतमंदों को दान करने का पर्व

अक्षय तृतीया पर कीमती वस्तुएं खरीदने का प्रचलन बन गया है, लेकिन ग्रंथों में इसे संग्रह का नहीं, बल्कि जरूरतमंदों को दान करने का पर्व बताया गया है। अक्षय तृतीया पर विशेष...

By Preeti jhaEdited By: Updated: Mon, 09 May 2016 08:09 AM (IST)
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अक्षय तृतीया पर कीमती वस्तुएं खरीदने का प्रचलन बन गया है, लेकिन ग्रंथों में इसे संग्रह का नहीं, बल्कि जरूरतमंदों को दान करने का पर्व बताया गया है। अक्षय तृतीया पर विशेष...

अक्षय तृतीया को ज्यादातर लोग खरीददारी करने का पर्व मानने लगे हैं। सोने-चांदी की खरीददारी तो संग्रह की प्रवृत्ति है, जिसे भारतीय अध्यात्म ने उचित नहींबताया है। हमारे धर्मग्रंथों में अक्षय तृतीया को लेने का नहीं, बल्कि देने का पर्व बताया गया है। इससे संग्रह के बजाय जरूरतमंदों को दान देने की प्रेरणा मिलती है।

भविष्योत्तर पुराण में इस दिन स्वर्ण- दान की बात कही गई है। दरअसल, देना हमारे अंतस को उच्चता प्रदान

करता है।

वैशाख शुक्लपक्ष की तृतीया को ग्रंथों में अक्षय-फलदायी बताया गया है। इसी कारण इसे ‘अक्षय तृतीया’ कहा

गया। ‘भविष्यपुराण’ के अनुसार :

‘यत् किंचिद् दीयते दानं स्वल्पं वा यदि वा बहु। तत् सर्वमक्षयं यस्मात् तेनेयमक्षया स्मृता।।’ अर्थात इस तिथि में थोड़ा या बहुत, जितना और जो कुछ भी जरूरतमंदों को दिया जाता है, उसका फल अक्षय हो जाता है।

मान्यता है कि वैशाख शुक्ल तृतीया से ही त्रेतायुग की शुरुआत हुई थी। इसीलिए इसे ‘युगादि तिथि’ भी कहते हैं। भविष्योत्तर पुराण में जौ-चने का सत्तू, दही-चावल, ईख गन्ने का रस, दूध से बनी मिठाई, शक्कर, जल से भरे घड़े, अन्न तथा ग्रीष्म ऋतु में उपयोगी वस्तुओं के दान की बात कही गई है। सामान्यत: सत्तू, पानी से भरी सुराही अथवा घड़े के साथ ताड़ के पंखे का दान किए जाने का प्रचलन है। क्योंकि इस तिथि में गर्मी अपने चरम पर होती है। बहुत से गरीब गर्मी से बचने की व्यवस्था नहींकर पाते हैं, उन्हें गर्मी और गर्मी के रोगों से बचाने के लिए यह प्रयोजन किया जाता है। यह एक प्रकार की समाज सेवा ही है, जो सबसे बड़ा धार्मिक कार्य है। इस दिन कुछ लोग प्याऊ की व्यवस्था करते हैं, कुछ शीतल जल का शर्बत पिलाते हैं। सही मायनों

में गरीबों की सेवा ही नारायण की पूजा है।

श्रीमद्भागवत महापुराण के अनुसार, ‘शुद्धयंति दानै: संतुष्ट्या द्रव्याणि’ अर्थात दान और संतोष से धन शुद्ध होता है। अर्थात यदि आपके पास धन है, तो कुछ हिस्सा दान अवश्य करें। इससे मन को संतोष और चित्त को शुद्धि प्राप्त होती है।