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Dev Uthani Ekadashi 2024: अपने अंदर की दिव्यता को जगाने का समय है देवउठनी एकादशी, जानें क्यों है ये खास?

देवोत्थान एकादशी (Dev Uthani Ekadashi 2024) हमारे भीतर यह बोध जाग्रत करती है कि हमें अपने भीतर की दिव्यता को जगाने का समय आ गया है। भगवान विष्णु का योगनिद्रा से जागरण हमारे भीतर के चैतन्य के जाग्रत होने का संदेश देता है तो आइए इस दिन से जुड़ी प्रमुख बातों को जानते हैं जो यहां पर दी गई है।

By Jagran News Edited By: Vaishnavi Dwivedi Updated: Mon, 11 Nov 2024 02:46 PM (IST)
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Dev Uthani Ekadashi 2024: देवउठनी एकादशी विशेष।
स्वामी अवधेशानन्द गिरि (जूनापीठाधीश्वर, आचार्यमहामंडलेश्वर)। देवोत्थान एकादशी अथवा देव प्रबोधिनी एकादशी पर त्रैलोक्य के पालनहार भगवान श्रीविष्णु के योगनिद्रा से जागरण के साथ ही सकल दैवसत्ता चैतन्य होने से समस्त शुभ कर्मों के संपादन का अनुकूल समय आरंभ हो जाता है, मनुष्य में पूर्वकाल से ही अपरिमित ऊर्जा-अतुल्य सामर्थ्य, ओज-तेज आदि पारमार्थिक विभूतियां विद्यमान हैं, जिन्हें विवेक, शुभ-विचार तथा सद्संकल्प द्वारा जाग्रत किया जा सकता है। देवोत्थान एकादशी हमारे भीतर विद्यमान उन्हीं दिव्यताओं के जागरण की शुभ्र बेला है।

श्री, ऐश्वर्य और आयुष्य स्वरूपा मां वृंदा (तुलसी) के सत्य एवं धर्म स्वरूप भगवान श्रीनारायण को वरण करने से अभिप्राय यह है कि धन-यश आदि संसार की समस्त विभूतियां धर्म और सत्य की अनुगामिनी हैं। कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान श्रीविष्णु चार मास की योगनिद्रा के बाद जागते हैं।

प्रत्येक एकादशी व्रत का है महत्व

इसलिए इस एकादशी को देवउठनी एकादशी, देवोत्थान एकादशी अथवा प्रबोधिनी एकादशी कहते हैं। वैसे तो प्रत्येक एकादशी व्रत का विशेष महत्व है, लेकिन देवउठनी एकादशी पर किए गए व्रत एवं पूजन से भगवान श्रीविष्णु प्रसन्न होते हैं और भक्तों की हर मनोकामना पूरी करते हैं। विचारों में अद्वितीय सामर्थ्य विद्यमान है। जीवन रूपांतरण के लिए वैचारिक शुचि-संपन्नता नितांत अपेक्षित है! स्वस्थ, सकारात्मक और पवित्र विचार दिशा और दृष्टि प्रदान करते हैं।

जीवन रचना में विचारों की मूल भूमिका

जीवन रचना में विचारों की मूल भूमिका है। शुभ-विचार जीवन में सहजता, अभयता, सरसता और आनंद-अनुभव को साकारता प्रदान करने वाले आध्यात्मिक बीज हैं। अतः अंतर्मन शुभ-विचार संपन्न रहे। अंत:करण में निरंतर शुभ-दिव्य विचार प्रसूत हो, ऐसी सचेतता रहे। संसार की प्रायः सभी शक्तियां जड़ होती हैं। विचार-शक्ति, चेतन-शक्ति है। उदाहरण के लिए, धन अथवा जनशक्ति ले लीजिए। अपार धन उपस्थित हो, किंतु समुचित प्रयोग करने वाला कोई विचारवान व्यक्ति न हो तो उस धनराशि से कोई भी काम नहीं किया जा सकता। जन-शक्ति और सैन्य-शक्ति अपने आप में कुछ भी नहीं हैं।

''यद्यद्विभूतिमत्सत्त्वं श्रीमदूर्जितमेव वा।

तत्तदेवावगच्छ त्वं मम तेजोंऽशसंभवम्।।''

