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जीवन दर्शन: बच्‍चों के उज्‍ज्‍वल भविष्‍य के लिए आध्यात्मिक ज्ञान है बेहद जरूरी

यदि हम अपने बच्चों का जीवन स्थिर और संतुलित बनाना चाहते हैं तो हमें उनके चारों स्तंभों को एक जैसा दृढ़ बनाना होगा अर्थात यदि माता-पिता बच्चों के लिए उपहार लाए बिना घर में आते हैं तो अधिक अंतर नहीं पड़ता परंतु प्रत्येक अभिभावक को अपने साथ घर में शांति प्रेम व प्रसन्नता उत्साह और उमंग आदि सकारात्मक ऊर्जा लेकर आना चाहिए।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Mon, 29 Jul 2024 04:53 PM (IST)
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Jeevan Darshan: आध्यात्मिक प्रेरक वक्ता ब्रह्मा कुमारी शिवानी के अनमोल वचन

ब्रह्मा कुमारी शिवानी (आध्यात्मिक प्रेरक वक्ता)। हमारी मानसिक अवस्था हमारे परिवार और विशेषत: बच्चों को प्रभावित करती है। यदि हम किसी से पूछें कि आप इतनी कड़ी मेहनत करके अपना स्वास्थ्य क्यों प्रभावित कर रहे हैं? तो उत्तर होगा, 'हम अपने बच्चों के लिए ऐसा कर रहे हैं' अर्थात हम उन्हें सब कुछ श्रेष्ठ देना चाहते हैं, शिक्षा भी और भौतिक सुख सुविधाएं भीं। हम यह सब उन्हें इसलिए देना चाहते हैं, ताकि वे प्रसन्न रह सकें। हमें लगता है कि अगर हम बच्चों को अच्छी शिक्षा, अन्न, वस्त्र आदि प्रत्येक आवश्यक वस्तु दें, तो वे सिर्फ भौतिक संसाधनों से प्रसन्न नहीं रह सकेंगे।

बच्चों को माता-पिता से स्नेह, सहयोग, सहानुभूति आदि सकारात्मक वातावरण की भी आवश्यकता है। यदि अभिभावक नकारात्मक ऊर्जा के साथ घर में प्रवेश करते हैं, तो बच्चे प्रसन्न नहीं रह सकेंगे। अधिकतर माता-पिता कहते हैं कि आज की पीढ़ी भावनात्मक तौर पर कमजोर है। बच्चे बड़ों की बात नहीं सुनते, पलटकर जवाब देते हैं, बहुत जल्दी गुस्सा हो जाते हैं या अवसाद से घिर जाते हैं। उनकी सहनशीलता का स्तर इतना कम और तनाव का स्तर इतना अधिक क्यों है?

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इसका दोष प्रतियोगिता, स्कूल और परीक्षा के दबाव को दिया जाता है, परंतु पुरानी पीढ़ी भी उन्हीं चुनौतियों से गुजरी थी, जबकि उसे इतनी सुख-सुविधा या तकनीक नहीं मिली थी, पर उसने कभी इस प्रकार के दबाव या तनाव का सामना नहीं किया। आज बच्चों के जीवन को हम आसान बना रहे हैं, परंतु बच्चों की भावनात्मक ताकत कम हुई है। जब तक माता-पिता दूसरों पर दोष देना नहीं छोड़ते हैं, वे इस समस्या के मूल तक नहीं जा सकेंगे।

आज घर के वातावरण में ही तनाव दिखता है। भले ही अभिभावक बच्चों को डांटे या न डांटे, कुछ कहें या न कहें, पर कई बार वे बाहर से तनाव की ऊर्जा लेकर घर में प्रवेश करते हैं, जो उन्हें बाहर घटने वाली घटनाओं से मिला है। माता-पिता को समझना होगा कि बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य उत्तम भावनाओं के ऊर्जा क्षेत्र पर निर्भर करता है। इन दिनों ऐसे बच्चे अधिक हैं, जिन्हें अच्छी शिक्षा मिली है, परंतु उनकी भावनात्मक बुद्धिमत्ता कम है, उनमें अहं अधिक है।

छोटी-सी घटना भी उन्हें आहत कर सकती है। वे समूह में रहकर कार्य नहीं कर पाते। एक व्यक्ति का जीवन चार स्तंभों पर टिका है- भौतिक, मानसिक, सामाजिक व आध्यात्मिक। हम अपने बच्चों को अच्छा आहार व व्यवहार योग्य चीजें देकर उनके भौतिक पक्ष का ध्यान रखते हैं। उनके मानसिक और बौद्धिक विकास के लिए हम उन्हें बेहतर शिक्षा देते हैं। उनके सामाजिक पक्ष को ध्यान में रखते हुए देखते हैं कि उनके पास अच्छे मित्र हों और साथ ही उन्हें पढ़ाई से अलग दूसरी गतिविधियों में शामिल करते हैं।

हम उन्हें अवकाश पर घुमाने भी ले जाते हैं। पर चौथा स्तंभ-हमारे बच्चों की भावनात्मक व आध्यात्मिक क्षमता- यह अकसर हमारे ध्यान में नहीं रहती है। इसी क्षमता की कमी के कारण बच्चे कई बार तनाव, भय, उद्वेग व उत्तेजना का शिकार होते हैं। हमें लगता है कि यदि हम बच्चों के तीन स्तंभों को मजबूत बनाते हैं तो वे चौथे स्तंभ का ध्यान स्वयं ही रख लेंगे, लेकिन इस स्तंभ के कमजोर होने से बच्चों का जीवन हमेशा अस्थिर व अव्यवस्थित रहता है।

यदि हम अपने बच्चों का जीवन स्थिर और संतुलित बनाना चाहते हैं तो हमें उनके चारों स्तंभों को एक जैसा दृढ़ बनाना होगा अर्थात यदि माता-पिता बच्चों के लिए उपहार लाए बिना घर में आते हैं तो अधिक अंतर नहीं पड़ता, परंतु प्रत्येक अभिभावक को अपने साथ घर में शांति, प्रेम व प्रसन्नता आदि सकारात्मक ऊर्जा लेकर आना चाहिए। बच्चों व परिवार वालों के साथ उसी ऊर्जा के साथ प्रस्तुत होना चाहिए। अब प्रश्न उठता है कि घर जाते समय हम अपना तनाव और नकारात्मक ऊर्जा घर के बाहर कैसे छोड़ कर आएं?

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यह सच है कि हम अपने ऊर्जा क्षेत्र को स्वयं से अलग नहीं कर सकते हैं, परंतु अपने सोच, विचार और भावनाओं की गुणवत्ता पर ध्यान रखकर उन्हें नकारात्मक से सकारात्मक में बदल सकते हैं। इस सकारात्मक बदलाव के लिए आंतरिक शक्ति की आवश्यकता है, जो हमें आध्यात्मिक ज्ञान व परमात्मा ध्यान के नियमित अभ्यास से प्राप्त होगा। इसी अध्यात्मिक पक्ष को पहले हम अपनाएं, फिर अपने बच्चों में विकसित कर सकते हैं।

यदि बच्चे में शांति, स्नेह, सहानुभूति व सहनशीलता आदि आध्यात्मिक गुण नहीं होंगे तो उसका जीवन कभी संतुलित नहीं होगा। बच्चों के जीवन में इन सकारात्मक गुणों और शक्तियों का समावेश करने से पहले हमें अपने सोच, विचार, बोल और कर्म व्यवहार में इन्हें अपनाना होगा, क्योंकि बच्चे माता-पिता के सोच को ग्रहण करते हैं तथा आचरण का अनुसरण करते हैं।