जीवन दर्शन: जीवन में हमेशा खुश रहने के लिए इन बातों पर जरूर करें अमल
वायरलेस मोबाइल आदि आधुनिक तकनीकी उपकरण जिस प्रकार कार्य करते हैं वैसे ही शुद्ध संकल्प भी कार्य करता है। आप अपनी संवेदनाओं के माध्यम से दूर बैठे व्यक्ति की संवेदनाओं से जुड़ सकते हैं। देखा जाए तो भौतिक प्रकाश का मूल स्रोत आध्यात्मिक प्रकाश या अंतरात्मा का प्रकाश है। इस आध्यात्मिक प्रकाश के आधार पर किसी की विचार तरंगों को हम प्राप्त कर सकते हैं।
By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Sun, 26 May 2024 02:34 PM (IST)
ब्रह्मा कुमारी शिवानी (आध्यात्मिक प्रेरक वक्ता)। संकल्प बड़ी शक्ति है। श्रेष्ठ संकल्प ही हमारे वर्तमान और भविष्य को बनाते हैं। श्रेष्ठ संकल्प की शक्ति को जाग्रत व एकत्रित करने तथा इनका प्रसार करने के दो तरीके हैं। एक, आध्यात्मिक ज्ञान और दूसरा योग-ध्यान का नियमित अभ्यास। इस श्रेष्ठ संकल्प शक्ति को एकत्रित करने की विधि सरल व सहज विधि है। अत: इसे व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए। श्रेष्ठ संकल्प शक्ति तक पहुंचने के मार्ग में बाधा आने का मुख्य कारण है-व्यर्थ संकल्प। यह वैसा ही है, जैसे धन का हम सदुपयोग करेंगे, तो यह बढ़ेगा और यदि दुरुपयोग करेंगे तो समाप्त हो जाएगा। यह देखें कि आपका संकल्प व्यर्थ न जाए। श्रेष्ठ संकल्प शक्ति दूसरों के विचारों की तरंगों को पकड़ने का सामर्थ्य रखती है।
वायरलेस, मोबाइल आदि आधुनिक तकनीकी उपकरण जिस प्रकार कार्य करते हैं, वैसे ही शुद्ध संकल्प भी कार्य करता है। आप अपनी संवेदनाओं के माध्यम से दूर बैठे व्यक्ति की संवेदनाओं से जुड़ सकते हैं। देखा जाए तो भौतिक प्रकाश का मूल स्रोत आध्यात्मिक प्रकाश या अंतरात्मा का प्रकाश है। इस आध्यात्मिक प्रकाश के आधार पर किसी की विचार तरंगों को हम प्राप्त कर सकते हैं। यह एकाग्रता की शक्ति से होता है। मन-बुद्धि दोनों ही जब एकाग्र होंगे, तब हमारे अंदर विचार तरंगों को पकड़ने की शक्ति आ जाएगी। हमारे नि:स्वार्थ, स्वच्छ और स्पष्ट संकल्प हमें शीघ्र यह अनुभव कराएंगे।
हम जगत कल्याण की दिशा में कदम उठा सकते हैं। इसलिए यह निश्चित है कि आध्यात्मिक ज्ञान और परमात्मा ध्यान के अभ्यास से विकसित हुई हमारी श्रेष्ठ संकल्प शक्ति या मौन की शक्ति द्वारा हम पूरी मानवता, प्रकृति व पर्यावरण को स्वच्छ, स्वस्थ, समृद्ध और खुशहाल बना सकते हैं। चूंकि संकल्प से ही सृष्टि बनती है, इसलिए हमें अपनी संकल्प शक्ति पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। इसे व्यर्थ जाने से बचाने तथा प्राणी और प्रकृति की सेवा में समर्थ संकल्पों का उपयोग करने की आवश्यकता है। शुद्ध, शुभ व कल्याणकारी संकल्पों को एकत्रित करने और बढ़ाने की विधि है इसे व्यवहारिक जीवन में निरंतर प्रयोग में लाना और एकाग्रता का मूल आधार है-मन की नियंत्रण शक्ति, जिससे मनोबल बढ़ता है।
