Chardham Yatra 2024: कब से शुरू हो रही है चारधाम यात्रा? नोट करें कपाट खुलने की तिथि एवं समय
गंगोत्री धाम को गंगा का उद्गम माना गया है जबकि गंगा गंगोत्री से 19 किमी. दूर गोमुख ग्लेशियर से निकलती है। मान्यता है कि गंगोत्री में गंगा मंदिर का निर्माण 18वीं शताब्दी में गोरखा कमांडर अमर सिंह थापा ने करवाया था। यह मंदिर भागीरथी नदी के बाएं तट पर सफेद पत्थरों से निर्मित है। राजा माधो सिंह ने वर्ष 1935 में इसका जीर्णोद्धार किया।
By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Mon, 06 May 2024 02:23 PM (IST)
दिनेश कुकरेती। Chardham Yatra 2024: उत्तराखंड हिमालय की चारधाम यात्रा एक प्रकार से जीवन की यात्रा है। यह यात्रा प्रकृति के मनोहारी दृश्यों के बीच ईश्वरीय तत्व से निकटता का बोध तो कराती ही है, इसमें जीवन का दर्शन भी समाया हुआ है। इस बार चारधाम यात्रा की शुरुआत 10 मई को अक्षय तृतीया पर्व पर यमुनोत्री, गंगोत्री व केदारनाथ धाम के कपाट खुलने के साथ हो रही है। 12 मई को बदरीनाथ धाम के कपाट खोले जाएंगे।
प्रकृति की गोद में विराजमान चारों धामों की इस यात्रा से नकारात्मक विचार भी तिरोहित हो जाते हैं और जीवन में सकारात्मकता का संचार होता है। इस यात्रा में सहजता भी है और मुश्किल पड़ाव भी, लेकिन जब हमारे भीतर उमंग एवं विश्वास की ऊर्जा जागती है, तब हम इसे सहजता से पूर्ण कर लेते हैं। शास्त्रों में चारधाम यात्रा को जीवन के एकमात्र ध्येय भगवद्तत्व एवं भगवत प्रेम की प्राप्ति का हेतु माना गया है।
'पद्म पुराण’ में उल्लेख है कि ‘तरित पापादिकं यस्मात’ अर्थात जिससे मनुष्य बुरे कार्यों से मुक्त हो जाए, वह तीर्थ है। ‘स्कंद पुराण’ के ‘केदारखंड’ में कहा गया है कि मोह, माया, रागादि जैसे सांसारिक बंधनों से मुक्ति के लिए चारधाम यात्रा अवश्य करनी चाहिए। उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में यमुनोत्री धाम से शुरू होने वाली यह यात्रा गंगोत्री (उत्तरकाशी) से केदारनाथ (रुद्रप्रयाग) होते हुए बदरीनाथ (चमोली) पहुंचकर विराम लेती है।
हालांकि, परंपरा में इसकी शुरुआत हरिद्वार से मानी गई है, जो कि श्रीहरि के साथ शिव का भी द्वार है। पहाड़ की कंदराओं से उतरकर गंगा पहली बार यहीं मैदान में पदार्पण करती है। इसलिए हरिद्वार को ‘गंगाद्वार’ भी कहा गया है। चार धाम का पहला पड़ाव है यमुनोत्री धाम। यमुना को भक्ति का उद्गम माना गया है, इसलिए धर्मग्रंथों में सबसे पहले यमुना दर्शन का प्रावधान है।
अंतर्मन में भक्ति का संचार होने पर ही ज्ञान के चक्षु खुलते हैं और ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी हैं सरस्वती स्वरूपा मां गंगा। ज्ञान ही जीव में वैराग्य का भाव जगाता है, जिसकी प्राप्ति भगवान केदारनाथ के दर्शन से ही संभव है। जीवन का अंतिम सोपान है मोक्ष और वह श्रीहरि के चरणों में ही मिल सकता है। शास्त्र कहते हैं कि जीवन में जब कुछ पाने की चाह शेष न रह जाए, तब भगवान बदरी विशाल के शरणागत हो जाना चाहिए, इसलिए बदरिकाश्रम को भू-वैकुंठ कहा गया है।
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