चिंतन धरोहर: अपने प्रत्येक कर्म में ईश्वर का चिंतन रहना चाहिए
भक्ति लाभ होने पर विषय कर्म धन-मान यश आदि अच्छे नहीं लगते। मिसरी का शरबत पीने के बाद भला गुड़ का शरबत कौन पीना चाहेगा। इसीलिए इससे अनासक्त कर्म का मार्ग प्रशस्त होता है। ईश्वर में भक्ति हुए बिना कर्म बालू की भीति की तरह निराधार है। पहले भक्ति के लिए प्रयत्न करो फिर तुम चाहो तो ये सब स्कूल दवाखाने आदि के लिए प्रयत्न करो।
स्वामी रामकृष्ण परमहंस। कर्म मार्ग में भक्ति का बहुत महत्व है। कर्म वही श्रेष्ठ है, जो अनासक्त होकर किया जाए। विशेषकर इस कलियुग में अनासक्त होकर कर्म करना बहुत कठिन है। इसलिए इस युग के लिए कर्मयोग, ज्ञानयोग आदि की अपेक्षा भक्तियोग ही अच्छा है। परंतु कर्म कोई छोड़ नहीं सकता। मानसिक क्रियाएं भी कर्म ही हैं। मैं विचार कर रहा हूं, मैं ध्यान कर रहा हूं, यह भी कर्म ही है। प्रेम-भक्ति के द्वारा कर्ममार्ग सहज हो जाता है और जो कर्म रहता है, उसे उनकी कृपा से अनासक्त होकर किया जा सकता है।
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भक्ति लाभ होने पर विषय कर्म धन-मान, यश आदि अच्छे नहीं लगते। मिसरी का शरबत पीने के बाद भला गुड़ का शरबत कौन पीना चाहेगा। इसीलिए इससे अनासक्त कर्म का मार्ग प्रशस्त होता है। ईश्वर में भक्ति हुए बिना कर्म बालू की भीति की तरह निराधार है। पहले भक्ति के लिए प्रयत्न करो, फिर तुम चाहो तो ये सब स्कूल, दवाखाने आदि के लिए प्रयत्न करो। पहले भक्ति, फिर कर्म। भक्ति के बिना कर्म व्यर्थ है। यह भी सत्य है कि कर्मभार के कारण भगवान में मन लगाना कठिन है, परंतु ज्ञानी भक्ति के द्वारा अनासक्त होकर काम कर सकता है।
यदि तुम हार्दिक भाव से यह चाहो तो भगवान तुम्हारी सहायता करेंगे और धीरे-धीरे तुम्हारा कर्मबंधन दूर हो जाएगा। क्या केवल ध्यान के समय ही ईश्वर का चिंतन करना चाहिए और बाकी समय उन्हें भूले रहना चाहिए। नहीं, मन का कुछ अंश सदा ईश्वर में लगाए रखना चाहिए। तुमने देखा होगा, दुर्गा पूजा के समय देवी के पास जो दीप जलाते हैं, उसे सदा जलाए रखा जाता है, कभी बुझने नहीं दिया जाता।
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इसी प्रकार हृदय कमल में इष्ट देवता को प्रतिष्ठित करने के बाद उनके स्मरण-चिंतन रूपी दीपक को सदा प्रज्वलित रखना चाहिए। संसार के कामकाज करते हुए बीच-बीच में भीतर की ओर दृष्टि डालकर देखते रहना चाहिए कि वह दीपक जल रहा है कि नहीं। अपने प्रत्येक कर्म में ईश्वर का चिंतन रहना चाहिए।