Guru Purnima 2024: जीवन में प्रगति के लिए सद्गुरु की सहायता परम आवश्यक है
गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि सद्गुरु मनुष्य देहधारी होते हुए भी सामान्य मनुष्य नहीं हैं। वह नर रूप में नारायण हैं। जो उनके प्रति इसी गहरी श्रद्धा के साथ स्वयं को अर्पित करता है उसे ही उनके वचनों से तत्वबोध होता है। उसके जीवन में सद्गुरु के वचन सूर्य की किरणों की तरह अवतरित होते हैं और महामोह के घने अंधेरे को पल भर में नष्ट कर डालते हैं।
डा. प्रणव पण्ड्या (कुलाधिपति, देवसंस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार): सद्गुरु की महिमा गाते-गाते शास्त्रकार थकते नहीं। मनीषियों ने निरंतर यही कहा है कि आध्यात्मिक प्रगति के लिए सद्गुरु की सहायता आवश्यक है। ‘गुरु’ अपने शिष्य के अज्ञान के अंधकार को दूर कर उसमें सद्ज्ञान का प्रकाश भर देता है। इसलिए वह ‘गुरु’ के रूप में वंदनीय अभिनंदनीय हो जाता है। सद्गुरु की महिमा, उपयोगिता एवं आवश्यकता सर्वसाधारण को अनुभव कराई जा सके, इस उद्देश्य से गुरु पूर्णिमा (इस बार 21 जुलाई) पर्व का बड़ा महत्व है। शास्त्र कहते हैं :
अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जन- शलाकया।
चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः॥
गुरु गीता में कहा गया है-गुकार अंधकार का वाचक है और रुकार तेज व प्रकाश का। इस प्रकार गुरु ही अज्ञान का नाश करने वाले ब्रह्म हैं, इसमें तनिक भी संशय नहीं। इसीलिए ‘गुरु-चरण’ सर्वश्रेष्ठ हैं।
गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि सद्गुरु मनुष्य देहधारी होते हुए भी सामान्य मनुष्य नहीं हैं। वह नर रूप में नारायण हैं। जो उनके प्रति इसी गहरी श्रद्धा के साथ स्वयं को अर्पित करता है, उसे ही उनके वचनों से तत्वबोध होता है। उसके जीवन में सद्गुरु के वचन सूर्य की किरणों की तरह अवतरित होते हैं और महामोह के घने अंधेरे को पल भर में नष्ट कर डालते हैं। गुरुदेव भगवान के चरण की ही नहीं, उनके चरणों की धूलि की बड़ी महत्ता है :
बंदऊ गुरुपद पदुम परागा।
सुरुचि सुबास सरस अनुरागा॥
अमिय मूरिमय चूरन चारू।
समन सकल भवरुज परिवारू॥
सद्गुरु के चरण कमलों की धूलि की मैं वंदना करता हूं। गोस्वामी जी का कहना है कि चरणरज साधारण नहीं है। इसे श्रद्धाभाव से धारण किया जाए, तो जीवन में कई तत्व प्रकट होते हैं। इनमें से पहला तत्व सुरुचि है। वर्तमान में हममें से प्रायः सभी कुरुचि से घिरे हैं। हमारी रुचियां मोह और इंद्रिय विषयों की ओर हैं। सुरुचि के जाग्रत होते ही उच्चस्तरीय जीवन के प्रति जागृति होती है। दूसरा तत्व है-सुवास। सद्गुरु चरणों की धूलि का महत्व समझ में आते ही जीवन सुगंधित हो जाता है।
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वासनाओं व कामनाओं की मलिन, दूषित दुर्गंध मिटने लगती है। इसके साथ ही तीसरा तत्व प्रकट होता है-सरसता का, संवेदना का। निष्ठुरता विलीन होती है, संवेदना जाग्रत होती है। इन सारे तत्वों के साथ विकसित होता है अनुराग, अपने गुरुदेव के प्रति। जीवन में गुरुभक्ति तरंगित होती है और जीवन में कल्याण व आनंद प्रकट होते हैं। यह गुरुचरणों की रज गुरु भक्तों के मन रूपी दर्पण के मैल को दूर करने वाली है। गुरु चरणों के तत्वद्रष्टा महाकवि तुलसी कहते हैं कि गुरुचरणों की कृपा से तत्वज्ञान, ब्रह्मतादात्म्य, ईश्वर कृपा सभी कुछ सुलभ हो जाती है। हममें से हर एक के लिए यह पावन गुरु पूर्णिमा, गुरुचरणों की इसी कृपा की अनुभूति का पर्व है।