Dev Uthani Ekadashi 2023: वर्तमान समय में इंटरनेट के साथ इनरनेट से जुड़ने की भी जरूरत है
प्रतिवर्ष चार माह का कैवल्य होता है। यह समय आंतरिक प्रकृति की शुद्धि कर बाहरी प्रकृति व पर्यावरण की शुद्धि हेतु स्वयं को समर्पित करने का अवसर प्रदान करता है। जब भी जागो तभी सवेरा है प्रभु का योगनिद्रा से जागरण और प्रभु के साथ-साथ हमारा अपनी जड़-चेतना एवं विडंबनाओं से जागरण अत्यंत आवश्यक है। यह दिव्य अवसर आध्यात्मिक दृष्टि व दिव्य प्रकाश लेकर आता है।
By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Sun, 19 Nov 2023 11:21 AM (IST)
स्वामी चिदानंद सरस्वती (परमाध्यक्ष, परमार्थ निकेतन, ऋषिकेश): देवोत्थान एकादशी सुषुप्तावस्था से आध्यात्मिक जागरण का संदेश देती है। भगवान श्रीहरि विष्णु चार माह की योग निद्रा के बाद देवोत्थान एकादशी के दिन जागते हैं। यह एक संकेत है कि हमारा आध्यात्मिक जागरण अत्यंत आवश्यक है। ये चार महीने ‘कैवल्य’ के होते हैं। कैवल्य अर्थात एकांत। स्वयं के साथ रहना, खुद को जानना-समझना और अपनी ऊर्जा का संचय कर पूर्ण सकारात्मकता के साथ कर्म साधना हेतु समर्पित हो जाना। प्रभु इस चार माह की योग निद्रा के माध्यम से खुद को संगठित कर स्व से समष्टि की ओर बढ़ने का संदेश देते हैं।
प्रतिवर्ष चार माह का कैवल्य होता है। यह समय आंतरिक प्रकृति की शुद्धि कर बाहरी प्रकृति व पर्यावरण की शुद्धि हेतु स्वयं को समर्पित करने का अवसर प्रदान करता है। जब भी जागो, तभी सवेरा है, प्रभु का योगनिद्रा से जागरण और प्रभु के साथ-साथ हमारा अपनी जड़-चेतना एवं विडंबनाओं से जागरण अत्यंत आवश्यक है। यह दिव्य अवसर आध्यात्मिक दृष्टि व दिव्य प्रकाश लेकर आता है। जीवन का एक-एक क्षण मूल्यवान है। जो क्षण चला गया, वह कभी लौटकर नहीं आता और आने वाला क्षण हमारे हाथ में नहीं है, इसलिए वर्तमान क्षण का सदुपयोग कर उसे सार्थक बनाना, यही हमारे वश में है।
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जीवन में सेवा के बीजों को अंकुरित, पल्लवित व पुष्पित होने दें। इससे स्वयं का जीवन तो उमंग व तरंग से खिल उठेगा ही, औरों के जीवन में भी उल्लास का संचार होगा। चातुर्मास आध्यात्मिक जागरण के साथ अपने मूल, मूल्य, जड़ों से जुड़ने, नूतन व श्रेष्ठ विचारों पर चितंन करने का भी अवसर प्रदान करता है। इस समय का उपयोग हम सर्वश्रेष्ठ मार्गदर्शक के रूप में अतीत का मंथन, वर्तमान में जीवन और भविष्य का चितंन कर आगे बढ़ सकते हैं।
जब हम एकांत में होते हैं तो यह समय दुनिया को समझने, सही और गलत के बीच निर्णय लेने में हमारी मदद करता है। हमारे आदर्श, मार्गदर्शक या सार्वकालिक शिक्षक के रूप में वह कैवल्य हमारे जीवन में शामिल हो जाता है और उसके पश्चात हमारे व्यक्तित्व में गुणात्मक परिवर्तन आता है। यदि आज के युवा इस कैवल्य के चातुर्मास के महत्व को जान लें, तो उन्हें अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करने में मदद मिलेगी। उनके ज्ञान और रचनात्मकता को बढ़ाने में भी उनकी सहायता होगी।
