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Chaitra Navratri 2024: इस विधि से करें मां दुर्गा की पूजा एवं साधना, आय और सौभाग्य में होगी अपार वृद्धि

Chaitra Navratri 2024 shubh muhurat मां दुर्गा हमें ऊर्जा प्रदान करती हैं। इस ऊर्जा से हम अपनी खोज करें दूसरों से प्यार करें और जहां तक हमारी पहुंच हो हम दुनिया की सेवा करें। यदि हम ऐसा कर सकते हैं तो ही देवी से ऊर्जा देने की प्रार्थना करें। बिना इसके हमें ऊर्जा नहीं चाहिए। शक्ति आराधना हम इसलिए करें कि हमारे में शक्तिमान प्रकट हो।

By Jagran News Edited By: Pravin KumarUpdated: Mon, 08 Apr 2024 04:56 PM (IST)
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इस विधि से करें मां दुर्गा की पूजा एवं साधना, आय और सौभाग्य में होगी अपार वृद्धि
मोरारी बापू (प्रसिद्ध कथावाचक)। Chaitra Navratri 2024: आदिशक्ति मां दुर्गा हमें ऊर्जा प्रदान करती हैं। इस ऊर्जा से हम अपनी खोज करें, दूसरों से प्रेम करें और हम दुनिया की सेवा करें। यदि हम ऐसा कर सकते हैं, तभी देवी से ऊर्जा देने की प्रार्थना करें। शक्ति आराधना हम इसलिए करें कि हमारे में शक्तिमान प्रकट हो।

या देवी सर्वभूतेषु सत्य रूपेण संस्थिता।

या देवी सर्वभूतेषु प्रेम रूपेण संस्थिता।

या देवी सर्वभूतेषु करुणा रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।

मूल पाठ में यह नहीं है। मैंने मां की आज्ञा लेकर मेरे जीवन के आंतरिक विकास और विश्राम के लिए इसे जोड़ा है, क्योंकि मैं सत्य, प्रेम और करुणा में निष्ठा रखता हूं। साथ ही चौथा और जोड़ा है... या देवी सर्वभूतेषु अहिंसा रूपेण संस्थिता। आज के समय में अहिंसा सबसे बड़ी देवी होनी चाहिए। नवदुर्गा को मैं इस रूप में देखता हूं।

दुर्गा हमें ऊर्जा प्रदान करती हैं। इस ऊर्जा से हम अपनी खोज करें, दूसरों से प्यार करें और जहां तक हमारी पहुंच हो, हम दुनिया की सेवा करें। यदि हम ऐसा कर सकते हैं तो ही देवी से ऊर्जा देने की प्रार्थना करें। बिना इसके हमें ऊर्जा नहीं चाहिए। शक्ति आराधना हम इसलिए करें कि हमारे में शक्तिमान प्रकट हो। दबा हुआ तो वह है ही, कोई घट खाली नहीं है, जिसमें वह न पड़ा हो। वह विश्व मंगल के लिए, विश्व के सुख के लिए उजागर हो। मां शक्ति से प्रार्थना है कि सबका विकास हो, सब को विश्राम मिले। विश्राम के बिना विकास का कोई मूल्य नहीं है।

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नवरात्र के दिनों मे हम अपने परंपराओं के अनुसार, निष्ठा के अनुसार पूजा-पाठ करते हैं। मेरी दृष्टि में सच्ची नवरात्र पूजा यह मनोकामना है कि पहली संतान पुत्री के रूप में जन्म ले। परिवार में कन्या का जन्म हो तो उत्सव मनाओ। पर्वतराज हिमालय के घर पार्वती के जन्म का हुआ, तो उत्सव मनाया गया। कन्या जगत जननी है। हिमालय के यहां पुत्री ने जन्म लिया, तो हिमालय की समृद्धि में वृद्धि हुई।

पुत्री के जन्म पर आपकी समृद्धि में भी वृद्धि होगी। हम स्त्री-शक्ति का सम्मान करें। नवरात्र में देवी की पूजा तो कीजिए ही, मगर आज के संदर्भ में मुझे कहना है कि भारत की बहन-बेटियों के अपने गर्भ में बेटी हो तो उसका गर्भपात न कराएं। घर में नवजात बेटी का स्वागत भी देवी-पूजा ही मानी जाएगी। देवी के चरण-कमल की पूजा कर सुखी होना है तो दहेज की प्रथा में नहीं पड़ना है। हम सबको समाज में नारी का सम्मान करना होगा। उसका किसी भी स्तर पर किसी भी तरह से अपमान न होने पाए, इसका ध्यान रखना होगा।

