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जीवन दर्शन: ऐसे अपने मन को बनाएं सुमन, जीवन होगा सुखी

मनुष्य की आत्मा की तीन मुख्य शक्तियां हैं- मन बुद्धि और संस्कार। सोचने या संकल्प करने की शक्ति को मन कहते हैं। सोच को कर्म में लाने की निर्णय-शक्ति को बुद्धि तथा उस निर्णय को कार्यरूप में परिणत करने वाली शक्ति को संस्कार कहते हैं। अच्छे या बुरे संस्कार के अनुरूप इंसान कर्म का बीज बोता है और उसके अनुसार सुख-दुःख की फसल पाता है।

By Jagran News Edited By: Vaishnavi DwivediUpdated: Sun, 25 Feb 2024 10:22 AM (IST)
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जीवन दर्शन: ब्रह्मा कुमारी शिवानी (आध्यात्मिक प्रेरक वक्ता)।
ब्रह्मा कुमारी शिवानी (आध्यात्मिक प्रेरक वक्ता)। मनुष्य की आत्मा की तीन मुख्य शक्तियां हैं- मन, बुद्धि और संस्कार। सोचने या संकल्प करने की शक्ति को मन कहते हैं। सोच को कर्म में लाने की निर्णय-शक्ति को बुद्धि तथा उस निर्णय को कार्यरूप में परिणत करने वाली शक्ति को संस्कार कहते हैं। अच्छे या बुरे संस्कार के अनुरूप इंसान कर्म का बीज बोता है और उसके अनुसार सुख-दुःख की फसल पाता है। 'मन-बुद्धि-संस्कार' का चक्र चलता रहता है। जीवन को सुख-शांतिमय बनाने के लिए इस चक्र को सुचारु बनाने की आवश्यकता है।

मानव संस्कार के परिवर्तन से संसार परिवर्तित होता है। पर, प्रत्येक संस्कार निर्माण के मूल में मनुष्य का मन है। अर्थात, सुखमय जीवन या संसार के लिए मानव के मन और बुद्धि को सकारात्मक, समर्थ, संयमित और संतुलित बनाना आवश्यक है।

मनुष्य के मन में चार प्रक्रियाएं चलती हैं

मनुष्य के मन में चार प्रक्रियाएं चलती हैं- संकल्प, भावना, दृष्टिकोण व स्मृति, जो एक-दूसरे को प्रेरित और प्रभावित करते हैं। तभी हमारे संकल्प के अनुसार भावना, दृष्टिकोण एवं स्मृतियां बनते हैं। इन तीनों को सुखदायी बनाने के लिए हमें अपने सोच व संकल्पों को शुभ, सकारात्मक तथा कल्याणकारी बनाना होगा। परमात्मा भी श्रेष्ठ व शिव संकल्पों से सृष्टि रचते हैं। वे मनुष्यों के मन में आत्मोत्थान व स्व-कल्याण से विश्व-कल्याण करने की भावना व दृष्टिकोण विकसित करते हैं। जिससे, अच्छे संस्कार और सभ्य संसार का निर्माण होता है।

अगर अपने जीवन और समाज को बेहतर बनाना है, तो सबसे पहले हमें अपने सोच और भावनाओं का नियंत्रण व प्रबंधन करना होगा। उन्हें नकारात्मकता से हटाकर शुभ, श्रेष्ठ, समर्थ और सकारात्मक बनाना होगा। इसे भावना प्रबंधन कहते हैं, जिससे उत्तम जीवन व समाज का प्रबंधन संभव है। अब सवाल है, मन में चल रहे अच्छे-बुरे संकल्प व भावनाओं का नियंत्रण कैसे करें?

शुभ भावना व शुभ कामना रखें

यह सच है कि हमारे सोच से ही भावनाएं उत्पन्न होती हैं। यह भी सत्य है कि हमारी भावनाएं हमारे सोच व संकल्पों से अधिक गहरी और प्रभावी होती हैं। इसलिए, मन को सुमन और जीवन को सफल बनाने के लिए, सबके प्रति और सदा शुभ भावना व शुभ कामना रखना ही भावनाओं का उत्तम प्रबंधन करना है। व्यावहारिक रूप में, चाहे कोई कैसी भी भावना रखे, हमें उसके प्रति शुभ भावना से ही व्यवहार करना चाहिए। उसका गलत व्यवहार या वार्ता हमें प्रभावित न कर पाए, बल्कि हम उसके साथ ऐसा व्यवहार करें कि हमारा अच्छा आचरण उस पर प्रभावी हो जाए। संभव है कि उसका व्यवहार बदल जाए।

क्योंकि सकारात्मक ऊर्जा अधिक शक्तिशाली है नकारात्मक ऊर्जा से। नकारात्मक ऊर्जा की जकड़न से बचने के लिए हमें अपने संकल्पों को दृढ़ करना होगा और भावनाओं को शुभ व सकारात्मक बनाना होगा। दूसरों की दुर्भावनाओं से स्वयं को दूर रखने के लिए अपनी भावनाओं का नियंत्रण करना होगा।

भावनाओं पर संयम रखें

अगर हम दूसरों के अनुचित बोल व व्यवहार से अशांत होते हैं और उसके साथ गलत व्यवहार करते हैं, तो समझिए कि हमारी सकारात्मक शक्ति हार गई है। अपने मन तथा अपनी भावनाओं पर संयम रखने से हम नकारात्मकता पर जीत पा सकते हैं। सकारात्मक दृष्टिकोण व चिंतन से हम अपनी भावना और मन के मालिक बन सकते हैं।

इसके लिए हमे अपनी मन को मनाना होगा कि, अगर दूसरा कोई हमारे साथ गलत व्यवहार करता है तो वह ईर्ष्या, घृणा व गुस्सा रूपी विकारों से पीड़ित है, बीमार है। वह दया, करुणा व मदद का पात्र है, न कि घृणा व क्रोध का। हम उसके मनोरोग से प्रभावित होकर उसकी बीमारी ठीक नहीं कर सकते हैं।

अपनी मानसिकता को स्वस्थ व सकारात्मक रख कर ही शुभ भावना व शुभ कामना से उसका उपचार कर उसे बदल सकते हैं।उसके दिल को सहज जीत सकते हैं। यही सच्ची जीत व सेवा है।इसलिए, संकल्प लें कि यदि कोई व्यक्ति हमारे साथ कैसा भी व्यवहार करें, मुझे उसके साथ शांति, स्नेह और सम्मान का व्यवहार करना है। दो-तीन दिन मन को ऐसे समझाने से हमारा मन मान जाएगा।

मन एक बच्चे के समान है

मन एक बच्चे के समान है, उसे हम जैसे समझाएंगे, वह वैसा ही करने लगेगा। दूसरे, हमें यह नहीं सोचना है कि हमने उस व्यक्ति के साथ इतने बार अच्छा व्यवहार किया, फिर भी वह हमारे साथ बुरा व्यवहार करता है। अच्छाई की कभी गिनती नहीं की जाती, उससे अच्छाई की शक्ति कम हो जाती है।

प्रसन्नता, शुभकामना, मृदु बोली और व्यवहार सबको बांटिए, गिनती मत कीजिए। अच्छाई करने से हमारा मनोबल, आत्मविश्वास व आंतरिक शक्ति बढ़ती जाएगी।

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