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Ganesh Chaturthi 2023: सर्वोच्च चेतना के प्रतीक हैं देवों के देव महादेव के पुत्र भगवान श्रीगणेश

Ganesh Chaturthi 2023 भगवान गणेश अजन्मे हैं निर्विकल्प हैं निराकार हैं और उस दिव्य चेतना के प्रतीक हैं जो सर्वव्यापी है। वह सृष्टि में संचालित ऊर्जा का माध्यम हैं। यह वही ऊर्जा है जिससे सब कुछ चलायमान होता है और जिसमें सब कुछ विलीन भी हो जाता है। श्रीगणेश जी के जन्म की कथा सर्वविदित है। हम उनके दिव्य स्वरूप को देखें तो उनका सिर हाथी का है।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Sun, 17 Sep 2023 12:08 PM (IST)
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Ganesh Chaturthi 2023: सर्वोच्च चेतना के प्रतीक हैं देवों के देव महादेव के पुत्र भगवान श्रीगणेश
स्वामी चिदानंद सरस्वती (परमाध्यक्ष, परमार्थ निकेतन, ऋषिकेश): सनातन संस्कृति और जनमानस में भगवान श्रीगणेश चेतना, जागृति और एकजुटता के प्रतीक हैं। वह प्रथम पूजनीय हैं और विघ्नहर्ता हैं। वह शुभ और लाभ के देवता हैं। इसीलिए सभी पूजन और शुभ कार्य से पूर्व शास्त्रोक्त विधान अनुसार श्रीगणेश जी की आराधना की जाती है। अद्भुत व्यक्तित्व, विलक्षण बुद्धि और सिद्धि के दाता श्रीगणेश जी ने व्यास जी के मुख से निकले शब्दों को लिपिबद्ध कर न केवल महाभारत जैसे महान ग्रंथ, बल्कि महान भारत की भी रचना की। 'श्रीगणेश' गण अर्थात संगठन, समूह, संपूर्णता और सर्वोच्च चेतना के प्रतीक हैं। वह अलौकिक, दिव्य और अद्भुत स्वरूप के प्रतीक हैं। आदि शंकराचार्य ने लिखा है :  

'अजं निर्विकल्पं निराकारमेकं निरातंकमद्वैतमानन्दपूर्णम्।

परं निर्गुणं निर्विशेषं निरीहं परब्रह्मरूपं गणेशं भजेम्।

अर्थात श्रीगणेश जी अजन्मे हैं, निर्विकल्प हैं, निराकार हैं और उस दिव्य चेतना के प्रतीक हैं, जो सर्वव्यापी है। वह सृष्टि में संचालित ऊर्जा का माध्यम हैं। यह वही ऊर्जा है, जिससे सब कुछ चलायमान होता है और जिसमें सब कुछ विलीन भी हो जाता है। श्रीगणेश जी के जन्म की कथा सर्वविदित है। हम उनके दिव्य स्वरूप को देखें तो उनका सिर हाथी का है। हाथी ज्ञान और कर्म के साथ प्रखर बुद्धि, सहजता एवं विशालता का प्रतीक है। हाथी का स्वभाव है कि वह अवरोधों को मार्ग से हटाते हुए आगे बढ़ता हैं।

श्रीगणेश जी का बड़ा उदर (पेट) उदारता, संपूर्णता एवं विशालता को दर्शाता है और उनका ऊपर उठा हुआ हाथ, जिसमें एक कुल्हाड़ी है, वह रक्षा का प्रतीक है अर्थात वह कहते हैं कि मैं सदैव तुम्हारे साथ हूं। उनके एक हाथ की हथेली बाहर की ओर झुकी हुई है, जो अनंत दान, सहायता और विनम्रता दर्शाती है। उनके एक हाथ में अंकुश है, जिसका अर्थ है सदैव जागृत रहना और दूसरे हाथ में पाश का अर्थ है नियंत्रण। इसका संदेश है कि जब हम जागृत रहेंगे तो ऊर्जा उत्पन्न होगी, लेकिन बिना किसी नियंत्रण के ऊर्जा का सही उपयोग नहीं किया जा सकता।

श्रीगणेश जी का वाहन चूहा है, जिसकी विशेषता है कि वह उन सभी बंधनों को काट देता है, जो हमें बांधते हैं। चूहा अज्ञान की परतों को काटने का संदेश देता है, ताकि परम ज्ञान की ओर बढ़ा जा सके। श्रीगणेश जी को कई नामों से पुकारा जाता है। प्रथम एकदंत, जो कि एकाग्रता का प्रतीक है। ब्रह्मांड पुराण में श्रीगणेश जी के लंबोदर नाम का उल्लेख मिलता है, क्योंकि वह अतीत, वर्तमान और भविष्य के सभी ब्रह्मांडों में मौजूद हैं और सभी उनमें मौजूद हैं। उन्हें महोदरा (बड़ा पेट वाला) भी कहा गया है, जो ब्रह्मज्ञान का स्वरूप है।

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वक्रतुंड, उनकी घूमती हुई सूंड़ का स्वरूप है, जो ईर्ष्या से ऊपर उठकर सभी के साथ और सभी के लिए जीवन जीने का संदेश देती है। विकटा अर्थात असामान्य रूप, यह प्रकाशमान प्रकृति का अवतार है, जो शिक्षा देता है कि अपनी दिव्य संस्कृति के साथ प्रकृति का वंदन भी करें। वेदों में लिखा है 'माताभूमिः पुत्रोऽहं पृथ्व्यिाः' यानी धरती हमारी मां है और हम उसकी संतान। प्रकृति श्रीगणेश जी का ही स्वरूप है। गणेश चतुर्थी के माध्यम से आप श्रद्धा और भावनाओं की कड़ियों से अपने आराध्य के साथ जुड़ें और व्यष्टि से समष्टि की यात्रा की ओर बढ़ते रहें।

विघ्नराज अर्थात बाधाओं को पार करने वाले। धूम्रवर्ण जो विनाशकारी प्रकृति का स्वरूप हैं। मुद्गल पुराण के अनुसार, श्रीगणेश जी ने दुनिया को आसुरी शक्तियों से बचाने के लिए आठ अवतार लिए। आसुरी शक्तियों को हम मानव स्वभाव में दोषों के प्रतीक के रूप में देख सकते हैं। हमारे ऋषियों ने अपनी विलक्षण बुद्धि और दिव्यता से शब्दों के साथ-साथ प्रतीकों के रूप में मानव स्वभाव, दोषों और शिक्षाओं को दर्शाया है, क्योंकि शब्द समय के साथ बदल जाते हैं, लेकिन प्रतीक कभी नहीं बदलते। इसलिए हम गणेश चतुर्थी के अवसर पर भगवान गणेश की सर्वव्यापी दिव्य सत्ता का ध्यान करें और उनके दिव्य प्रतीकों से मिलने वाली शिक्षाओं को जीवन में धारण करें। भगवान गणेश हमारे भीतर अवतरित हों और उनकी शिक्षाएं हमारे जीवन का पाथेय बनें, इन्हीं भावों और आस्था के साथ गणेश चतुर्थी मनाएं, क्योंकि जहां आस्था है, वहीं रास्ता है।