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जानें, कैसे भगवान श्रीकृष्ण और भागवत दोनों एक दूसरे हैं पर्याय?

भगवत इदं भागवतम् यानी जो भगवान का है वह भागवत है अथवा भगवतो योऽस्ति सो भागवतः कथ्यते अर्थात जो भगवान का है उसे भागवत कहते हैं। भगवान श्रीकृष्ण और भागवत दोनों ही एक दूसरे के पर्याय हैं। भगवतोऽयं भागवतः कथ्यते अर्थात जो भगवान हो गया उसे भागवत कहते हैं। भागवत को केवल सद्ग्रंथ न मानकर उसे भगवत्स्वरूप ही समझना चाहिए।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Mon, 11 Sep 2023 06:25 PM (IST)
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जानें, कैसे भगवान श्रीकृष्ण और भागवत दोनों एक दूसरे हैं पर्याय?
आचार्य नारायण दास (श्रीभरतमिलाप आश्रम, ऋषिकेश)। भागवत शब्द का मूल भावार्थ है-जो भगवान का है और जिसके भगवान हैं अर्थात भगवद्भक्त। जहां केवल भगवत्संबंधी परिचर्चा हो। जो भगवान का प्रेमी होगा, उसके आचार-विचार और व्यवहार में सहज ही ज्ञान, वैराग्य और भक्ति की त्रिवेणी प्रवाहित होती रहती है। वह सहज ही निष्काम भाव से मानवीय मानबिंदुओं का संपोषण, संरक्षण और संवर्धन करने वाला होगा।

'भगवत इदं भागवतम् यानी जो भगवान का है, वह भागवत है अथवा 'भगवतो योऽस्ति सो भागवतः कथ्यते' अर्थात जो भगवान का है, उसे भागवत कहते हैं। भगवान श्रीकृष्ण और भागवत दोनों ही एक दूसरे के पर्याय हैं। 'भगवतोऽयं भागवतः कथ्यते' अर्थात जो भगवान हो गया, उसे भागवत कहते हैं। भागवत को केवल सद्ग्रंथ न मानकर उसे भगवत्स्वरूप ही समझना चाहिए।

श्रीमद्भागवत महापुराण भगवान का ही स्वरूप है। जब भगवान इस धराधाम से जाने लगे, तो उद्धव जी ने कहा- प्रभु मत जाइए, धर्म की गति-मति विकृत हो जाएगी। निर्गुण उपासना बहुत कठिन है। आप तो बस यहीं रहिए, तब भगवान ने श्रीउद्धव जी से कहा, अब मैं कहीं नहीं जाऊंगा। यहीं रहूंगा, ऐसा कहते हुए भगवान श्रीमद्भागवत महापुराण में प्रविष्ट हो गए :'तेने इयं वाङ्मयी मूर्तिः प्रत्यक्षा वर्तते हरिः'। इसलिए भागवत महापुराण को भगवान का साक्षात स्वरूप माना गया है।

अनंतकोटिब्रह्मांडनायक परात्पर परब्रह्म परमेश्वर भगवान श्रीहरि की जीव पर जब महान कृपा होती है, तभी उसे भगवन्नाम, लीला, धाम और उनके विमल चरित्र को सुनने का सुयोग बनता है। जैसा कि श्रीमद्भागवत के माहात्म्य समुद्धृत है: जन्मांतरे भवेत्पुण्यं तदा भागवतं लभेत्'। जब जीव के कल्पकल्पांतर, युगयुगांतर और जन्मजन्मांतर का पुण्योदय होता है, तभी उसको श्रीमद्भागवत के श्रवण का साधन सुलभ होता है।

संसार में वे सभी जीव भाग्यशाली हैं जिन्हें जिस-किसी भी माध्यम से भगवान की दिव्यकथा सुनने का अवसर मिलता है। जिस प्रकार नदियों में भगवती मां गंगा परम पवित्र हैं और देवताओं में भगवान अच्युत श्रीहरि सर्वश्रेष्ठ हैं, उसी प्रकार पुराणों में श्रीमद्भागवत महापुराण परम पवित्र और श्रेष्ठ है :

निम्नागानां यथा गंगा देवानामच्युतो यथा।

यहां एक जिज्ञासा समुत्पन्न होती है कि इस सद्ग्रंथ का नाम श्रीमद्भागवत क्यों रखा गया? क्योंकि इसमें भगवान के समस्त अवतारों, उनकी मधुर लीलाओं और उनके भक्तों के सुंदर चरित्र का वर्णन गागर में सागर की भांति शोभायमान है। इस त्रैलोक्य पावन सद्ग्रंथ में जितनी मधुरता, सरसता तथा सुगमता के साथ भगवान की कथा का विश्लेषण किया गया है, वैसा अन्यत्र नहीं मिलता है। अन्यादि पुराणों में जैसे विष्णुपुराण में भगवान श्रीविष्णु की कथा मुख्यरूप से वर्णित है। इसी प्रकार शिवपुराण, मत्स्यपुराण, वाराहपुराण और पद्मपुराणादि में तदर्थ नाम के अनुरूप ही भगवत्कथा और उनकी लीला का गुणगान है, लेकिन श्रीमद्भागवत में भगवान के समस्त अवतारों की कथा वर्णित है। कहा जाता है कि सृष्टि के उषा काल से जो-जो परमहंसकोटि के संत-महापुरुष, राजा एवं भगवद्भक्त हुए हैं तथा आगे भी जितने होंगे, उनकी भी कथा श्रीमद्भागवत में वर्णित है।

कृष्णद्वैपायन महर्षि वेदव्यास जी ने स्वयं ही श्रीमद्भागवत के संदर्भ में कहा है, जो श्रीमद्भागवत में नहीं है, वह अन्यादि ग्रंथों में भी अप्राप्य है। किस प्रकार से सृष्टि समुत्पन्न होती है? कैसे इसका पालन होता है? किस प्रकार यह पुनः विलुप्त हो जाती है, इन सभी आध्यात्मिक तथ्यों का विषद और सुगम वर्णन श्रीमद्भागवत में सुलभ है।

सबसे पहले किसी भी ग्रंथ के माहात्म्य के संदर्भ में विचार-विमर्श किया जाता है। श्रीमद्भागवत के माहात्म्य का वर्णन स्कंधपुराण, पद्मपुराण, वायुपुराण और संहिताओं में भी मिलता है। बिना किसी की महिमा सुने या अनुभव किए उसके प्रति हृदय में अनुराग नहीं होता है :

माहात्म्यज्ञानं विना तं प्रति हृदये श्रृद्धा समुत्पन्ना भवति।

प्राणी में श्रद्धा का अभ्युदय सर्वप्रथम किसी की महिमा सुनकर ही होता है, यह स्वभावतः सिद्ध है।