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जानते हैं सबसे पहला कांवडिया कौन था, किसने, कहां से शुरू की थी कांवड़ यात्रा

समुद्र मंथन से निकले हलाहल के नकारात्मक प्रभाव को कम करने के लिए सभी देवता शिवजी पर गंगाजी से जल लाकर अर्पित करने लगेे सावन मास में कांवड़ यात्रा का प्रारंभ यहीं से हुआ।

By Preeti jhaEdited By: Updated: Fri, 22 Jul 2016 10:17 AM (IST)
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सावन का महीना शुरू हो गया है और इसके साथ ही केसरिया कपड़े पहने शिवभक्तों के जत्थे गंगा का पवित्र जल शिवलिंग पर चढ़ाने निकल पड़े हैं। ये जत्थे जिन्हें हम कांवड़ियों के नाम से जानते हैं उत्तर भारत में सावन का महीना शुरू होते ही सड़कों पर निकल पड़ते हैं। पिछले दो दशकों से कांवड़ यात्रा की लोकप्रियता बढ़ी है और अब समाज का उच्च एवं शिक्षित वर्ग भी कांवड यात्रा में शामिल होने लगे हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इतिहास का सबसे पहला कांवडिया कौन था। इसे लेकर कई मान्यताएं हैं-

1. परशुराम थे पहले कांवड़िया-

कुछ विद्वानों का मानना है कि सबसे पहले भगवान परशुराम ने उत्तर प्रदेश के बागपत के पास स्थित ‘पुरा महादेव’ का कांवड़ से गंगाजल लाकर जलाभिषेक किया था। परशुराम, इस प्रचीन शिवलिंग का जलाभिषेक करने के लिए गढ़मुक्तेश्वर से गंगा जी का जल लाए थे। आज भी इस परंपरा का अनुपालन करते हुए सावन के महीने में गढ़मुक्तेश्वर से जल लाकर लाखों लोग ‘पुरा महादेव’ का जलाभिषेक करते हैं। गढ़मुक्तेश्वर का वर्तमान नाम ब्रजघाट भी है

2.श्रवण कुमार थे पहले कांवड़ियां-

वहीं कुछ विद्वानों का कहना है कि सर्वप्रथम त्रेतायुग में श्रवण कुमार ने पहली बार कांवड़ यात्रा की थी। माता-पिता को तीर्थ यात्रा कराने के क्रम में श्रवण कुमार हिमाचल के ऊना क्षेत्र में थे जहां उनके अंंधे माता-पिता ने उनसे मायापुरी यानि हरिद्वार में गंगा स्नान करने की इच्छा प्रकट की। माता-पिता की इस इच्छा को पूरी करने के लिए श्रवण कुमार अपने माता-पिता को कांवड़ में बैठा कर हरिद्वार लाए और उन्हें गंगा स्नान कराया। वापसी में वे अपने साथ गंगाजल भी ले गए. इसे ही कांवड़ यात्रा की शुरुआत माना जाता है

3.भगवान राम ने किया था कांवड यात्रा की शुरुआत-

कुछ मान्यताओं के अनुसार भगवान राम पहले कांवडियां थे। उन्होंने झारखंड के सुल्तानगंज से कांवड़ में गंगाजल भरकर, बाबाधाम में शिवलिंग का जलाभिषेक किया था

4.रावण ने की थी इस परंपरा की शुरुआत-

पुराणों के अनुसार कावंड यात्रा की परंपरा, समुद्र मंथन से जुड़ी है। समुद्र मंथन से निकले विष को पी लेने के कारण भगवान शिव का कंठ नीला हो गया और वे नीलकंठ कहलाए। परंतु विष के नकारात्मक प्रभावों ने शिव को घेर लिया। शिव को विष के नकारात्मक प्रभावों से मुक्त कराने के लिए उनके अनन्य भक्त रावण ने ध्यान किया। तत्पश्चात कांवड़ में जल भरकर रावण ने ‘पुरा महादेव’ स्थित शिवमंदिर में शिवजी का जल अभिषेक किया। इससे शिवजी विष के नकारात्मक प्रभावों से मुक्त हुए और यहीं से कांवड़ यात्रा की परंपरा का प्रारंभ हुआ

5.देवताओं ने सर्वप्रथम शिव का किया था जलाभिषेक

कुछ मान्यताओं के अनुसार समुद्र मंथन से निकले हलाहल के नकारात्मक प्रभाव को कम करने के लिए शिवजी ने शीतल चंद्रमा को अपने माथे पर धारण कर लिया था। इसके बाद सभी देवता शिवजी पर गंगाजी से जल लाकर अर्पित करने लगे। सावन मास में कांवड़ यात्रा का प्रारंभ यहीं से हुआ

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