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Diwali 2024: कैसे हुई दीपोत्सव मनाने की शुरुआत? ऐसे करें मां लक्ष्मी को प्रसन्न

सभी युगों में दीपावली मनाने का उल्लेख मिलता है। विज्ञजन कहते हैं कि पहली बार दीपावली (Diwali 2024) सतयुग में समुद्र मंथन के दौरान प्रकट हुईं माता महालक्ष्मी के स्वागत के रूप में मनाई गई थी। त्रेतायुग में मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम द्वारा रावण वध के बाद अयोध्या आगमन पर पूरी नगरी को दीपमालिकाओं से सजाया गया था। आइए पढ़ते हैं दीपावली से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें।

By Jagran News Edited By: Kaushik Sharma Updated: Mon, 28 Oct 2024 04:03 PM (IST)
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Diwali 2024 Date: दीपावली का धार्मिक महत्व
डा. चिन्मय पण्ड्या (प्रतिकुलपति, देवसंस्कृति विश्वविद्यालय)। दीपावली धन और समृद्धि की देवी लक्ष्मी के पूजन का विशेष अवसर है। हमें इसे केवल धन-संपत्ति के विश्लेषण तक ही सीमित नहीं रखना चाहिए, वरन अपने व्यसनों को छोड़कर सद्गुणों को अपनाना चाहिए, क्योंकि लक्ष्मी जीवन-साधना और आत्म-सुधार का आधार हैं।

असत्य पर सत्य की विजय के प्रतीक है दीपावली

सभी युगों में दीपावली मनाने का उल्लेख मिलता है। विज्ञजन कहते हैं कि पहली बार दीपावली सतयुग में समुद्र मंथन के दौरान प्रकट हुईं माता महालक्ष्मी के स्वागत के रूप में मनाई गई थी। त्रेतायुग में मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम द्वारा रावण वध के बाद अयोध्या आगमन पर पूरी नगरी को दीपमालिकाओं से सजाया गया था और यह पर्व असत्य पर सत्य की विजय के प्रतीक दीपपर्व-प्रकाशपर्व के रूप में मनाया गया था। द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा नरकासुर के वध और अपनी बहन सत्यभामा के लिए पारिजात का वृक्ष लाने की घटना दीपावली पर्व के एक दिन पूर्व चतुर्दशी से जुड़ी है। कलियुग में इन सभी को समन्वित कर पांच दिवसीय दीपोत्सव महापर्व के रूप में मनाने की परंपरा है।

मां लक्ष्मी की होती है विशेष पूजा

दीपावली में लक्ष्मी पूजन का महत्वपूर्ण विधान है। लक्ष्मी धन और समृद्धि की देवी मानी जाती हैं। अत: यह धन और समृद्धि का त्योहार है। दीपावली के अवसर पर हम अपनी वित्तीय स्थिति का विश्लेषण करते हैं, उस पर ध्यान देते हैं और अपने लाभ और हानि की समीक्षा करते हैं, लेकिन इसे केवल वित्तीय विश्लेषण तक ही सीमित नहीं रखना चाहिए, वरन इस अवसर पर हमें अपनी भीतरी समृद्धि को भी बढ़ाना चाहिए। अपने व्यसनों को छोड़कर सद्गुणों को अपनाना चाहिए। समृद्धि यानी लक्ष्मी जीवन-साधना, आत्म सुधार का आधार और सहारा है। हमें देवी लक्ष्मी को अपनी मां की तरह ही आत्मसात करना चाहिए और उनके आशीर्वाद रूपी धन-संपत्ति और समृद्धि का उपयोग अपनी क्षमताओं-प्रतिभाओं को विकसित करने के लिए करना चाहिए, न कि आराम और विलासिता के लिए। धन को केवल उपयोगी कार्यों में खर्च करना चाहिए, तभी उसकी सार्थकता है।

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दीपावली का पर्व अज्ञान के अंधकार को करता है दूर

दीपावली अज्ञान के अंधकार को दूर कर प्रकाश का वरण करने का पर्व है। दीपावली से जुड़ी ऐसी अनेक कथाएं हमारे प्राचीन ग्रंथों में विद्यमान हैं, जो किसी न किसी रूप में हमें जीवन के मूल्य को समझाती हैं। इनमें ऐसे विविध दर्शन छिपे हुए हैं, जो मानव जीवन में जड़ जमाए बैठी नकारात्मक वृत्तियों को छोड़कर ताजगी के साथ आगे बढ़ने का संदेश देते हैं। जिस तरह दीपक स्वयं जलकर अंधेरा हटाकर दूसरों को उजाला बांटता है और अपने परिवेश को प्रकाशित करता है, उसी तरह मानवों को भी दूसरों के अज्ञान, विविध संकट रूपी अंधकार को मिटाने के लिए कार्य करना चाहिए। दीपावली नई शुरुआत का, आगे बढ़ने का प्रेरणादायी पर्व का नाम है।

ऋग्वेद में एक प्रसिद्ध मंत्र है- ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि। ॐ भूरिदा त्यसि श्रुतः पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि।।

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जातक करते हैं मां लक्ष्मी से खास प्रार्थना

अर्थात हे लक्ष्मीपते! आप दानी हैं, साधारण दानदाता ही नहीं, बहुत बड़े दानी हैं। विज्ञजन कहते हैं कि संसार भर से निराश होकर जो याचक आपसे प्रार्थना करता है, उसकी पुकार सुनकर उसे आप आर्थिक कष्टों से मुक्त कर देते हैं, उसकी झोली भर देते हैं। हे भगवान, मुझे भी संकट से मुक्त कर दो। मुझे ऐसी शक्ति दो कि मैं भी आपके इन गुणों का पालन करने में अपना कदम बढ़ा सकूं। यदि हम अपने परिवार, समाज व राष्ट्र को समृद्धिशाली रूप में पल्लवित होते देखना चाहते हैं तो हम सबको मिलकर दैन्य और दरिद्रता के कारणों को मिटाना होगा। तभी परिवार, समाज व राष्ट्र की सामाजिक स्थिति के साथ आर्थिक स्थिति मजबूत होगी।

ये तत्व हैं हानिकारक

दीपावली चूंकि उल्लास का पर्व है। इसलिए इस दिन लोग पटाखे आदि का उपयोग करते हैं, जिसमें अनेक ऐसे तत्व होते हैं, जो हमारे लिए ही हानिकारक होते हैं। ये पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं। अत: यदि पटाखे जलाना ही है तो हमें पर्यावरण अनुकूल हरित पटाखों का उपयोग करना चाहिए। जब पर्यावरण स्वस्थ रहेगा, तभी हमारा जीवन (स्वास्थ्य) भी सुखमय रहेगा।

हमारा उल्लास पीड़ा का कारण न बने, इस पर हमारी युवा पीढ़ी को सोचने की आवश्यकता है। अपने उल्लास को आप अपने परिवार, सगे संबंधियों में मिठाइयां बांटकर, स्वच्छता अभियान चलाकर व पौधारोपण जैसे पुनीत कार्य कर अभिव्यक्त कर सकते हैं। इससे हरित दीवाली-स्वस्थ दीवाली के अभियान को बल मिलेगा। इस दिशा में अखिल विश्व गायत्री परिवार के संग मिलकर देवसंस्कृति विश्वविद्यालय से जुड़े हजारों युवा विगत कई दशक से कार्य कर रहे हैं, जिसके परिणाम भी बहुत ही अच्छे देखने को मिल रहे हैं।

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