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अमरनाथ यात्रा: शिव सायुज्य की अनुभूति

अमरनाथ यात्रा एक जुलाई से आरंभ हो रही है। यह यात्रा शिव सायुज्य की अनुभूति कराती है। क्या है अमरेश्वर धाम का पुराणों में माहात्म्य और अमरत्व का रहस्य। आइए डा। अभिषेक कुमार उपाध्याय जी से जानते हैं इस सिद्ध धाम का महत्व और क्या है इस यात्रा का अध्यात्मिक महत्व। साथ ही जानिए क्या है अमरनाथ धाम की विशेषता।

By Jagran NewsEdited By: Shantanoo MishraUpdated: Sun, 25 Jun 2023 02:50 PM (IST)
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डा. अभिषेक कुमार उपाध्याय से जानिए अमरनाथ यात्रा का आध्यात्मिक महत्व।
डा. अभिषेक कुमार उपाध्याय (प्राचार्य, चूड़ामणि संस्कृत संस्थान) | सनातन परंपरा में जम्मू-कश्मीर का आध्यात्मिक, भौगोलिक एवं पौराणिक दृष्टि से विशेष स्थान है। यही शिव और शक्ति की आराधना का केंद्र भी रहा है। यही वजह है कि जम्मू कश्मीर का शारदा देश, उतरा पथ एवं छोटी काशी के रूप में भी ग्रंथों में विस्तार से वर्णन किया गया है। शिव का अर्थ कल्याण एवं लिंग का अर्थ प्रतीक होता है अर्थात परमात्मा की कल्याणकारी सृजनात्मक शक्ति का प्रतीक है शिवलिंग। शिव आदि-अनादि स्वरूप में शून्य, आकाश, अनंत ब्रह्मांड और निराकार परमपुरुष के प्रतीक हैं।

शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध से रहित अगुण, अलिंग (निर्गुण) तत्व को ही शिव कहा गया है तथा शब्द- स्पर्श-रूप-रस-गंधादि से संयुक्त प्रधान प्रकृति को ही उत्तम लिंग कहा गया है। वह जगत का उत्पत्ति-स्थान है। प्रकृत्ति ही सदाशिव से आश्रय प्राप्त करके करोड़ों ब्रह्मांडों में सर्वत्र चतुर्मुख ब्रह्मा, विष्णु और शिव का सृजन करती है। इस सृष्टि की रचना, पालन तथा संहार करने वाले वे ही एकमात्र महेश्वर हैं। वे ही भगवान शिव प्राणियों के सृष्टिकर्ता, पालक तथा संहर्ता हैं- श्रीलिंगमहापुराण (पू० ४, ३५-३७) के श्लोक में इस विषय में विस्तृत वर्णन मिलता है:

सर्गस्य प्रतिसर्गस्य स्थितेः कर्ता महेश्वरः॥

सर्गे च रजसा युक्तः सत्त्वस्थः प्रतिपालने।

प्रतिसर्गे तमोद्रिक्तः स एव त्रिविधः क्रमात्॥

आदिकर्ता च भूतानां संहर्ता परिपालकः।

ऐसे ही अद्भुत, चमत्कारी, प्राकृतिक स्वयं भू लिंग के रूप में अमरेश्वर महादेव (अमरनाथ) का वर्णन मिलता है। पुराणों में इसे अमरेश तीर्थ, क्षणिक शिवलिंग और मुक्ति का धाम कहा गया है। ज्ञात हो कि अमरेश्वर महादेव एकमात्र बर्फ के शिवलिंग हैं। यदि हम अमरेश्वर गुफा में स्वयं शिवलिंग के प्राकृतिक स्वरूप की उत्पति की बात करें तो यह पूर्ण रूप से आध्यात्मिक एवं प्राकृतिक चमत्कार ही तो है। शिवलिंग का आकार चंद्रकलाओं के अनुरूप घटता-बढ़ता रहता है। प्रत्येक मास शिवलिंग शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से बनना प्रारंभ होता है और यह क्रम अनवरत बढ़ता हुआ पूर्णिमा के दिन अपने संपूर्ण स्वरूप में दिखाई देता है। आश्चर्य की बात यह है कि इस शिवलिंग निर्माण में कोई मानवीय कोशिश नहीं की जाती, बल्कि यह प्राकृतिक रूप में ही सुलभ हो जाता है। भारतीय पुरातत्व विभाग के अनुसार भगवान अमरेश्वर की गुफा पांच हजार वर्ष पुरानी है अर्थात महाभारत काल में भी इसका अस्तित्व रहा होगा। कश्मीर के राजवंशों का इतिहास लिखते समय महाकवि कल्हण ने 11वीं सदी में विरचित राजतरंगिणी नामक ग्रंथ में अमरेश्वर महादेव अर्थात अमरनाथ का वर्णन किया है।

