अनेक वर्षों की तपस्या के बाद विश्वामित्र बने महर्षि
ऋषि विश्वामित्र बड़े ही प्रतापी और तेजस्वी महापुरुष थे। ऋषि धर्म ग्रहण करने के पूर्व वे बड़े पराक्रमी और प्रजावत्सल नरेश थे।
वैदिक काल में विश्वामित्र विख्यात ऋषि थे। ऋषि विश्वामित्र बड़े ही प्रतापी और तेजस्वी महापुरुष थे। ऋषि धर्म ग्रहण करने के पूर्व वे बड़े पराक्रमी और प्रजावत्सल नरेश थे।
ऋर्षि वशिष्ठ के पास कामधेनु गौ माता थीं। विश्वामित्र उन्हें अपने साथ ले जाना चाहते थे। जब ऋर्षि वशिष्ठ ने गौ माता देने से इंकार कर दिया तो विश्वामित्र ने भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए उग्र तप किया। जब भोलेनाथ उन्हें वर देने के लिए प्रकट हुए तो उन्होंने वर मांगा कि मैं धनुर्वेद का संपूर्ण अधिकारी बन जाऊं। और समस्त असुर, मानव, राजा मेरे अधीन हो जाएं।
विश्वामित्र को भगवान शंकर ने मनवांछित वरदान दे दिया। भगवान शिव से वरदान मिलने के बाद, विश्वामित्र घर की ओर लौट आए लेकिन उनका अहंकार, उफनते समुद्र की तरह उमड़ रहा था।
चूंकि ऋर्षि वशिष्ठ उनके पुराने शत्रु थे इसलिए वह बिना सोचे-समझे उनके आश्रम में गए। आश्रमवासी विश्वामित्र और उनकी सेना को आता देख इधर-उधर छिप गए।
विश्वामित्र ने सबसे पहले आग्नेय शस्त्र का उपयोग किया जिसके कारण सारा आश्रम जलकर खाक हो गया। यह देख कर वशिष्ठ जी दुःखी हो गए। उन्होंने विचार किया कि विश्वामित्र के गर्व का खंडन करना ही होगा। उन्होनें अपने ब्रह्मदण्ड को प्रकट किया।
इस बीच उन्होंने विश्वामित्र को ललकारा कि, विश्वामित्र ने जैसे ही उन पर शस्त्रों से प्रहार किया तो उन्होंने ब्रह्मदंड सामने की ओर रख दिया। विश्वामित्र के सारे अस्त्र-शस्त्र बेकार हो गए। इसके बाद विश्वामित्र के एक-एक कर सारे शस्त्र नष्ट हो गए।
विवश होकर विश्वामित्र ने ऋर्षि वशिष्ठ जी के ऊपर ब्राह्स्त्र छोड़ा। किंतु ब्रह्मदंड के आगे ब्रहास्त्र कुछ भी नहीं कर पाया। विश्वामित्र का घमंड चूर-चूर हो गया। और फिर उन्होंने ऋर्षि वशिष्ठ से माफी मांगी और कहा मैं भी आपकी तरह ऋर्षि बनना चाहता हूं।
यह कहकर विश्वामित्र कई वर्षों तक तप करने लगे। अनेक वर्षों की तपस्या के बाद ब्रह्माजी प्रकट हुए और और उन्हें महर्षि की पदवी देकर चले गए।