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क्रिया योग: गुणों के विकास से आध्यात्मिक स्वास्थ्य संभव

मनुष्य के रूप में हमारे अंदर सफलता प्राप्त करने की प्राकृतिक क्षमता विद्यमान है परंतु व्यक्ति को यह ज्ञात होना चाहिए कि उन क्षमताओं और साधनों को कैसे संचालित करना है। परमहंस योगानंद जी की शिक्षाएं हमें यही सिखाती हैं। इन सबका मूल आधार है संतुलन की धारणा जिसका अर्थ यह है कि हमारी प्रकृति का एक भौतिक पक्ष है

By Jagran NewsEdited By: Shantanoo MishraUpdated: Sun, 25 Jun 2023 03:15 PM (IST)
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स्वामी चिदानन्द गिरि जी से जानिए भावनात्मक संतुलन और आंतरिक शांति का रहस्य।

स्वामी चिदानन्द गिरि | हमारे पास एक शरीर है, हमें उसका पोषण करना है और जब वह रोगग्रस्त हो जाता है, तब हमें उसकी देखभाल करनी है। हमें उसके आरोग्य का उपाय ढूंढ़ना है और जीवन के भौतिक पक्ष से जुड़े सभी विषयों पर ध्यान देना है, परंतु बात यह है कि प्राय: मानव जाति केवल यहीं पर रुक जाती है। उससे भी अधिक महत्वपूर्ण यह है कि हमारे अस्तित्व का एक मनोवैज्ञानिक, भावनात्मक और उच्चतर आध्यात्मिक आयाम भी है। इसलिए सफलता का उनका (परमहंसजी का) मार्ग था उचित संतुलन को प्राप्त करना। वहां, जहां आप भौतिक सफलता और समृद्धि प्राप्त करते हैं। जहां आपके पास भावनात्मक संतुलन और आंतरिक शांति होती है।

आध्यात्मिक रूप से आपके पास एक उच्चतर उद्देश्य के लिए अपने जीवन को संचालित करने का ज्ञान होता है, न केवल धन एकत्र करना और परिवार व संतानों की उपलब्धि, अपितु यह अनुभव करने का एक उच्चतर उद्देश्य कि मैं ईश्वर का एक स्फुलिंग हूं, मैं इस भौतिक शरीर में निवास करने वाला आत्मा हूं और अपने जीवन के सभी पक्षों में ईश्वर के पूर्ण साक्षात्कार और अभिव्यक्ति की प्राप्ति ही मेरा अंतिम उद्देश्य है। एक बार जब आप यह धारणा बना लेते हैं, तो जीवन अत्यंत रोमांचक हो जाता है, क्योंकि सब प्रकार के कौशल, क्षमताएं और योग्यताएं आपके लिए उपलब्ध हैं। ये प्रत्येक मनुष्य की अक्षय निधि का अंग हैं, परंतु वे तब तक पूर्ण रूप से निष्क्रिय रहती हैं, जब तक उन्हें सचेतन एकाग्रता और सचेतन प्रयास के द्वारा जाग्रत नहीं किया जाता है।

योगानंद जी की शिक्षाएं हमें यही प्रदान करती हैं। वे कहते हैं कि ध्यान तथा इच्छाशक्ति व एकाग्रता के विकास द्वारा, हमें पूर्ण मनुष्य बनाने वाले गुणों के विकास द्वारा आप सर्वोच्च भौतिक सफलता तथा मनोवैज्ञानिक व भावनात्मक स्वास्थ्य एवं संतुलन और आध्यात्मिक स्वास्थ्य प्राप्त कर सकते हैं। वर्ष 1920 में योगानंद जी जब अमेरिका गए थे, तो उस समय अमेरिका पूरे उत्साह में था। उस समय वह पूंजीवाद के अपने दर्शन को लेकर तेजी से प्रगति कर रहा था।

योगानंद जी अनेक सफल व्यवसायियों और औद्योगिक संस्थानों के प्रमुखों इत्यादि से मिले और उन सबने यह स्वीकार किया कि योगानंद जी उनके मध्य उस वस्तु को लेकर आए थे, जिसकी उनके जीवन में कमी थी। मैं आपको एक छोटा-सा मनोरंजक वृत्तांत सुनाता हूं : जब वे न्यू यार्क नगर में व्याख्यान दे रहे थे तो एक व्यक्ति ने उनसे भेंट करने की अनुमति मांगी। वह व्यक्ति उनके होटल के कमरे में आया और इससे पूर्व कि योगानंद जी कुछ कहते, उसने एक चुनौतीपूर्ण ढंग से कहा, 'मैं अत्यधिक धनवान हूं, मैं पूर्ण रूप से स्वस्थ हूं,' जिसका अर्थ यह था कि 'आप यहां किसलिए आए हैं?' योगानंद जी ने उसे तुरंत उत्तर दिया, 'हां, किंतु क्या आप पूर्ण रूप से सुखी हैं?' बाद में उस व्यक्ति ने कहा, 'मैं निरुत्तर हो गया था!' उस व्यक्ति ने अपना शेष जीवन एक क्रियायोगी के रूप में व्यतीत किया। बाह्य रूप से वह करोड़पति उद्योगपति था, परंतु अंदर से वह एक प्रबुद्ध योगी था।

यह कह पाना और एक अद्भुत अनुभूति है कि ईश्वर की इच्छाशक्ति से सशक्त हुई मेरी इच्छाशक्ति मेरे लक्ष्य को पूरा करेगी। यदि आप आलसवश सब कुछ दिव्य शक्ति पर छोड़ देते हैं और ईश्वर द्वारा आपको दी गई अपनी इच्छाशक्ति की अवहेलना करते हैं तो परिणाम प्राप्त नहीं होंगे। - श्री श्री परमहंस योगानंद