तुलसी की पूजा सभी करते हैं, पर इस तरह की गई पूजा मनोकामना पूर्ण होती है
अमावस्या, चैादस तिथि को तुलसी नहीं तोड़ना चाहिए। रविवार, शुक्रवार,सप्तमी तिथि को भी तुलसी नहीं तोड़ना चाहिए। तुलसी से पत्र तोड़ते समय देवी तुलसी से पत्र तोड़ने की इजाजत लेनी चाहिए
By Preeti jhaEdited By: Updated: Fri, 23 Sep 2016 12:52 PM (IST)
बात करेंगे तुलसी के पौधे की। उसके औषधीय गुणों के बारे में तो आपने काफी कुछ पढ़ा होगा, आपको बतायेंगे उसके प्रभाव अपके जीवन पर। तुलसी का पौधा लगाकर अप अपने घर के दोषों से मुक्ति पा सकते हैं।
तुलसी मुख्यतः दो प्रकार की होती है। 1- श्वेत तुलसी, 2- कृष्ण तुलसी। इन्हे क्रमशः राम तुलसी और श्याम तुलसी भी कहते हैं। दोनो प्रकार की तुलसी में केवल वर्ण भेद ही होता है अन्यथा गुणों में समानता होती है। वर्षो पहले से ही घर के आंगन में तुलसी का पौधा लगाने की परम्परा प्रचलित है। महिलायें इसकी प्रतिदिन पूजा करके जल अर्पित करती है। घर से निकलने से पूर्व तुलसी के दर्शन करना शुभ माना जाता है। तुलसी का वृक्ष औषधीय गुणों से परिपूर्ण माना गया है। इनकी पत्तियों में कीटाणु नष्ट करने का एक विशेष गुण है। इसलिये मन्दिरों में चरणोदक जल में तुलसी की पत्तियां तोड़कर डाली जाती है जिससे जल के सारे कीटाणु नष्ट हो जाये और जल शुद्ध हो जाये।1-यदि कोई भी व्यक्ति तुलसी की माला से किसी भी लक्ष्मी मन्त्र का यथा शक्ति 1 से 11 माला प्रतिदिन जप करे तो धन की प्राप्ति होने लगती है और उसके परिवार में सुख समृद्धि आती है।2- जो भी व्यक्ति नित्य सुबह के समय स्नान आदि से निवृत होकर तुलसी के नीचे दीपक जलाकर पूजन करेगा। उस जातक के देवदोष समाप्त हो जायेंगे।
3- एक गमले में एक पौधा तुलसी का तथा एक पौधा काले धतूरे का लगायें। इन दोनों पौधों पर प्रतिदिन स्नान आदि से निवृत होकर शुद्ध जल में थोड़ा सा कच्चा दूध मिलाकर अर्पित करें। जो भी व्यक्ति यह प्रयोग नित्य 1 वर्ष तक करेगा उसे पितृदोष से मुक्ति मिल जायेगी। तथा उसको ब्रहमा, विष्णु, महेश, इन तीनों की संयुक्त पूजा फल मिलेगा चूंकि विष्णु प्रिया होने के कारण तुलसी विष्णु रूप है तथा काला धतूरा शिव रूप है एंव तुलसी की जड़ो में ब्रहमा का निवास स्थान माना जाता है।4- एक छोटा सा चांदी का सर्प बनावाकर। इस सर्प की पूजा जिस दिन चर्तुदशी हो उस दिन स्नान कर तुलसी के पौधे के नीचे, इसे रखकर। इस पर दूध, अक्षत, रोली, आदि लगाकर इसकी पूजा करें। घी का दीपक भी जलायें। जिस समय पूजा करें उस समय साधक का मुख पूर्व दिशा की तरफ होना चाहिए। भोग अर्पित कर दान भी करें। दीपक जब ठण्डा हो जाये तो उसके बाद चाॅदी के सर्प को पूजा करने वाला व्यक्ति ही उठाकर किसी नदीं में प्रवाहित कर दे। इस प्रकार नित्य 40 दिन तक पूजन करने से कालसर्प दोष दूर हो जाता है।
तुलसी पूजन करते समय यह मंत्र का पाठ करेंतुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी।धर्म्या धर्मानना देवी देवीदेवमनः प्रिया।।लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत्।तुलसी भूर्महालक्ष्मीः पद्मिनी श्रीर्हरप्रिया।।तुलसी पूजन में तुलसी को जल देते समय यह मंत्र पढ़े-महाप्रसाद जननी, सर्व सौभाग्यवर्धिनीआधि व्याधि हरा नित्यं, तुलसी त्वं नमोस्तुते।।अर्थात्हे तुलसी! आप सम्पूर्ण सौभाग्यों को बढ़ाने वाली हैं। सदा आधि-व्याधि को मिटाती हैं। आपको नमस्कार है।तुलसी स्तुतिदेवी त्वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्वरैःनमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये।।तुलसी के पत्ते तोड़ते समय यह मंत्र बोले -मातस्तुलसि गोविन्द हृदयानन्द कारिणीनारायणस्य पूजार्थं चिनोमि त्वां नमोस्तुते ।।तुलसी पत्र तोड़ने के भी नियम है-अमावस्या, चैादस तिथि को तुलसी नहीं तोड़ना चाहिए। रविवार, शुक्रवार और सप्तमी तिथि को भी तुलसी नहीं तोड़ना चाहिए। तुलसी से पत्र तोड़ते समय देवी तुलसी से पत्र तोड़ने की इजाजत लेनी चाहिए। अकारण ही तुलसी पत्र नहीं तोड़ना चाहिए। बल्कि झड़कर नीचे गिरे हुए तुलसी पत्र को पूजन व दवा आदि कार्यों में उपयोग लाना उत्तम तरीका है।वायु पुराण में तुलसी पत्र तोड़ने के संबंध में कहा गया है -अस्नात्वा तुलसीं छित्वा यः पूजा कुरुते नरः ।सोऽपराधी भवेत् सत्यं तत् सर्वनिष्फलं भवेत्।।अर्थात् बिना स्नान किए तुलसी को तोड़कर जो मनुष्य पूजा करता है। वह अपराधी है। उसकी की हुई पूजा निष्फल जाती है। इसमें कोई शंका नहीं।