Guru Ravidas Jayanti 2022: जानें-सहज भक्ति मार्ग के महान संत रविदास जी के बारे में सबकुछ
Guru Ravidas Jayanti 2022 देशभर में संत रविदास के अनुयायी हैं। चित्तौड़ में रविदास की छतरी मांडोग में रैदास कुंड व कुटी होने के साथ राजस्थान में उनके अनुयायियों की बड़ी संख्या है। गुरु ग्रंथ साहिब में रविदास के चालीस पद एक दोहा सोलह रागों में संकलित हैं।
Guru Ravidas Jayanti 2022: मध्यकाल में मुगलों के आक्रमण के बाद सामाजिक अव्यवस्था, आर्थिक दरिद्रता और राजनैतिक अस्थिरता जड़ जमा चुकी थी। ऐसे परिवेश में संत रविदास जी का जन्म वाराणसी में हुआ। संत रविदास के गुरु काशी के पंडित रामानंद और शिष्या चित्तौड़ की रानी झाली व मीराबाई थीं। वर्ण, जाति और क्षेत्र की सीमा को तोड़ती ऐसी गुरु-शिष्य परंपरा मानवता की एक मिसाल है। देशभर में संत रविदास के अनुयायी हैं। चित्तौड़ में रविदास की छतरी, मांडोग में रैदास कुंड व कुटी होने के साथ राजस्थान में उनके अनुयायियों की बड़ी संख्या है। 'गुरु ग्रंथ साहिब' में रविदास के चालीस पद, एक दोहा सोलह रागों में संकलित हैं। सिख धर्म में रविदासिया दलितों का एक बड़ा समुदाय है।
रविदास जी धर्म के नाम पर प्रचलित अंधविश्वास, आडंबर और कर्मकांड को निरर्थक मानते थे। इनकी भक्ति-साधना में भावुकता, विनम्रता और प्रेम की प्रधानता है। आचरण की पवित्रता पर विशेष बल है। संत रविदास गुरु-महिमा और सत्संग के समर्थक हैं। वह मानते हैं कि सत्संगति के बिना भगवान के प्रति प्रेम नहीं हो सकता और भगवत्प्रेम के बिना मुक्ति नहीं हो सकती। रविदास उस निर्गुण ब्रह्म के उपासक हैं, जो 'गरीब नवाज' और 'पतित-पावन' है और भक्तों के उद्धार के लिए साकार रूप धारण करता है। संत रविदास जी काम, क्रोध, लोभ, मोह व अहं को त्याज्य मानते हैं।
उनके दर्शन के अनुसार, जीव परमात्मा का अंश है। जीव के अंत:करण में प्राण स्वरूप परमात्मा का निवास है, किन्तु अज्ञानता के कारण जीव कस्तूरी को न पहचानने वाले मृग की तरह संसार में भटकता रहता है। संसार की नश्वरता और शरीर की क्षणभंगुरता के विषय में रविदास जी कहते हैं कि
इहु तनु ऐसा जैसे घास की टाटी
जलि गइयो घासु रलि गइयो माटी।
इसका भावार्थ यह है कि शरीर तो भौतिक वस्तु है, इसे तो नष्ट हो जाना है। हमें इस पर अभिमान न करके शरीर के माध्यम से अपने अंतस को निखारना चाहिए। सदन, सेवा, सत्य, नाम, ध्यान, प्रणति, प्रेम और विलय अष्टांग साधना के अंग हैं। यही संत रविदास की साधना है, जिसमें प्रेम को उच्च स्थान मिला हुआ है। रविदास समानता, भाईचारे पर आधारित जिस विश्व की कल्पना करते हैं, उसे वह 'बेगमपुरा नाम देते हैं। उनका सहज भक्ति मार्ग आज भी निर्धनों व दलितों व संपूर्ण मानव समाज का पथप्रदर्शन कर रहा है।
लेखक-डा. चंद्रभान सिंह यादव
एसो.प्रोफेसर, हिंदी विभाग, केजीके पीजी कालेज, मुरादाबाद
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