Message by Dr. Pranav Pandya: मन-वचन-कर्म की हो शुद्धता, जानें क्या संदेश दे रहे हैं डा. प्रणव पंड्या
Dr. Pranav Pandya Message नव वर्ष 2023 शुभारंभ हो चुका है। अखिल विश्व गायत्री परिवार के प्रमुख एवं कुलाधिपति डा। प्रणव पंड्या से जानिए कि नए साल में व्यक्ति को कैसे अपना जीवन यापन करना चाहिए। जाने नए साल में क्या बदलाव हैं जरूरी।
By Shantanoo MishraEdited By: Shantanoo MishraUpdated: Mon, 02 Jan 2023 04:33 PM (IST)
नई दिल्ली, डा. प्रणव पंड्या | New Year 2023 Message by Dr. Pranav Pandya: भारत विश्वभर में अपने समृद्ध संस्कृति के लिए जाना जाता है। साथ ही भारतीय भी अपने सांस्कृतिक परंपराओं का पालन दृढ़ता से करते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि इन्हें समानता, स्वतंत्रता और एकत्व जैसे मूल्यों का आधार माना जाता है। सनातन परम्परा शांति, समन्वय, त्याग और अहिंसा जैसे महत्वपूर्ण मूल्यों को जीवन में अपनाने का संदेश देती हैं। नए साल में इन मूल्यों को जीवन में अपनाना व्यक्ति के लिए बहुत ही लाभदायक हो सकता है। कुछ ऐसे ही संदेश दे रहे हैं अखिल विश्व गायत्री परिवार के प्रमुख एवं कुलाधिपति डा. प्रणव पंड्या।
संदेश21वीं सदी 22 कदम चल चुकी है और अब उसने अपना 23वां कदम रखा है। अंधियारे से उजियारे की ओर है उसका यह पग। अनेक संभावनाएं हैं इसमें। उज्ज्वल भविष्य और सुखी जीवन के अनेक संकेत-संदेश हैं इसमें। सुनना हमें है, समझना हमें है और अपने जीवन पथ का निर्धारण भी हमें ही करना है। ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ का गान हवाओं में गूंज रहा है। हिमालय के ऋषियों के इस गान को अब हम सब भी साथ-साथ गा लें। आलस्य की अंगड़ाई छोड़ें, नूतन वर्ष के सूर्योदय के साथ अपने समुज्ज्वल जीवन के लिए संघर्षरत हों।
मन, वचन, कर्म से प्रत्येक व्यक्ति को संकल्पित होने का वर्ष है यह। संस्कृत सुभाषितानि में कहा गया है कि महान और सज्जन व्यक्ति जैसा मन में सोचते हैं, वैसा ही कहते भी हैं और करते भी हैं। लेकिन, जो हल्के और बुरे स्वभाव वाले होते हैं, वे सोचते कुछ और हैं, कहते और करते भी कुछ और ही हैं। इसकी व्याख्या करते हुए वेदमूर्ति तपोनिष्ठ गुरुदेव पं।श्रीराम शर्मा आचार्य ने लिखा है कि महान मनुष्य की पहचान ही है जो मन-वचन एवं कर्म से एक होते हैं। कथनी और करनी में एकरूपता होती है। मन, वचन, कर्म में ऐसी विशेषताएं हैं, जिनके संपर्क में आने वाला हर मनुष्य प्रसन्नता अनुभव करता है। इन दिव्य संपदाओं से सुसज्जित व्यक्ति अपने आप में हर घड़ी संतुष्ट एवं प्रफुल्लित रहता है, भले ही उसे उपेक्षा, अभाव एवं कष्टसाध्य परिस्थितियों में क्यों न रहना पड़ रहा हो।
तुलसीदास जी कहते हैं -‘करम बचन मन छाड़ि छलु जब लगि जनु न तुम्हार। तब लगि सुखु सपनेहुं नहीं किए कोटि उपचार।’ जब तक कर्म, वचन और मन से छल छोड़कर मनुष्य भगवान का दास नहीं हो जाता, तब तक करोड़ों उपाय करने से भी स्वप्न तक में वह सुख नहीं पाता। यदि मनुष्य अपने विचार, वचन और कर्म से संसार को सुखी करेगा तो संसार उसे सुखी करेगा। आइए! नववर्ष पर हम मन, वचन एवं कर्म से व्यक्तित्व को ऊंचा उठाने का संकल्प लें। हमें भी नवप्रकाश के वरण, ग्रहण व धारण के योग्य बनना चाहिए। साधना का अमृतपान करने की बेला आ पहुंची है।