Janmashtami 2024: जगत के पालनहार भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं में छिपे हैं बड़े गहरे तत्व
जगत के पालनहार गोविंद का जन्म (Janmashtami 2024) हुआ तो स्वर्ग में दुंदुभियां अपने आप बजने लगीं। नगाड़ों ने कहा हम आज भी पीटकर बजे तो धिक्कार है हम पर। वे भी अपने आप बजने लगे। नेदुर्दुन्द्भयो दिवि। सिद्ध और चारण स्तुति करने लगे। मुनि और देवता सब बृज की ओर दौड़ पड़े यह कहकर कि प्रकट हो जाइए प्रकट हो जाइए।
By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Mon, 19 Aug 2024 05:05 PM (IST)
वैष्णवाचार्य जय जय श्री अभिषेक गोस्वामी। भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गाई गई दिव्य गीता, केवल एक ही पूजनीय भगवान हैं श्रीकृष्ण, केवल एक ही मंत्र है उनका पवित्र नाम तथा केवल एक ही कर्तव्य है- परम पूजनीय श्रीकृष्ण की भक्तिमय सेवा। कृष्ण लीला पुरुषोत्तम हैं। उनका प्रत्येक कार्य लीला ही है। लीलाओं में बड़े गहरे तत्व छिपे हैं। जैसे जन्म लीला ही का दर्शन करें तो सबसे पहले प्रश्न है कि भगवान ने जन्म के लिए रोहिणी नक्षत्र क्यों चुना।
एकम् शास्त्रम् देवकी-पुत्र-गीतम् एको देवो देवकी-पुत्र एव।
एको मंत्र तस्य नामानि अर्थात कर्मप्य एकम् तस्य देवस्य सेवा।इस श्लोक का भावार्थ यह है कि भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गाई गई दिव्य गीता ही पवित्र शास्त्र है।
अजन्मत नारायण जन्म यस्य असौ अजनजन्मा ब्रह्मा।
तस्य ऋक्षं रोहिणीम प्रजापतिदैवस्याम।प्रजापति (ब्रह्मा) का नक्षत्र रोहिणी है। उस समय रोहिणी का गर्भ खाली था, देवकी का भरा हुआ। भगवान रोहिणी के गर्भ में चले जाते, पर भगवान ने वहां बलराम जी को भेजा और स्वयं देवकी के गर्भ में गए। ऐसे में रोहिणी के साथ अन्याय न हो, इसलिए उन्होंने जन्म नक्षत्र के रूप में रोहिणी को चुना। यह भगवान की सदाशयता है। जैसे मालिक के आने से सेवक शांत हो जाते हैं, वैसे ही सारे ग्रह नक्षत्र शांत हो गए। दिशाएं प्रसन्न हो गईं। गगन ने अपने हीरे बिखेर दिए और पृथ्वी ने कहा हमारे स्वामी आ रहे हैं। धरती ने अपने पुत्र मंगल को गोद में ले लिया।
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नदियों का जल निर्मल हो गया कि कालिंदी से विवाह कर भगवान हमारे बहनोई बनेंगे। गोविंद का जन्म हुआ तो स्वर्ग में दुंदुभियां अपने आप बजने लगीं। नगाड़ों ने कहा हम आज भी पीटकर बजे तो धिक्कार है हम पर। वे भी अपने आप बजने लगे। नेदुर्दुन्द्भयो दिवि। सिद्ध और चारण स्तुति करने लगे। मुनि और देवता सब बृज की ओर दौड़ पड़े, यह कहकर कि प्रकट हो जाइए, प्रकट हो जाइए। जैसे पूर्व दिशा में चंद्रमा का उदय होता है, ऐसे ही सबकी हृदय गुहा में रहने वाले परमब्रह्म परमात्मा प्रकट हो गए।
ब्रह्मा जी जिसके पुत्र हैं, ऐसा बालक पैदा हुआ। ऐसा मंगल पैदा हुआ। तमद्भुतं बालकमम्बुजेक्षणंचतुर्भुजं शंखगदार्युदायुधम्। चार हाथ - धर्म, अर्थ, काम मोक्ष। जैसे यह कहना चाहते हों कि मेरे प्यारे भक्तो, ये हमारे चार रूप हैं - वासुदेव, प्रद्युम्न, अनिरुद्ध और संकर्षण। यही इनकी चार भुजाएं हैं, इनके द्वारा भगवान सारा काम करते हैं। चार आयुध हैं- चक्र, शंख, गदा, कमल। शत्रु यदि दूर हो तो चक्र से मारें, पास हो तो गदा से और जब जीत हो जाए तो शंख बजाएं और अपना हृदय कमल उनको दे दें। अपने हृदय कमल को भगवान हाथ में ले लेते हैं कि कब कोई भक्त मिल जाए, तो उसे सौंप दें।
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श्रीवत्सलक्ष्मं गलशोभि कौस्तुभंपीताम्बरं सान्द्रपयोदसौभगम्। आओ ना, दर्शन करो श्रीवत्सलक्ष्मं। गले में कौस्तुभमणि है, बिना किसी छिद्र के बिना किसी बंधन के। प्रेम हो और उसको बांधकर रखना पड़े? यह तो प्रेम का अपमान हुआ? अरे हमारा बड़ा प्रेम है, हम तुमको बांध कर रखेंगे तो क्या यह प्रेम होगा। कौस्तुभ मणि की परछाईं भगवान की छाती पर जाती है। उस भौंरी पर जो छाया पड़ती है उसको श्रीवत्स कहते हैं। वह लक्ष्मी जी को बहुत प्यारा है, क्योंकि वह सुनहरा है ना।
पीतांबर धारण किए है वह बालक। वेद रूप पीतांबर ढक देता हैं भगवान को। भगवान राधा रानी के अंग के रंग को धारण करके आए हैं। भगवान का सौंदर्य रसवर्षी है, जिसे देखकर भक्तों का मन तृप्त हो जाता हैं। भगवान को क्या चाहिए - तपस्या, श्रद्धा और भक्ति। वह कहते हैं, इन तीनों के द्वारा जो भी अपने हृदय में भावना करता है मैं प्रकट हो जाता हूं। चतुर्भुज स्वरूप छोड़ भगवान बालक बने, देवकी को मातृत्व सुख प्रदान किया और फिर गोकुल को प्रस्थान कर गए। कृष्ण को आवेशावतार, अंशावतार या कलावतार मत समझिए। एते चांशकलाः पुंसः कृष्णस्तु भगवान् स्वयम्। इन्द्रारिव्याकुलं लोकं मृडयन्ति युगे युगे।। भगवान श्रीकृष्ण तो स्वयं भगवान अवतारी ही हैंl