मनोबल की बड़ी महिमा है। इसके लिए हमें सर्व के कल्याण के लिए शुभ संकल्प की शक्ति का प्रयोग करना है। तब हमारी शुभ भावना वाला संकल्प सभी आत्माओं के लिए वरदान सिद्ध होगा। सबसे पहले यह देखना है कि मन को नियंत्रित करने की शक्ति कितनी आई है? आध्यात्मिक शक्ति, सकारात्मक चिंतन एवं राजयोग ध्यान के द्वारा हम मन को संयमित, नियंत्रित और सुनियोजित कर सकते हैं। स्वयं को एवं अन्य लोगों को स्वस्थ, सुरक्षित और शक्तिशाली बनाए रखने के लिए हमें अपनी श्रेष्ठ संकल्प शक्ति की पूंजी को बढ़ाना है, जिससे हमारे विचार, आचार, व्यवहार व संस्कार सभ्य, शालीन व सुखदाई होंगे। क्योंकि संकल्प के आधार पर ही हमारी वाणी और कर्म काम करते हैं। इस मन प्रबंधन की प्रक्रिया में अलग-अलग परिश्रम करने की आवश्यकता नहीं है।
आज वाणी को नियंत्रित करो, कल दृष्टि को व्यापक बनाओ। अगर संकल्प शक्ति अच्छी है तो यह सब स्वत: ही नियंत्रण में आ जाते हैं। मेहनत से हम बच सकते हैं। इसलिए, शुभ संकल्प शक्ति के महत्व को समझ कर उसे सदा अपनाना और एकत्रित करना है। श्रेष्ठ संकल्प, शुभ भावना, शुभकामना वाली संकल्प शक्ति का जो खजाना है, उसे नियमित प्रयोग में लाने की शक्ति हमें विकसित करनी है। इसे विधिपूर्वक करने से सिद्धि का अनुभव होगा। आज की व्यर्थ और नकारात्मक चिंता, भय व तनाव के वातावरण में हमारी समर्थ और सकारात्मक संकल्प की शक्ति इतनी महान व प्रभावशाली होगी कि इसके द्वारा मनुष्यों के अशांत मन, अस्थिर बुद्धि और दुखदाई संस्कारों को हम शांत, स्थिर, संतुलित व सुखदायी बना सकते हैं।
हमारे मन में सदा आत्मा-परमात्मा की सुखद स्मृति, शिव संकल्प, शुभ भावना व कल्याणकारी चिंतन चलता रहे, तो हमारा मनोबल बढ़ता जाएगा, आत्मशक्ति जमा होती जाएगी और समय के अनुसार हमारी मन-बुद्धि एक पल में एकाग्र हो जाएगी। आज के युग में समस्याएं तो आनी ही हैं। यदि हमारे पास मनोबल है, तो समस्या धीरे-धीरे समाप्त हो जाती है और आगे के लिए पाठ पढ़ाकर जाती है। जीवन रूपी परीक्षा में सदा पास होने के लिए तथा संकट या समस्या रूपी परिस्थिति को पार करने के लिए हमें अपने मन-बुद्धि को हमेशा अंतरात्मा तथा परमात्मा के पास स्थित करना है।
यह भी पढ़ें: मन की कड़वाहट को मिटाने से संबंधों में समरसता आ जाएगी एकाग्रता के लिए हमें मन-बुद्धि को इच्छाशक्ति संपन्न बनाना होगा। हमें आत्मिक ज्ञान व राजयोग ध्यान द्वारा परमात्मा की शरण प्राप्त करनी है। हमें अपने अस्तित्व ज्योतिबिंदु स्वरूप अंतरात्मा को जानना है। अपने आत्मा की शांति, प्रेम, पवित्रता व शुभ भावना की मनोस्थिति में हमें रहना है। राजयोग की प्रक्रिया में, अपनी अंतरात्मा को स्थूल शरीर से अधिक महत्व देना है तथा उसे मन बुद्धि, संस्कार व कर्मेंद्रियों का स्वामी समझना है। स्वयं को एक दिव्य ज्योति बिंदु के रूप में महसूस करना है। ईश्वर को अपना सच्चा साथी, सारथी और मार्गदर्शक मानकर अपने हर संकल्प, भावना, वाणी, व्यवहार और कर्म को समर्थ, सार्थक व सुखदायी बनाना है।