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डर पर विजय पाने के लिए वर्तमान में जीने का अभ्यास करें

डर आपके भ्रमित मन की उपज है। आप उस चीज को लेकर परेशान होते हैं जो है ही नहीं। जो सिर्फ कल्पना है कि कहीं ऐसा न हो जाए। आप उस काल्पनिक दुनिया में रहते हैं जो लगातार अतीत के सहारे भविष्य में झांक रही है। आप वास्तव में भविष्य के बारे में कुछ नहीं जानते। आप सिर्फ अतीत का एक टुकड़ा लेकर उसे आकार देने की कोशिश करते हैं।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Sun, 17 Sep 2023 03:20 PM (IST)
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डर पर विजय पाने के लिए वर्तमान में जीने का अभ्यास करें
सद्गुरु, (ईशा फाउंडेशन के प्रणेता आध्यात्मिक गुरु): डर जीवन के सबसे अप्रिय अनुभवों में से एक है। आपको जिसका डर लगता है, वास्तव में वह उतनी डरावनी नहीं होती, जितना कि स्वयं डर। शरीर और मन शानदार चीजें हैं, लेकिन आप उन्हीं में अटक कर रह गए। आपको यह भी पता नहीं है कि आप कौन हैं और आपका शरीर कौन हैं? आप कौन हैं और आपका मन कौन है? मान लीजिए, मैं आपका दिमाग ले लूं तो क्या आप डरेंगे? नहीं। अगर मैं आपका शरीर ले लूं, तो क्या उसके बाद आप डरेंगे? डर से बचने के लिए आपको अपना शरीर छोड़ने की जरूरत नहीं है। आपको बस इतना करना है कि अपने शरीर से थोड़ी-सी दूरी बनानी है। ठीक इसी तरह आपको अपने मन से भी थोड़ी दूरी बनानी है। एक बार अगर आपके और आपके शरीर और मन के बीच थोड़ी दूरी बन गई, तो फिर आपको भला किस बात का डर होगा?

मान लीजिए, आपके पास एक बहुत पुराना फूलदान है, जो पीढ़ियों से चला आ रहा है। आपको यह बताया गया है कि यह बहुत भाग्यशाली फूलदान है, परिवार के लोगों की जिंदगी इसी फूलदान की वजह से अच्छी तरह चलती रही है। अगर मैं उस फूलदान को तोड़ दूं तो क्या होगा? आपके दिल में डर बैठ जाएगा कि अब आपके साथ बुरा होने वाला है। क्योंकि आपने इस फूलदान के बारे में धारणा बना ली है। मान लीजिए, आप बिना किसी तनाव के कार चलाते हैं।

अचानक एक दिन कोई आपकी कार से टकराता है या आप खुद किसी चीज से टकराते हैं, जिसमें आपको जरा-सी चोट लगी। अगले दिन जब आप कार में बैठेंगे, तो भगवान से प्रार्थना करेंगे। अभी तक आप मस्ती से कार चलाते थे, अब आपको भगवान की सहायता की आवश्यकता पड़ गई। ऐसा नहीं कि शुरू से आपमें डर नहीं था। डर पहले भी था, लेकिन इसके प्रति सचेत होने के लिए एक दुखद अवसर की आवश्यकता पड़ी।

डर आपके भ्रमित मन की उपज है। आप उस चीज को लेकर परेशान होते हैं, जो है ही नहीं। जो सिर्फ कल्पना है कि कहीं ऐसा न हो जाए। आप उस काल्पनिक दुनिया में रहते हैं, जो लगातार अतीत के सहारे भविष्य में झांक रही है। आप वास्तव में भविष्य के बारे में कुछ नहीं जानते। आप सिर्फ अतीत का एक टुकड़ा लेकर उसे आकार देने की कोशिश करते हैं और सोचते हैं कि यही भविष्य है। आप भविष्य की योजना बना सकते हैं, लेकिन उसमें जी नहीं सकते। भविष्य में जीने का प्रयास डर की वजह है। इससे बचने का तरीका है कि आप वास्तविकता के धरातल पर उतरें।

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अगर आप बेकार की कल्पना करने के बजाय वर्तमान में मगन रहें और उनसे कुशलतापूर्वक निपटें तो फिर डर के लिए जगह ही नहीं बचेगी। अब आपको यह तय करना है कि आप धरती पर जीवन का अनुभव लेने आए हैं या उससे बचने। अगर आप जीवन के अनुभव लेने आए हैं तो उसके लिए सबसे जरूरी है-चाह की तीव्रता। जैसे ही डर आपके पास आता है, आपकी तीव्रता कम हो जाती है। जैसे ही यह तीव्रता नीचे जाती है, जीवन को अनुभव करने की आपकी क्षमता गायब हो जाती है।

तब आप मनोवैज्ञानिक समस्या के शिकार बन जाते हैं। ऐसे में आपके मन में चल रही बातें ही आपके लिए वास्तविकता बन जाती हैं। उस स्थिति में आप खुशी का अनुभव नहीं कर पाते, आप डरे-सहमे हुए बैठे रहते हैं। न आप खुलकर गा सकते हैं, न नाच सकते हैं, ना हंस सकते हैं, न रो सकते हैं। आप ऐसा कुछ भी खुलकर नहीं कर सकते, जिसमें जीवन झलकता हो। तब आप दिक्कतों व जोखिमों के बारे में सोचकर परेशान हो सकते हैं। आपका डर हमेशा भविष्य को लेकर होता है। उस बात को लेकर, जो अभी हुई नहीं है, बल्कि होना शेष है। इसका मतलब है कि इसका कोई अस्तित्व नहीं है। आप उन चीजों से परेशान हो रहे हैं, जो हैं ही नहीं। आप अभी इसी वक्त से वर्तमान में जीने का अभ्यास शुरू करें, न कि भविष्य में।