राजतरंगिणी को प्रामाणिक 'इतिहास' कहा जाता है। राजतरंगिणी की प्रथम तरंग के 267वें श्लोक में अमरेश्वर यात्रा का उल्लेख मिलता है कि कश्मीर के राजा सामदीमत शैव पहलगाम के वनों में स्थित बर्फ के शिवलिंग की पूजा-अर्चना करने जाते थे। इसी ग्रंथ में अन्यत्र भी कवि कल्हण भगवान शिव के अमरनाथ स्वरूप को अमरेश्वर के नाम से संबोधित करते हैं। छठी सदी में रचे गए नीलमत पुराण में अमरनाथ यात्रा के बारे में स्पष्ट उल्लेख प्राप्त होता है। इस पुराण में कश्मीर के इतिहास, भूगोल, लोककथाओं एवं धार्मिक अनुष्ठानों का विस्तृत वर्णन मिलता है। इसमें अमरेश्वर महादेव के बारे में दिए गए वर्णन से पता चलता है कि छठी शताब्दी में लोग अमरनाथ यात्रा किया करते थे। बृंगेश संहिता नामक ग्रंथ में भी अमरेश्वर तीर्थ का बारंबार उल्लेख मिलता है। अमरेश्वर गुफा की ओर जाते समय अनंतनया (अनंतनाग), माच भवन (मट्टन), गणेशबल (गणेशपुर), मामलेश्वर (मामल), चंदनवाड़ी, सुशरामनगर (शेषनाग), पंचतरंगिरी (पंचतरणी) आदि स्थलों का वर्णन मिलता है।

स्कंदपुराण में शिव के विभिन्न तीर्थों की महिमा की व्याख्या करते हुए अमरेश तीर्थ को सब पुरुषार्थों का साधक बताया गया है, वहां ॐकार नाम वाले महादेव और चंडिका नाम से पार्वती जी निवास करती हैं। मान्यता है कि जब भगवान शिव ने देवी पार्वती को अमर कथा सुनाने का निश्चय किया, तब उन्होंने अपने समस्त गणों को पीछे छोड़ दिया और अमरनाथ की गुफा की ओर बढ़ते गए। अभिप्राय यह है कि जिस स्थान पर अमरेश्वर ने अमर कथा सुनाई, वह स्थान जनशून्य था। फलस्वरूप इन नगरों के नामों से ही हमें शिव सायुज्य का आभास आज तक हो रहा है, यही उस अमर कथा की अमरता का वास्तविक प्रमाण है। ऐसे दुर्गम क्षेत्र में वर्ष भर बर्फबारी के चलते अमरेश्वर महादेव का दर्शन केवल तपस्वी, योगी जन ही कर सकते है। वर्ष भर आम जनता के लिए दर्शन सर्व सुलभ नहीं हो सकता, इसीलिए हमारे ऋषियों ने इसके लिए ऋतु के अनुकूल तिथि को तय किया। वर्तमान में अब मौसम और व्यवस्था के अनुसार यात्रा दो माह तक चल रही है। दर्शन के लिए जो मध्य काल है श्रावण शुक्ल पूर्णिमा यानी रक्षाबंधन तिथि।

प्राकृतिक बर्फबारी से गुफा में लगातार स्वयं भू शिवलिंग के साथ ही शिव परिवार की भी आकृतियां बर्फ के माध्यम से बनती रहती हैं और गुफा में बर्फ के शिवलिंग बनने की प्रक्रिया को बार बार होते देख जनमानस में इन्हें बर्फानी और हिमानी बाबा कहकर बुलाना शुरू कर दिया। पौराणिक अमर कथा के कुछ ऐसे भी रहस्य हैं कि अमरेश्वर मंदिर में शिवलिंग के साथ-साथ इनसे ही गणेश और पार्वती पीठ की भी उत्पत्ति हुई। ऐसा किंवदंती है कि यहां माता सती के कंठ का निपात भी हुआ था। पांचवीं शताब्दी में रचित लिंग पुराण के 12वें अध्याय के 151 वे श्लोक में भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग की स्तुति में अमरेश्वर का एक पौराणिक कथा में वर्णन मिलता है कि इस पवित्र गुफा में भगवान शिव ने माता पार्वती को मोक्ष के मार्ग के बारे में बताया था और उन्हें अमरत्व का तत्व देने वाली अमर कथा सुनाई थी। यही कारण है कि भगवान शिव के इस धाम को अमरेश्वर धाम भी कहा गया है। इस अमरत्व की कथा सुनाने के लिए भगवान शिव ने पंच तत्वों का त्याग किया था।