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जीवन दर्शन: सनातन संस्कृति में विचारों, विश्वासों और खोजने की विविधता रही है

यदि मानव की बुद्धिमत्ता भय अपराध बोध और लोभ के मूल्यों से ग्रस्त नहीं है तो वह स्वाभाविक रूप से अपनी शाश्वत प्रकृति की खोज करेगी। इस खोज में इस सभ्यता का खगोल विज्ञान गणित संगीत रहस्यवाद-कई चीजों से सामना हुआ क्योंकि मस्तिष्क में कोई निष्कर्ष नहीं था। हमने अपना जीवन पूरी तरह से जीया लेकिन ईश्वर नर्क या किसी के डर के बिना।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Mon, 13 Nov 2023 01:43 PM (IST)
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जीवन दर्शन: सनातन संस्कृति में विचारों, विश्वासों और खोजने की विविधता रही है
सद्गुरु, (ईशा फाउंडेशन के प्रणेता आध्यात्मिक गुरु)। मुझसे अक्सर पूछा जाता है, ‘हिंदूवाद क्या है?’ हिंदू कोई वाद नहीं है। हिंदू की पहचान धरती से है। वह धरती, जो हिमालय और ‘इंदु सागर’ या हिंद महासागर के बीच है। वह इलाका हिंदू है तो वहां के लोग हिंदू कहे जाने लगे। यह सभ्यता हिंदू कही गई। उस सभ्यता के कारण इतिहास के अलग-अलग समय में उस इलाके के सभी राज्य हिंदुस्तान कहे गए। यह संस्कृति किसी एक विश्वास या शिक्षा का परिणाम नहीं है। जब मामला भौतिक से परे का हो, तो भारत हमेशा से चरम स्वाधीनता की धरती रहा है। इसी संदर्भ में यह संस्कृति विकसित हुई है। इस संस्कृति में विचारों, विश्वासों और खोजने की विविधता रही है। हम इसे सनातन धर्म कहते हैं। सनातन शब्द का अर्थ है शाश्वत। धर्म का अर्थ है नियम। सनातन धर्म का अर्थ है शाश्वत नियम।

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इस संस्कृति में हम धर्म या मजहब नहीं देखते। हम सिर्फ यह देख रहे हैं कि आपके जीवन के लिए वे क्या नियम हैं, जिससे आपका जीवन सर्वोच्च संभव तरीके से चले। हम समझते हैं कि जब तक कि आप इन नियमों के अनुसार नहीं चलते, आपका जीवन अच्छा नहीं चल सकता। ये नियम जबरदस्ती लागू नहीं किए गए हैं, लेकिन ये अस्तित्व की बुनियाद हैं। अगर आप नियम जानते हैं तो आप उनके साथ तालमेल करते हैं। तब आपका जीवन सहजता से चलता है। अगर आप नहीं जानते, तो आप अकारण ही दुख झेलेंगे। हिंदू सभ्यता या सनातन धर्म निडर, अपराधबोध रहित और लोभ रहित मनुष्यों का परिणाम है।

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यदि मानव की बुद्धिमत्ता भय, अपराध बोध और लोभ के मूल्यों से ग्रस्त नहीं है, तो वह स्वाभाविक रूप से अपनी शाश्वत प्रकृति की खोज करेगी। इस खोज में, इस सभ्यता का खगोल विज्ञान, गणित, संगीत, रहस्यवाद-कई चीजों से सामना हुआ, क्योंकि मस्तिष्क में कोई निष्कर्ष नहीं था। हमने अपना जीवन पूरी तरह से जीया, लेकिन ईश्वर, नर्क या किसी के डर के बिना, क्योंकि हमने देखा कि सबसे महत्वपूर्ण चीज खोजना और जानना है। इस सभ्यता के बिना दुनिया में कोई गणित नहीं होता। गणित के बिना कोई विज्ञान नहीं होता और प्रौद्योगिकी के संदर्भ में, आज हम जिन चीजों का आनंद ले रहे हैं, उनका अस्तित्व नहीं होता। यह ऐसी संस्कृति है, जिसने छह-सात हजार साल पहले स्पष्ट रूप से पृथ्वी के गोल होने और सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाने की बात कही थी।