मां अंबा तीन स्तरों पर काम करती हैं। वे त्रि-स्तरीय हैं, इसलिए उन्हें ‘स्त्री’ कहते हैं। स्त्री के तीन स्तर हैं। एक, वह जो किसी की कन्या है। दो, वह किसी की धर्मपत्नी है और तीन, वह किसी की मां है। इन तीन स्तरों पर महाशक्ति काम करती है। इन तीन स्तरों का परिचय रामचरितमानस में मिलता है। कुछ स्थानों पर देवी को प्रसन्न करने के नाम पर बलि-प्रथा चल रही है। यह खत्म होनी चाहिए। अगर बलिदान ही देना है तो अपने मोह और अहंकार का देना चाहिए, बाकी किसी बलि की मां को जरूरत नहीं है। लोगों को शक्ति की तंत्र-पूजा में नहीं पड़ना चाहिए। मां को सात्विक भाव से भजिए, यह पर्याप्त है।

जगत के मूल में आदिशक्ति हैं, मगर वह अक्सर समझ में नहीं आती। तुलसीदास कहते हैं कि मां तभी समझ में आती है, जब हम बच्चे बन जाते हैं। अत: भक्ति में शिशु-भाव होना चाहिए। अपने बच्चों के प्रति मां का भाव कैसा होता है, इसे मानस के एक प्रसंग से समझा जा सकता है। अरण्यकांड में वन में हड्डियों का ढेर देखकर राम ने पूछा कि यह क्या है? जवाब मिला कि राक्षसगण कितने ही ऋषि-मुनियों को खा गए, ये उनकी अस्थियों के ढेर हैं। राम ने हाथ उठाकर कहा कि मैं धरती को राक्षसविहीन कर दूंगा। इस पर जगत जननी मां जानकी ने कहा कि प्रभु, मैं माता हूं और असुर भी मेरे ही बच्चे हैं। आप आसुरी तत्वों का हनन कीजिए, उनमें रह रहीं बुराइयों को निकालिए। यह सिर्फ मां ही कह सकती हैं।

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मेरा मानना है कि विश्व का एकाक्षर मंत्र ‘मां’ है। दक्ष के यज्ञ में जलकर भस्म हो गई सती के प्रसंग से सभी परिचित हैं। अगले जन्म में वह हिमालय की बेटी पार्वती बन कर आईं। सती बुद्धि स्वरूपा थीं। तर्क-वितर्क में रहने वाली सती ने राम पर भी शंका की। वही सती हिमालय पुत्री बनीं तो श्रद्धा में परिणत हुई। प्रधान सूत्र यह है कि जो हमें बौद्धिकता से हार्दिकता में दीक्षित करे, वही सती चरित्र है। मैंने अनुभव किया है कि हमारी चेतना जब बहिर्मुख होती है, तब वह बुद्धि है। वही चेतना जब अंतर्मुखी बनती है तब वह श्रद्धा है। सती की चेतना बहिर्मुखी थी, तब तक वह बुद्धि थी और हिमालय के यहां जन्म लिया तो चेतना अंतर्मुखी होकर श्रद्धा में बदल गई। हिमालय कन्या के नामकरण पर तुलसी दास जी ने चौपाई लिखी है :

सुंदर सहज सुसील सयानी,

नाम उमा अंबिका भवानी।

तत्व एक ही है, मगर ये तीन नामों के तीन विशेषण हैं। उमा सहज सुंदर हैं। वह पार्वती ही हैं। अंबिका सुशील हैं, क्योंकि वह हृदय हैं। पता नहीं क्यों हमारा हृदय कुटिल बन गया है, जबकि हृदय का मूल स्वभाव सुशील ही है। मां का हृदय सुशील होता है। फिर ‘सयानी’ भवानी का मतलब क्या है? मां का सयानापन अलग-अलग संदर्भों में दिखाई देता है। मां को सबको एकत्र करके रखना पड़ता है। अंबा का परिवार तो देखिए।

पति के पांच मुंह, गणपति को हाथी का मस्तक, कार्तिक के छह मुंह, पार्वती की कितनी भुजाएं। मातृहृदया अंबा इन सारी विविधताओं को एकता में समेटती हैं। हम विविध होते हुए भी एक हैं, ऐसा भाव रखना भी देवी पूजा के समान ही है। गणेश विवेक का प्रतीक हैं, कार्तिकेय पुरुषार्थ के। हमारे अंदर विवेक और पुरुषार्थ होगा तो हम भी अंबा की ही संतान कहलाएंगे।

राम चरित मानस के में चौपाई है..

महामोहु महिषेसु बिसाला।

रामकथा कालिका कराला॥

अर्थात राम कथा स्वयं कालिका है। श्रोता भी भवानी है। कथा का नायक भी सत कोटि दुर्गासम है और सुनाने वाले शिव भी आधे दुर्गा ही हैं। बिना दुर्गा के कथा नहीं हो सकती। मैंने कुछ वर्ष पूर्व राजधानी दिल्ली की कथा में यह कहा था कि सिर्फ राजनीति के बूते प्रजा का पोषण नहीं किया जा सकता। उसके लिए मां जैसी भावना जरूरी है। शायद इसीलिए हमारे राष्ट्र को भारत माता कहा गया है। भारत दुनिया का ऐसा अकेला देश है जिसे मां कहा गया है। मां जैसी भावना के साथ ही राजा को प्रजा का पालन करना चाहिए।