धर्म की चादर श्री गुरु तेग बहादुर, पढ़िए सिख धर्म के नौवें गुरु से जुड़ी कुछ रोचक बातें
श्री गुरु तेग बहादुर जी सिखों के नौवें गुरु थे। विश्व इतिहास में धर्म एवं मानवीय मूल्यों आदर्शों एवं सिद्धान्त की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति देने वालों में गुरु तेग बहादुर साहब का स्थान अद्वितीय है। आइए जानते हैं उनके विषय में कुछ रोचक बातें।
By Jagran NewsEdited By: Shantanoo MishraUpdated: Sun, 09 Apr 2023 04:50 PM (IST)
नई दिल्ली, गुरदर्शन सिंह बाहिया (सिख संस्कृति के जानकार); वर्ष 1621 में अमृतसर में जन्मे गुरु तेग बहादुर जी छठे गुरु श्री हर गोबिंद जी के पांच पुत्रों में सबसे छोटे थे। उनका पालन पोषण व शिक्षा भाई गुरदास एवं बाबा बुड्ढा जी जैसे विद्वान गुरुसिखों की देखरेख में हुई। उन्होंने विभिन्न धर्म शास्त्रों का गहन अध्ययन करने के साथ-साथ शस्त्रशिक्षा में भी प्रवीणता पाई। श्री गुरु हरगोबिंद जी की ओर से लड़ी गई करतारपुर के युद्ध में गुरु तेग बहादुर ने तलवार से अभूतपूर्व शौर्य दिखाया। इसके कारण ही उनका नाम त्याग मल से तेग बहादुर रखा गया। श्री गुरु तेग बहादुर जी का बलिदान इस बात का उद्घोष था कि मानव को अपने आत्मा की आवाज एवं विश्वास के अनुसार ही जीने का अधिकार है।
धर्म ग्रहण करने और जीवन का तरीका अपनाने की छूट उसका प्राथमिक अधिकार है, जिसमें काम का चुनाव करना, खाना-पीना एवं पहनना भी शामिल है। तेग बहादुर जी के बलिदान के पीछे दूसरा संदेश यह था कि मानव को अन्याय के विरुद्ध आवाज उठानी चाहिए, चाहे वह किसी के द्वारा, किसी पर भी होता हो। उन्होंने यह प्रचार किया था कि मानव को इस संसार में निर्भय एवं बिना शत्रु के जीना चाहिए। उसे न किसी को डराना चाहिए और न ही किसी से डरना चाहिए।
जब धीर मल के लोग श्री गुरु तेग बहादुर जी के घर पर हमला करके काफी वस्तुएं लूट कर ले गए तो मक्खन शाह जवाबी हमला करके सारी वस्तुएं वापस ले आए, जिनमें गुरु ग्रंथ साहिब की बीड़ भी शामिल थी। गुरु जी ने सभी वस्तुएं वापस लेकर कहा- क्षमा करना सबसे बड़ी तपस्या है, क्षमा सबसे बड़ा दान है, क्षमा सभी तीर्थों एवं स्नान के बराबर है। क्षमादान में ही मुक्ति है। इसके समान कोई और गुण नहीं है। आपको क्षमा मांगनी चाहिए।
श्री गुरु ग्रंथ साहिब में उनकी जो वाणी दर्ज है, उनमें 15 रागों के 59 शबद एवं 57 श्लोक हैं। उन्होंने एसे मानव की कल्पना की, जो दुख-सुख में एक ही तरह का व्यवहार करे और सोने एवं मिट्टी को एक ही जैसा समझे। श्री गुरु तेग बहादुर जी की वाणी मानव मन में जो तीन प्रमुख भाव पैदा करती है, वे हैं वैराग्य, भक्ति एवं सिमरन, लेकिन साथ ही वे इस बात के भी समर्थक नहीं थे कि परमात्मा की भक्ति या सिमरन करने के लिए इस संसार को छोड़ कर जंगलों में जाना चाहिए। उनका मानना है कि मानव इस संसार में विचरते हुए भी मुक्ति पा सकता है। वे कहते हैं:
काहे रे बन खोजन जाइ,
सर्ब निवासी सदा अलेपा तोही संग समाई।पुहुप मध्य जियुं बासु बसतु है, मुकुर माहिं जैसे छांईतेसे ही हरि बसे निरंतर घट ही खोजहु भाई।खालसा पंथ का जन्म स्थान श्री आनंदपुर साहिब को भी श्री गुरु तेग बहादुर जी ने ही बसाया था। उनके गांव माखोवाल की जमीन खरीद कर अपनी माता नानकी जी के नाम पर चक नानकी बसाया था, जिसका ही नाम बाद में श्री आनंदपुर साहिब पड़ा।