चिंतन धरोहर: एकनिष्ठ भक्ति, स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी से जानिए ईश्वर दर्शन का रहस्य
धर्ममार्ग पर धैर्य एकाग्रता और एकनिष्ठता आवश्यक है। इनके अभाव में लोग हताश होकर सारा विश्वास गंवा देते हैं। इष्टदेवता अथवा ईश्वर के प्रति एकनिष्ठता हो तो ईश्वर दर्शन अवश्य होता है। साथ ही ईश्वर के निकट पहुंचना हो तो एक का निर्देश मानकर चलो नहीं तो रास्ता भटक जाओगे। साथ ही इष्ट देवता पर दृढ़ एकनिष्ठ भक्ति रखना चाहिए जबकि अन्य देवी-देवताओं का सम्मान करना चाहिए।
By Jagran NewsEdited By: Shantanoo MishraUpdated: Mon, 21 Aug 2023 12:05 PM (IST)
स्वामी रामकृष्ण परमहंस । अनेक महापुरुष हैं, अनेक देवी-देवता हैं, अनेक मार्ग हैं, किंतु एकनिष्ठता आवश्यक है। इसी कारण इष्ट देवता की अवधारणा है। घर की बहू सास, ससुर, जेठ, जेठानी सबका आदर सम्मान करती है, किसी की अवज्ञा या उपेक्षा नहीं करती। सबकी सेवा करती है, किंतु अपने पति को वह सबसे अधिक चाहती है। इसी तरह तुम भी अपने इष्ट देवता पर दृढ़ एकनिष्ठ भक्ति रखो, जबकि अन्य देवी-देवताओं का सम्मान करो, सबके प्रति श्रद्धा रखो। सभी देव एक ही परमेश्वर के रूप हैं। किंतु किसी एक के प्रति एकनिष्ठ रहो।
चौसर के खेल में गोटी सब खानों का चक्कर लगाए बिना लक्ष्य पर नहीं पहुंचती। यदि दो गोटियां जोड़ी बांधकर इकट्ठी चलें तो उन्हें कोई काट नहीं सकता, नहीं तो अकेली गोटी लक्ष्य के पास पहुंचकर पकते-पकते भी कट जा सकती है। इसी प्रकार साधना के मार्ग पर भी यदि गुरु अथवा इष्ट के साथ युक्त होकर आगे बढ़ा जाए तो बाधा विघ्न का भय नहीं रहता, यात्रा निर्विघ्न रूप से सफल हो सकती है। एक बार किसी यात्री ने एक आदमी से कलकत्ता (अब कोलकाता) जाने का रास्ता पूछा। उस आदमी ने कहा, इस रास्ते से चले जाओ। थोड़ी दूर चलकर उसने और एक जन से रास्ता पूछा। उसने दूसरा रास्ता बताया। इस तरह वह थोड़ा सा आगे बढ़कर किसी से रास्ता पूछता तो पहले वाले का रास्ता छोड़ उस पर चल देता।
ऐसा करते हुए वह रास्तों पर ही भटकता रहा, कलकत्ता नहीं पहुंच पाया। उसे किसी ऐसे व्यक्ति से रास्ता पूछना चाहिए था, जिस पर विश्वास हो कि वह सही मार्ग जानता है। एक उसी व्यक्ति से पूछकर उसके ही बताए मार्ग पर चलना चाहिए था। इसी प्रकार ईश्वर के निकट पहुंचना हो तो एक का निर्देश मानकर चलो, नहीं तो रास्ता भटक जाओगे। एक आदमी कुआं खोदने गया। थोड़ा सा खोदने के बाद पानी नहीं आया तो उसने वह जगह छोड़ दूसरी जगह खोदना शुरू कर दिया। जब वहां भी पानी नहीं मिला, तो तीसरी जगह खोदने लगा। इस प्रकार वह आखिर तक कुआं नहीं खोद पाया, जिसमें पानी मिल सके। यदि वह धीरज के साथ एक ही जगह खोदता रहता तो उसे न तो इतनी मेहनत करनी पड़ती और पानी भी उसे मिल जाता। धर्ममार्ग पर धैर्य, एकाग्रता और एकनिष्ठता आवश्यक है। इनके अभाव में लोग हताश होकर सारा विश्वास गंवा देते हैं। इष्टदेवता अथवा ईश्वर के प्रति एकनिष्ठता हो तो ईश्वर दर्शन अवश्य होता है।