जब कोई विचारवान नेता अथवा नायक उसका ठीक से नियंत्रण और अनुशासन कर उसे उचित दिशा में लगाता है, तभी वह कुछ उपयोगी हो पाती है। शासन, प्रशासन और व्यावसायिक सभी कार्य एक मात्र विचार द्वारा ही नियंत्रित और संचालित होते हैं। भौतिक क्षेत्र में ही नहीं, उससे आगे बढ़कर आत्मिक क्षेत्र में भी एक विचार-शक्ति ही ऐसी है, जो काम आती है। न शारीरिक और ना ही सांपत्तिक, कोई अन्य शक्ति काम नहीं आती। इस प्रकार जीवन तथा जीवन के हर क्षेत्र में केवल विचार-शक्ति का ही साम्राज्य रहता है।

सकारात्मक विचार

जीवन को नई दिशा देते हैं सकारात्मक विचार। लक्ष्य मात्र एक ही होना चाहिए- विचारों की शुचिता। यदि विचार सही व विधेयात्मक हुए तो व्यक्ति का निर्माण सही होता चला जाएगा। हम सभी एक ही परमात्मा की संतानें हैं, अतः अन्य के अधिकार, सम्मान और स्वाभिमान का अभिरक्षण करना हमारा प्रथम कर्तव्य हो। धर्म वह है, जहां छल-कपट नहीं है, जहां धैर्य, क्षमा, इंद्रिय निग्रह, सत्य, अक्रोध, निराभिमानता तथा अहिंसा है। इसके विपरीत यदि कोई भी आचरण या कर्म करें तो वह धर्म नहीं हो सकता। अतः एकता, सहकार, समन्वय और परस्पर प्रीति द्वारा दुर्लक्ष्य और अप्राप्य वस्तुएं भी सहज सुलभ हो जाती है।

सफलता का मूल मंत्र

समन्वय जीवन सिद्धि और सफलता का मूल मंत्र है। सभी जातियां समान हैं और सभी जातियां महान हैं। हम सभी उस एक ईश्वर की संतानें हैं। ईश्वर को हमसे कुछ नहीं चाहिए। वह तो यही चाहता है कि मनुष्य अपना जीवन सुख, शांति तथा आनंद से व्यतीत करे। परम आनंद परमात्मा के निकट रहने में ही है। उसकी स्तुति, प्रार्थना तथा उपासना में ही है। इसलिए ईश्वर की स्तुति भी बहुत आवश्यक है। जब हम किसी की प्रशंसा करते हैं, किसी को अपने से अधिक योग्य, दयालु, शक्तिशाली तथा पूज्य मानते हैं, तब हम अहंकार शून्य हो जाते हैं।

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धर्मयुक्त कल्याणकारी मार्ग

स्वभाव में विनम्रता तथा सात्विकता आ जाती है, जो कि बुद्धि को संतुलित रखकर कर्म करने की प्रेरणा देती है। विवेकपूर्वक किया गया कर्म तथा अहंकार रहित प्रार्थना हमें ईश्वर के निकट पहुंचाती है। ईश्वर से प्रार्थना करते समय हम यह कहें कि हे ज्ञान प्रकाश स्वरूप! सच्चे मार्ग को दिखाने वाले, दिव्य सामर्थ्य युक्त जगदीश्वर, परमेश्वर हमें ज्ञान, विज्ञान, ऐश्वर्य आदि की प्राप्ति कराने के लिए धर्मयुक्त कल्याणकारी मार्ग पर चलाएं। आप समस्त ज्ञान और कर्मों को जानते हैं। हमसे कुटिलता युक्त पापरूपी कर्म को दूर कीजिए।

नियम और संयम

हम आपकी विविध प्रकार स्तुति, प्रार्थना, उपासना, सत्कार नम्रतापूर्वक करते हैं। हमारा जीवन पाप से दूर हो और जो भी भाव हमें पाप करने की प्रेरणा दे, उसे हमसे दूर कीजिए। ईश्वर से प्रार्थना करते समय अत्यंत विनम्र भाव से प्रार्थना करें। ऐसे दुर्व्यसन दुर्गुणों को अपने पास न आने दें, जिससे कि हमारे कर्मों पर उसका प्रभाव पड़े। अतः जीवन को सुचारु रूप से चलाने के लिए विचारों के प्रति जागरूकता का होना और नियम और संयम से जीवन जीने की आवश्यकता है। तभी हमारे भीतर दिव्यता का जागरण होगा।

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