Chaitanya Mahaprabhu: बिहार के गया से है चैतन्य महाप्रभु का गहरा नाता, जानें-इसके बारे में सबकुछ
Chaitanya Mahaprabhu चैतन्य महाप्रभु ने जात पात और ऊंच-नीच से परे होकर यानी उपर उठकर न केवल सर्वधर्म सद्भावना को बल दिया बल्कि भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं से भी लोगों को अवगत कराया। चैतन्य महाप्रभु का जन्म फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि को पश्चिम बंगाल के नादिया नामक गांव में हुआ था। वर्तमान समय में नादिया गांव को मायापुर कहा जाता है।
By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Wed, 23 Aug 2023 04:41 PM (IST)
नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क | Chaitanya Mahaprabhu: जगत के पालनहार भगवान श्रीकृष्ण के परम भक्त चैतन्य महाप्रभु की गिनती भक्तिकाल के प्रमुख कवियों में होती हैं। वैष्णव संप्रदाय के लोग इन्हें भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी के संयुक्त स्वरूप का अवतार मानते हैं। कहते हैं कि मध्यकाल या भक्तिकाल के दौरान विलुप्त अवस्था में पहुंच चुके ईश्वरीय नगर वृंदावन को चैतन्य महाप्रभु ने दोबारा से बसाया। चैतन्य महाप्रभु के अथक प्रयास के चलते आज वृंदावन सजीव रूप में अवस्थित है। इन्होंने 'गौड़ीय संप्रदाय' की आधारशिला रख भक्ति को भजन का रूप दिया।
चैतन्य महाप्रभु ने जात पात और ऊंच-नीच से परे होकर यानी उपर उठकर न केवल सर्वधर्म सद्भावना को बल दिया, बल्कि भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं से भी लोगों को अवगत कराया। चैतन्य महाप्रभु का जन्म फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि को पश्चिम बंगाल के नादिया नामक गांव में हुआ था। वर्तमान समय में नादिया गांव को मायापुर कहा जाता है। उनके जन्म के समय ज्योतिषियों ने कुंडली देख भविष्यवाणी की थी कि यह बालक जीवनपर्यंत हरिनाम संकीर्तन करेगा।
संत ईश्वरपुरी से मुलाकात
बाल्यावस्था में महाप्रभु को निमाई कहा जाता था। इनका वर्ण गौर था। अत: लोग इन्हें गौरांग भी कहते थे। निमाई यानी चैतन्य महाप्रभु बाल्यावस्था से ही बहुमुखी और विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। स्वभाव से महाप्रभु बेहद सरल और भावुक थे। तत्कालीन समय यानी 15 वर्ष की आयु में इनका विवाह लक्ष्मीप्रिया से हुआ। हालांकि, कालचक्र को कुछ और मंजूर था। सन 1505 में सर्पदंश की वजह से उनकी धर्मपत्नी की मृत्यु हो गई। इसके पश्चात, राज पंडित की पुत्री विष्णुप्रिया के साथ उनका दूसरा विवाह हुआ।सन 1509 में इनके पिता की मृ्त्यु हो गई। पिता की मृत्यु से ये बेहद टूट गए। उस समय परिवारजनों के साथ चैतन्य महाप्रभु अपने पिता के श्राद्ध हेतु गया गए। सनातन धर्म में पूर्वजों का पिंडदान और श्राद्ध गया में किया जाता है। त्रेता युग में भगवान श्रीराम ने भी राजा दशरथ के मरणोपरांत फल्गु नदी के तट पर श्राद्ध कर्म किए थे। इसके लिए सनातन धर्म के अनुयायी बिहार के गया में अपने पूर्वजों का श्राद्ध कर्म करते हैं। चैतन्य महाप्रभु ने भी अपने पिता का श्राद्ध कर्म बिहार के गया में किया था। इसी समय उनकी मुलाकात ईश्वरपुरी नामक संत से हुई।
चैतन्य महाप्रभु को व्याकुल देख उन्होंने कहा-ये अनुक्रम अनवरत चलता रहेगा। इससे व्यतीथ और व्याकुल होने की जरूरत नहीं है। तुम व्यर्थ में चिंतित हो, भगवान श्रीकृष्ण और राम का प्रचार करो और उनके नाम का जाप करो। । तुम्हारा अवश्य कल्याण होगा। उस समय से चैतन्य महाप्रभु , भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन हो गए। तत्कालीन समय से चैतन्य महाप्रभु ने संकीर्तन करना शुरू किया।
'हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण-कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम राम-राम हरे हरे॥'डिसक्लेमर-'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी। '