Morari Bapu: सिया राम मय सब जग जानी
Morari Bapu भगवान श्रीराम ने सेतु बनाया। आज पूरे विश्व में समाज के विभिन्न वर्गों के बीच सेतु बनाए जाने की आवश्यकता है। जिसमें भी राम तत्व होगा वह केवल जोड़ने की बात करेगा तोड़ने की नहीं। सत्य प्रेम और करुणा प्रमुख राम तत्व हैं। जिसमें ये तत्व होंगे वह वंचितों तक पहुंचेगा। राम समाज के वंचित लोगों के पास स्वयं चलकर गए।
By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Sun, 03 Sep 2023 02:47 PM (IST)
मोरारी बापू (प्रसिद्ध कथावाचक)। हमारे वेद कहते हैं- सर्वे भवंतु सुखिन:, सर्वे संतु निरामया...अर्थात सब सुखी हों, सब निरोगी हों। वहां कोई, वर्ण, जाति, समूह और पक्ष-विपक्ष की बात ही नहीं है। हमारे ऋषि मुनियों ने युगों पहले यह सूत्र दे दिया था-वसुधैव कुटुंबकम् यानी पूरी वसुधा ही हमारा परिवार है। संपूर्ण विश्व के लोगों के सुख और स्वास्थ्य की कामना भारतीय दर्शन का मूल है। न सिर्फ मनुष्य, बल्कि जीव मात्र के हित की इच्छा रखना ही सनातनी परिचय है। मैं राम कथा गाता हूं। राम राज के मूल में भी सर्वे भवंतु सुखिन:, सर्वे संतु निरामया की ही भावना है।
भगवान श्रीराम ने सेतु बनाया। आज पूरे विश्व में समाज के विभिन्न वर्गों के बीच सेतु बनाए जाने की आवश्यकता है। जिसमें भी राम तत्व होगा, वह केवल जोड़ने की बात करेगा, तोड़ने की नहीं। सत्य, प्रेम और करुणा प्रमुख राम तत्व हैं। जिसमें ये तत्व होंगे, वह वंचितों तक पहुंचेगा। राम समाज के वंचित लोगों के पास स्वयं चलकर गए। केवट, शबरी, अहिल्या के प्रसंग इसके प्रमाण हैं। आज समाज की एक बड़ी जरूरत है कि सक्षम लोग वंचित लोगों तक, अंतिम पंक्ति में खड़े लोगों तक स्वयं चल कर पहुंचें।
मानस में नौ प्रकार की भक्ति का वर्णन हुआ है। शबरी के सामने गाई गई नौ प्रकार की भक्ति में गोस्वामी जी ने सातवीं भक्ति पूरे संसार को ब्रह्ममय मानना-देखना बताई है-'सातवं सम मोहि मय जग देखा।'जब हम पूरे संसार को ब्रह्ममय देखेंगे, महसूस करेंगे तो किसी के भी दोष दिखाई नहीं देंगे। राम के आराध्य महादेव भी किसी में दोष नहीं देखते, इसलिए इतने अवगुण भरे उपकरण अपने ऊपर रखते हैं कि किसी का दोष देखने का मन ही न करे। सपने में भी किसी में दोष न देखना यह सातवीं भक्ति है। सब में प्रभु है, यह गुणदृष्टि सातवीं भक्ति है। तुलसीदास ने भी श्रीरामचरितमानस में स्पष्ट रूप से लिखा है- सिया राम मय सब जग जानी,करहु प्रणाम जोरी जुग पानी॥
