जीवन दर्शन: मन की कड़वाहट को मिटाने से संबंधों में समरसता आ जाएगी
यदि हमारा किसी के साथ मन-मुटाव है तो हमें उसके बारे में सोचने का तरीका बदलना चाहिए। जब हम बाहरी तौर पर संबंध को बदलने की कोशिश करते हैं और दूसरे के साथ बोलने या पेश आने की तरीके में बदलाव करते हैं या फिर अतीत की चर्चा के साथ इसे हल करना चाहते हैं तो यह संबंध संभलने के बजाय और उलझता जाता है।
By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Sun, 22 Oct 2023 01:08 PM (IST)
ब्रह्मा कुमारी शिवानी (आध्यात्मिक प्रेरक वक्ता)। हम अपने सोच व विचारों से अपना ऊर्जा क्षेत्र बनाते हैं। हमारे संकल्पों की गुणवत्ता ऊर्जा क्षेत्र की गुणवत्ता निर्धारित करती है। उस ऊर्जा क्षेत्र से हम अपने आपको अलग नहीं कर सकते। उसके सकारात्मक व नकारात्मक प्रकंपन को हम हमेशा साथ लेकर चलते हैं, चाहें घर में प्रवेश करते हुए अथवा घर से बाहर निकलते हुए। जब किसी के बारे में हम अच्छा सोचते हैं और उसके प्रति हमारे विचारों को शुद्ध, सुंदर व सकारात्मक रखते हैं, तो स्वाभाविक है कि हम उसे एक प्रकार से आशीर्वाद देते हैं।
आशीर्वाद देने का यह मतलब नहीं कि हम केवल औपचारिक रूप में शुभकामनाएं देते हैं। अगर हमारे पास किसी के लिए उपहार लेने के लिए पैसे नहीं हैं, तो हमारी ओर से उनके लिए सबसे बड़ा उपहार यही होगा कि हम उनके घर-परिवार को आशीर्वाद दें। सामान्यतः दूसरों के लिए हम अपने सोच के साथ बोल को ध्यान में रखते हैं। भले ही हम उस व्यक्ति के लिए मन में नकारात्मक भावनाएं रखते हों, पर एक पल के लिए उसे बधाई भी देते हैं।
इसका मतलब है, हम उसके लिए मन में अच्छा सोच भी पैदा कर सकते हैं। संबंधों का अर्थ ही है संकल्प रूपी ऊर्जा का आदान-प्रदान करना। मैं आपके बारे में जो सोचती हूं, वह आप तक पहुंचता है। आप मेरे बारे में जो सोचते हैं, वह मुझ तक पहुंचता है-यही हमारे संबंधों का आधार बनता है। यदि मैं आपके बारे में अच्छा सोच नहीं रखती और आपके लिए अच्छे काम करती हूं, तो मैं कितनी भी कोशिश क्यों न करूं, हमारे संबंध का नींव कभी मजबूत नहीं होगी। क्योंकि, संकल्पों से संबंध रूपी सृष्टि बनती व बिगड़ती है।
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अगर हम किसी दूसरे के बारे में अच्छा न भी सोचें तो हमें लगता है कि इसमें कोई हर्ज नहीं है। हम एक ही व्यक्ति के साथ ऐसा कर रहे हैं। हम सोचते हैं कि दूसरों के साथ तो हमारा संबंध अच्छा है। किंतु हमारा मन किसी एक के बारे में नकारात्मक सोचने से भी धूमिल व अशुद्ध हो जाता है। मन के इस सोच के साथ जब हम दूसरे लोगों से मिलेंगे, तब भी हमारा ऊर्जा क्षेत्र वही रहेगा।
अगर हम बार-बार किसी इंसान के बारे में नकारात्मक सोच रखेंगे, तो वह हमारे ऊर्जा क्षेत्र को प्रभावित करेगा। वह न केवल हमारे मन की अवस्था व सेहत को प्रभावित करेगा, बल्कि हमारे संबंधों पर भी असर डालेगा। हम उन्हीं के बारे में सोचते रहेंगे, जिनके साथ हमारा मानसिक संघर्ष है। उनके प्रति हमारी निंदा करने की आदत मानसिक तौर पर हमारी ऊर्जा को कम करती जाएगी।
जब हम किसी और से मिलेंगे तो हमारे पास किसी भी तरह की असहमति को सहने या उनके अनपेक्षित बर्ताव को सहन करने की शक्ति नहीं रहेगी। हमारे संबंध, हमारे कमजोर होने के साथ-साथ और उलझते जाएंगे। एक संबंध की कटुता दूसरे संबंधों पर भी असर डालती है, क्योंकि हमारे मन में दर्द और डर बसा रहता है। हमें लगता है, संबंध बाहरी तौर पर होता है, परंतु यह वास्तव में हमारे मन में होता है। मैं आपके बारे में जो सोचती हूं, उससे मेरे मन में संबंध पैदा होता है और मैं अपने मन में क्या पैदा करती हूं, वह पूरी तरह से मेरा चुनाव है।
यदि हमारा किसी के साथ मन-मुटाव है, तो हमें उसके बारे में सोचने का तरीका बदलना चाहिए। जब हम बाहरी तौर पर संबंध को बदलने की कोशिश करते हैं और दूसरे के साथ बोलने या पेश आने की तरीके में बदलाव करते हैं या फिर अतीत की चर्चा के साथ इसे हल करना चाहते हैं, तो यह संबंध संभलने के बजाय और उलझता जाता है।आसान उपाय यही होगा कि हम अपने विचारों की गुणवत्ता की जांच करें और उसमें सकारात्मक बदलाव लाएं। तभी हम संबंधों में मधुरता ला सकते हैं। क्योंकि हम जानते हैं कि किसी भी संबंध की बाधा हमारे बीच में नहीं, हमारे मन में होती है। मन की कड़वाहट को मिटाने से संबंधों में समरसता आ जाएगी। मन को अपनी अंतरात्मा की शांति, प्रेम व पवित्रता से जोड़ने से तथा योग-ध्यान के द्वारा उसे प्रेम के सागर परमात्मा के आगे सर्व संबंधों से समर्पित करने से, हमारे सभी संबंध आपसी स्नेह, सहयोग और सद्भावना से भर जाएगा।