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Kriya Yoga: श्रीकृष्ण का क्रिया योग

Kriya Yoga योगदा सत्संग सोसाइटी के संस्थापक और ‘योगी कथामृत’ के लेखक श्री श्री परमहंस योगानंद की श्रीमद्भगवद्गीता पर व्याख्या ‘ईश्वर-अर्जुन संवाद’ के अनुसार कृष्ण शब्द की अनेक व्युत्पत्ति में हैं। इनमें श्याम सर्वाधिक प्रचलित है जो उनके रंग-रूप की ओर संकेत करता है। उन्हें चित्रों में प्राय गाढ़े नीले रंग का दिखाया जाता है जो देवत्व का प्रतीक है।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Sun, 03 Sep 2023 03:02 PM (IST)
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Kriya Yoga: भगवान श्रीकृष्ण का क्रिया योग

अलकेश त्यागी (आध्यात्मिक लेखिका) | भारत में सदियों से कृष्ण जन्म पर आयोजित होते उत्सवों को देखकर कई बार मन सोचता है कि कृष्ण जन्म में ऐसा क्या है, जो लोगों को इतना उत्साहित व प्रेरित करता है। वैसे तो वृष्णि वंश के राजा यदु के यहां जन्म लेने के कारण कृष्ण को यदुवंशी कहा जाता है, पर यह तो उनका सांसारिक परिचय है। क्या इसका कोई और अर्थ और महत्व भी है?

योगदा सत्संग सोसाइटी के संस्थापक और ‘योगी कथामृत’ के लेखक श्री श्री परमहंस योगानंद की श्रीमद्भगवद्गीता पर व्याख्या ‘ईश्वर-अर्जुन संवाद’ के अनुसार, कृष्ण शब्द की अनेक व्युत्पत्ति में हैं। इनमें 'श्याम' सर्वाधिक प्रचलित है, जो उनके रंग-रूप की ओर संकेत करता है। उन्हें चित्रों में प्राय: गाढ़े नीले रंग का दिखाया जाता है, जो देवत्व का प्रतीक है। नीला रंग दिव्य नेत्र में (भ्रूमध्य के बीच) दिखने वाले नीले प्रकाश का भी प्रतीक है, जो योग में चेतना की कूटस्थ चैतन्य अवस्था को दर्शाता है। मतलब कृष्ण का रंग आध्यात्मिकता का भी प्रतीक है और एक गूढ़ अर्थ की ओर संकेत करता है।

योगानंद जी के अनुसार, इंद्रिय जनित लिप्स ग्रस्त संसार दिव्य प्रेम की शुद्धता को नहीं समझ पाता। शाब्दिक अर्थों से परे गोपियों संग कृष्ण लीलाओं का प्रतीकात्मक अर्थ, ब्रह्म और सृष्टि के उस रास से है, जो ईश्वरीय लीला को संसार में व्यक्त करता है। कृष्ण की वंशी की मधुर तान भक्तों को ध्यान जनित समाधि के मंडप में आने को पुकारती हैं, ताकि वह आनंददायक ईश्वरीय प्रेम का पान कर सकें। कृष्ण के जीवन का दर्शन हमें भौतिक जीवन के दायित्वों के निर्वहन और उन्हीं के बीच ईश्वर का सानिध्य पाने के प्रयासों के मध्य सामंजस्य साधना सिखाता है।

कृष्ण सिखाते हैं कि परिवेश कुछ भी हो, ईश्वर को वहीं ले आओ, जहां उसने तुम्हें रखा है। कृष्ण ने अपने राजसी दायित्व निभाने हेतु दुष्ट शासकों के विरुद्ध कई अभियान किए, जिनमें कौरव-पांडवों के बीच हुए महाभारत युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनका जीवन आदर्श-कर्मों का त्याग नहीं सिखाता है, बल्कि कर्म फलों की सांसारिक बंधनकारी इच्छाओं के त्याग की बात करता है।

श्रीमद्भागवत गीता में कृष्ण का संदेश हर युग के लिए है-योग-ध्यान जनित, कर्तव्यनिष्ठ कर्म, अनासक्ति और ईश्वरीय अनुभूति। गीता में प्रतिपादित मार्ग, साधारण मानव और सर्वोच्च आध्यात्मिक साधक दोनों के लिए सहज है। यह मानव को उसका सच्चा स्वरूप दिखाता है कि कैसे वह ब्रह्म से जीव बना, कैसे संसार में वह अपने सही दायित्व निष्पादित करे और फिर कैसे पुन: ब्रह्म बने।

जीवन के इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु जिस व्यावहारिक प्रणाली का उल्लेख कृष्ण ने अर्जुन से किया है, उसे क्रिया योग विज्ञान कहा गया है। यह विज्ञान कालांतर में लुप्तप्राय हो गया था, जिसे 1861 में अमर गुरु महावतार बाबाजी ने बनारस के गृहस्थ श्री श्यामाचरण लाहिड़ी के माध्यम से आधुनिक जगत के लिए पुनः प्रकाशित किया। आगे चलकर बाबा जी के आशीर्वाद से पश्चिमी देशों में क्रिया योग का प्रचार-प्रसार श्री श्री परमहंस योगानंद जी ने किया।