पूरे संसार में राम का निवास है, सबमें भगवान हैं और हम उन्हें हाथ जोड़कर प्रणाम करते हैं। राम ईश्वर के रूप में सबके हृदय में है। कबीर ने कहा है-'राम सब घट मेरा साइयां'... राम ईश्वर के रूप में सबके हृदय में हैं।सदा सर्वदा सबके हृदय में रहेंगे, लेकिन हमारे स्वार्थ, हमारे हेतु, हमारी मानसिकताओं के कारण कभी-कभी हम राम को साधन बना बैठते हैं। इसलिए हम राम को सही रूप में नहीं समझ पाते। प्रत्येक व्यक्ति में यदि हमें सिया राम के दर्शन होने लगें तो तमाम भेदभाव समाप्त हो जाएंगे। जातीय आधार पर भेदभाव काफी हद तक कम हुआ है, लेकिन अब भी बहुत कुछ करने की जरूरत है। इसके लिए धर्माचार्यों को आगे आना होगा। धार्मिक क्षेत्र हो, राजनीतिक या फिर सामाजिक क्षेत्र, अंतिम व्यक्ति पूज्य होना चाहिए। अगर अंतिम व्यक्ति आप तक नहीं पहुंच पा रहा है तो यह आपकी जिम्मेदारी है कि आप उस तक पहुंचें। भारतीय दर्शन में इहलोक और परलोक की बात आती है। इहलोक और परलोक का कल्याण करने की बात मेरी दृष्टि में इह यानी अपने संसार के साथ-साथ दूसरों का भी कल्याण हो, ऐसा प्रयास करना ही इहलोक और परलोक को सुधारना है। दूसरों के कल्याण की भावना का क्षेत्र बहुत व्यापक है। हम व्यापक व विराट की संतान हैं, इसलिए दूसरों के कल्याण का भारतीय सोच पूरे विश्व के कल्याण का सोच है।
जब हम वसुधैव कुटुंबकम की बात करते हैं, तो दुनिया के सभी देशों के कल्याण की बात करते हैं। भारत का यही सोच सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया की कामना के साथ जहां कोरोना जैसी महामारी में विश्व के अन्य देशों को भी वैक्सीन उपलब्ध कराती है, वहीं भूकंप जैसी आपदा में नेपाल और तुर्किये की भी सहायता करती है। बिना किसी भेद के दूसरों की सहायता करने का सदाचरण सनातनी उदारता है। भारत की यह प्राचीन परंपरा हमारे देश की बहुत बड़ी ताकत है। इस उदारता को कोई हमारी कमज़ोरी समझे तो यह उसका दुर्भाग्य है। महात्मा गांधी ने जीवन भर सत्य के प्रयोग किए। उन्होंने जाति, धर्म, पंथ के आधार पर किसी से भेदभाव नहीं किया। सत्य ही गांधी का धर्म था और उस तक जाने के लिए उन्होंने अहिंसा का मार्ग चुना।
विश्व की प्रसन्नता के लिए भगवान पतंजलि ने भी सरल उपाय दिए हैं। वे कहते हैं :मैत्री करुणा मुदितोपेक्षाणां सुखदुःख पुण्यापुण्य विषयाणां भावनातश्चित्त प्रसादनम्॥जहां भी दुनिया में सुख देखो, वहां मैत्री करो। दुश्मनी ना करो। वे आपके अपने हों, पराए हों, जो भी हों, मैत्री करो। जहां भी दुख देखो, वहां करुणा करो। जहां कुछ पुण्य कर्म चलते हों, शुभ कर्म चलते हों तो उन्हें देख कर मुदित हो जाओ, आनंदित हो जाओ। हम ना कर सकें, कोई चिंता की बात नहीं। हम पूरे विश्व के साथ वसुधा के साथ जुड़े हुए हैं। कोई पुण्य कर्म करता है तो हम भी सूक्ष्म रूप से उससे जुड़े हैं। दायां हाथ दान करता है तो बायां कभी नाराज नहीं होता। वह समझता है कि वह भी उसी शरीर का एक भाग है। बहुत प्यारा सूत्र है। जहां भी पाप दिखे, उपेक्षा करो। पापी की नहीं, उसके पाप की उपेक्षा करो। यही वसुधैव कुटुंबकम् का भारतीय सोच है। यही सर्वे भवंतु सुखिन:, सर्वे संतु निरामया की सनातनी कामना है। यही सर्वभूत हिताये, सर्वभूत सुखाय के साथ सर्वभूत प्रीताय की हमारी अवधारणा है।