हमारा जीवन हमारे निर्णयों का ही तो परिणाम होता है, इसलिए उसे श्रेष्ठ बनाने के लिए हमें उन सनातन वैदिक परंपराओं को आत्मसात करना होगा, जिन्हें हमारे ऋषियों ने बड़े ही शोध, वैज्ञानिकता और आध्यात्मिक ज्ञान के आधार पर तैयार किया है। चातुर्मास का समय उसी शोध का दिव्य उदाहरण है, जिसका प्रयोग कर हम जीवन में सत्य, अहिंसा और अनुशासन सीख सकते हैं। नैतिकता, मूल्यों और श्रेष्ठ गुणों से समृद्ध जीवन का निर्माण कर एक श्रेष्ठ समाज और जिम्मेदार नागरिकों का निर्माण कर सकते हैं।
साथ ही अपनी कल्पना शक्ति और रचनात्मकता को भी बढ़ा सकते हैं। इन दिनों इंटरनेट, मोबाइल फोन और कंप्यूटर आदि का इस्तेमाल बहुत आम हो गया है। इन तकनीकों की मदद से जानकारी तो प्राप्त की जा सकती है, लेकिन चिंतन की शैली को विकसित नहीं किया जा सकता। ऐसे समय में कैवल्य की पहले से अधिक आवश्यकता है। वर्तमान समय में इंटरनेट के साथ इनरनेट से जुड़ने की भी जरूरत है और इनरनेट से जुडने का सबसे श्रेष्ठ माध्यम एकांत है, कैवल्य है और चातुर्मास है।
यह भी पढ़ें: सनातन संस्कृति में विचारों, विश्वासों और खोजने की विविधता रही है यही प्रभु श्रीहरि की योग निद्रा से जागृत अवस्था में प्रवेश की यात्रा है। यही वह अवसर है, जब अंधकार को दूर कर पूरे वातावरण को प्रकाशित किया जा सकता है। हमारे अतंस को, आंतरिक अंधकार को दूर कर भीतर ज्ञान का दीप जलाया जा सकता है। जब हम भीतर प्रकाश को खोजें, भीतर की जंक फाइल्स को डिलीट करें, भीतर पड़े धूल को हटाएं, भीतर सद्गुणों का रंग-रोगन करें, ताकि चैतन्य जाग्रत हो, ज्ञान के सूर्य का उदय हो।
चातुर्मास में बाहरी प्रकृति में भी परिवर्तन होता है। बाहर तो प्रकाशमान ऊर्जा व्याप्त है, लेकिन भीतर भी कैवल्य का नन्हा-सा दीप प्रज्वलित हो, जो भेदभाव की सारी दीवारों को मिटा दें, दरारों को भर दें और हम सभी के दिलों में भी प्रेम व सद्भाव के दीप जलाएं, ताकि हमारा अंतर्मन भी प्रकाशित हो उठे। श्रीहरि के साथ जागने का तात्पर्य अंधकार को प्रकाश में बदलना ही नहीं है, अंधकार को दूर करना भी है। अपने विचारों से, व्यवहार से, दृष्टिकोण से हमने अपने आंतरिक प्रकाश को ढककर रखा है, उसे हटाना है।
जिस प्रकार सूर्य बाहर चमकता रहता है, लेकिन यदि हम अपने घर की खिड़कियां न खोलें और पर्दे से पूर्णतया ढक दें तो घर में प्रकाश नहीं आएगा, सदैव घर के अंदर अंधकार ही रहेगा अर्थात यदि हमें प्रकाश चाहिए तो घर की खिड़कियों को खोलना होगा, पर्दों को हटाना होगा। तब प्रकाश स्वतः ही हमारे घर में प्रवेश करेगा। इसी प्रकार हमने अपने विचार, व्यवहार और सोच पर रूढ़ियों के, आकांक्षाओं के, ईर्ष्या के पर्दे डाल रखे हैं, उन्हें हटाना होगा। फिर हमारी चेतना हमारा, अंत:करण प्रकाश से आलौकित हो उठेगा। यही वास्तव में देवोत्थान से स्वत्थान है।