क्रोध पर नियंत्रण
मनुष्य का सबसे बड़ा दुश्मन क्रोध है, जिसका जन्म अहंकार से होता है। क्रोध में की गई गलती का अंत पश्चाताप पर होता है। जब तक व्यक्ति के मन में शांति है, प्रसन्नता है, क्रोध उस पर हावी नहीं होगा। मुस्कराहट के जाते ही क्रोध उस पर हावी हो जाता है। इसीलिए महापुरुष कहते हैं कि क्रोध की पहली चिंगारी जब आपके अंदर उठे और आपको मर्यादा से बाहर
मनुष्य का सबसे बड़ा दुश्मन क्रोध है, जिसका जन्म अहंकार से होता है। क्रोध में की गई गलती का अंत पश्चाताप पर होता है। जब तक व्यक्ति के मन में शांति है, प्रसन्नता है, क्रोध उस पर हावी नहीं होगा। मुस्कराहट के जाते ही क्रोध उस पर हावी हो जाता है। इसीलिए महापुरुष कहते हैं कि क्रोध की पहली चिंगारी जब आपके अंदर उठे और आपको मर्यादा से बाहर ले जाने का प्रयास करे तब उससे पहले ही उस पर नियंत्रण पाने की कोशिश की जानी चाहिए, अन्यथा क्रोध जब पूरी फौज लेकर आएगा तो उसे रोकना बहुत मुश्किल होगा। वस्तुत: क्रोध एक विकृत मनोवेग है। यदि आ जाए तो इसे बहाने के अलावा और कोई विकल्प नहीं शेष बचता। मन में क्रोध आते ही भौंहें तन जाती हैं। जो व्यक्ति क्रोधी स्वभाव वाले होते हैं उनका साथ लोग वैसे ही छोड़ देते हैं, जैसे सूखे पेड़ को छोड़कर पक्षी उड़ जाते हैं। भगवान श्रीरामचंद्रजी ने भी जीवन में मर्यादा का पालन करते हुए क्रोध के यदाकदा उपयोग को ही सही माना है।
क्रोध में व्यक्ति का नुकसान ज्यादा होता है। व्यक्ति की आयु क्षीण होती है, वह धीरे-धीरे अनेक बीमारियों का शिकार हो जाता है क्रोध परिवार, समाज व कई अवसरों पर राष्ट्र के लिए भी घातक सिद्ध होता है। इसलिए क्रोध की आग उतनी ही जलाएं, जितना काबू में रख सकें। यदि क्रोध को भड़काने वाले कारणों से दूर रहें तो क्रोध पर विजय पाई जा सकती है। यदि किसी समय क्रोध आ जाए तो उसके परिणाम पर विचार जरूर करें। क्रोध से बचने के लिए प्राणायाम व व्यायाम का सहारा लें। गीत-संगीत सुनने के साथ-साथ भक्ति और प्रार्थना करें। खुलकर हंसें। आसपास का वातावरण स्वभावत: सुधरने लगेगा। क्रोध की अवस्था ऊर्जा की एक ऐसी अवस्था है, जिसका शमन रूपांतरण से ही संभव है। क्रोध को बलपूर्वक नहीं दबाया जा सकता। विपरीत परिस्थितियों में भी समन्वय स्थापित करने का प्रयास करें। शांत मनोवृत्ति वाले धीर-वीर समर्थ सत्यपुरुष के सामने क्रोधी का क्रोध अधिक समय तक टिक नहीं सकता। ऐसे स्थान पर गिरा हुआ अंगारा, जहां घास न हो, क्या स्वयं ठंडा नहीं हो जाता? क्रोध को क्रोध से नहीं बल्कि शांति से जीता जा सकता है।
[आचार्य अनिल वत्स]