Dev Uthani Ekadashi 2024: अपने अंदर की दिव्यता को जगाने का समय है देवउठनी एकादशी, जानें क्यों है ये खास?
देवोत्थान एकादशी (Dev Uthani Ekadashi 2024) हमारे भीतर यह बोध जाग्रत करती है कि हमें अपने भीतर की दिव्यता को जगाने का समय आ गया है। भगवान विष्णु का योगनिद्रा से जागरण हमारे भीतर के चैतन्य के जाग्रत होने का संदेश देता है तो आइए इस दिन से जुड़ी प्रमुख बातों को जानते हैं जो यहां पर दी गई है।
स्वामी अवधेशानन्द गिरि (जूनापीठाधीश्वर, आचार्यमहामंडलेश्वर)। देवोत्थान एकादशी अथवा देव प्रबोधिनी एकादशी पर त्रैलोक्य के पालनहार भगवान श्रीविष्णु के योगनिद्रा से जागरण के साथ ही सकल दैवसत्ता चैतन्य होने से समस्त शुभ कर्मों के संपादन का अनुकूल समय आरंभ हो जाता है, मनुष्य में पूर्वकाल से ही अपरिमित ऊर्जा-अतुल्य सामर्थ्य, ओज-तेज आदि पारमार्थिक विभूतियां विद्यमान हैं, जिन्हें विवेक, शुभ-विचार तथा सद्संकल्प द्वारा जाग्रत किया जा सकता है। देवोत्थान एकादशी हमारे भीतर विद्यमान उन्हीं दिव्यताओं के जागरण की शुभ्र बेला है।
श्री, ऐश्वर्य और आयुष्य स्वरूपा मां वृंदा (तुलसी) के सत्य एवं धर्म स्वरूप भगवान श्रीनारायण को वरण करने से अभिप्राय यह है कि धन-यश आदि संसार की समस्त विभूतियां धर्म और सत्य की अनुगामिनी हैं। कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान श्रीविष्णु चार मास की योगनिद्रा के बाद जागते हैं।
प्रत्येक एकादशी व्रत का है महत्व
इसलिए इस एकादशी को देवउठनी एकादशी, देवोत्थान एकादशी अथवा प्रबोधिनी एकादशी कहते हैं। वैसे तो प्रत्येक एकादशी व्रत का विशेष महत्व है, लेकिन देवउठनी एकादशी पर किए गए व्रत एवं पूजन से भगवान श्रीविष्णु प्रसन्न होते हैं और भक्तों की हर मनोकामना पूरी करते हैं। विचारों में अद्वितीय सामर्थ्य विद्यमान है। जीवन रूपांतरण के लिए वैचारिक शुचि-संपन्नता नितांत अपेक्षित है! स्वस्थ, सकारात्मक और पवित्र विचार दिशा और दृष्टि प्रदान करते हैं।जीवन रचना में विचारों की मूल भूमिका
जीवन रचना में विचारों की मूल भूमिका है। शुभ-विचार जीवन में सहजता, अभयता, सरसता और आनंद-अनुभव को साकारता प्रदान करने वाले आध्यात्मिक बीज हैं। अतः अंतर्मन शुभ-विचार संपन्न रहे। अंत:करण में निरंतर शुभ-दिव्य विचार प्रसूत हो, ऐसी सचेतता रहे। संसार की प्रायः सभी शक्तियां जड़ होती हैं। विचार-शक्ति, चेतन-शक्ति है। उदाहरण के लिए, धन अथवा जनशक्ति ले लीजिए। अपार धन उपस्थित हो, किंतु समुचित प्रयोग करने वाला कोई विचारवान व्यक्ति न हो तो उस धनराशि से कोई भी काम नहीं किया जा सकता। जन-शक्ति और सैन्य-शक्ति अपने आप में कुछ भी नहीं हैं।
''यद्यद्विभूतिमत्सत्त्वं श्रीमदूर्जितमेव वा।
तत्तदेवावगच्छ त्वं मम तेजोंऽशसंभवम्।।''जब कोई विचारवान नेता अथवा नायक उसका ठीक से नियंत्रण और अनुशासन कर उसे उचित दिशा में लगाता है, तभी वह कुछ उपयोगी हो पाती है। शासन, प्रशासन और व्यावसायिक सभी कार्य एक मात्र विचार द्वारा ही नियंत्रित और संचालित होते हैं। भौतिक क्षेत्र में ही नहीं, उससे आगे बढ़कर आत्मिक क्षेत्र में भी एक विचार-शक्ति ही ऐसी है, जो काम आती है। न शारीरिक और ना ही सांपत्तिक, कोई अन्य शक्ति काम नहीं आती। इस प्रकार जीवन तथा जीवन के हर क्षेत्र में केवल विचार-शक्ति का ही साम्राज्य रहता है।