हम यह नहीं मानते थे कि पृथ्वी ब्रह्मांड का केंद्र है। यह समझ हमें इसलिए नहीं आई, क्योंकि यह धरती विज्ञानियों से भरी थी, बल्कि इसलिए आई, क्योंकि हम खोजी थे। जैसे-जैसे खोज और बोध गहरा होता गया और यह बहुत गहन हो गया, तो हमने पाया कि हर चीज का आधार ‘कुछ नहीं’ है, और हमने उसे 'शिव' कहा। 'शिव' का अर्थ है 'वह जो नहीं है।' ब्रह्मांड में सबसे बड़ा चमत्कार यह है कि हर चीज शून्य से उत्पन्न होती है और फिर शून्य में चली जाती है। बाकी सब कुछ-आप और मैं, यह ग्रह, यह सौर मंडल, यह ब्रह्मांड, केवल स्रोत की अभिव्यक्ति हैं। हमने अभिव्यक्ति का आनंद लिया और उसकी सराहना की, लेकिन हमें इसमें कोई दिलचस्पी नहीं थी। हमारी रुचि यह जानने में थी कि 'स्रोत की प्रकृति क्या है?'

हालांकि हमें कई जादुई और रहस्यमय चीजें देखने को मिलीं, फिर भी हम लगातार खोजते रहे, क्योंकि हमारा लक्ष्य कुछ ऐसा ढूंढ़ना नहीं था, जो हमें खुद के लिए उपयोगी लगता है। हम अपने अस्तित्व के बारे में सच्चाई को जानना चाहते थे। यही खोज सनातन सभ्यता का आधार है। इस संस्कृति में बहुत व्यवस्थित अनुशासन हैं और साथ ही, खोज-बीन के बिल्कुल विचित्र तरीके भी हैं, लेकिन जब आपका इरादा आपके जीवन के मूल को छूने का हो, तब कुछ भी वर्जित नहीं होता।

मानवता अब मानव बुद्धि के क्षेत्र की हठधर्मिता या सिद्धांतों द्वारा निर्धारित नहीं है, चाहे वह किसी का धर्म हो, प्रचलित विचारधारा हो या कोई स्थानीय दर्शन हो। अगले 15 से 25 वर्षों में मानव विश्वास प्रणाली और भी कमजोर हो जाएगी। लोग किसी पर भरोसा नहीं करेंगे। मैं इसे प्रोत्साहित नहीं कर रहा हूं, लेकिन इसका मतलब है कि कहीं न कहीं वे समझते हैं, 'जब तक मैं इस जीवन को अच्छी तरह से नहीं संभालता हूं, यह काम नहीं करेगा।' या दूसरे शब्दों में, 'मेरा जीवन मेरा कर्म है।'

यदि हम दुनिया को इस दिशा में ले जाएं, जहां वे भय, अपराध बोध और लालच से मुक्त हों, तो आप देखेंगे कि पूरे ग्रह पर सनातन धर्म का अंकुरण होगा। सनातन धर्म का मतलब यह नहीं है कि वे सभी एक धर्म में परिवर्तित हो जाएंगे, क्योंकि परिवर्तित होने के लिए कुछ नहीं है। ऐसी कोई विचारधारा, दर्शन, ईश्वर या ईश्वरीय सेना नहीं है, जिसमें आप परिवर्तित हो सकें और शामिल हो सकें। नहीं, वे सब तलाश करेंगे। हमें इसकी परवाह नहीं है कि वे कैसे खोजते हैं। जब तक वे अपने शाश्वत स्वरूप की खोज कर रहे हैं, यदि उनका ध्यान अभिव्यक्ति से हटकर उसके स्रोत की ओर चला गया है, तो इसका मतलब है कि वे सनातनी हैं।